तिरुपरंकुंद्रम कार्तिकई दीपम केस: 'पहाड़ी की चोटी पर दीपक जलाने का कोई सबूत नहीं', तमिलनाडु सरकार ने हाईकोर्ट में रखा पक्ष
तमिलनाडु सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में कहा कि तिरुपरंकुंद्रम पहाड़ी की चोटी पर कार्तिकई दीपम जलाने की कोई ऐतिहासिक या धार्मिक परंपरा नहीं है। सरकार के ...और पढ़ें

पहाड़ी पर दीप जलाने का प्रमाण नहीं (फोटो- सोशल मीडिया 'X')
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तिरुपरंकुंद्रम पहाड़ी की चोटी पर कार्तिकई दीपम जलाने वाले मामले में तमिलनाडु सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि वहां पर कार्तिकई दीपम जलाने की कोई ऐतिहासिक या धार्मिक परंपरा नहीं है और इसके पक्ष में एक भी सबूत मौजूद नहीं है।
तमिलानडु सरकार के अधिवक्ता ने सुनवाई के दौरान कहा कि पिछले 100 सालों से अधिक समय से दीपक हमेशा उचिपिल्लैयार मंदिर परिसर में ही जलाया जाता रहा है। राज्य सरकार ने कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें मंदिर प्रशासन को पहाड़ी पर कार्तिकई दीपम जलाने की अनुमति दी गई थी।
जनहित नहीं निजी याचिका
तमिलानडु सरकार के अधिवक्ता जनरल ने कहा कि पिछले 100 वर्षों से पहाड़ी पर स्थित उचिपिल्लैयार मंदिर के पास ही दीप जलाया जाता रहा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह जनहित याचिका नहीं बल्कि निजी हित याचिका है। साथ ही कहा कि याचिकाकर्ता को पहले तथाकथित दीपदान के अस्तित्व और उसके पारंपरिक रीति-रिवाजों से संबंध को साबित करना होगा।
दीपक जलाने का अधिकार सिर्फ मंदिर प्रशासन के पास
राज्य सरकार के अधिवक्ता जनरल ने 1923 से 2018 तक के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अदालतों ने लगातार यह माना है कि दीपक जलाने का अधिकार केवल मंदिर प्रशासन के पास है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 226 का इस्तेमाल लंबे समय से चली आ रही परंपराओं को बदलने के लिए नहीं किया जा सकता।
वहीं, मंदिर के कार्यकारी अधिकारी के वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कथित दीपथून में कभी दीप जलाया गया था, उन्होंने इसे महज एक सर्वेक्षण स्तंभ बताया। मंदिर के 150 वर्षों के अभिलेखों से पता चलता है कि दीप हमेशा केवल उचीपिल्लैयार मंदिर में ही जलाया जाता रहा है।
दोनों पक्षों की बातें सुनने के बाद कोर्ट ने कुछ टिप्पणियों के साथ मामले को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया है। याचिकाकर्ता सोमवार को अपनी दलीलें पेश करेंगे।

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