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मानवीय इतिहास में दुनिया को बदल देने वाली यह पांच महामारियां

कोरोना वायरस के प्रकोप के समय हमें इसी उम्मीद और धैर्य के साथ आगे बढ़ना चाहिए। महामारियों ने हमारे वर्तमान को प्रभावित किया है और कोविड-19 हमारे भविष्य को लेकर चिंतित कर रहा है। हालांकि इस मौके पर अपने अतीत से सबक लेना चाहिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 10 Jan 2022 01:20 PM (IST)Updated: Mon, 10 Jan 2022 01:20 PM (IST)
मानवीय इतिहास में दुनिया को बदल देने वाली यह पांच महामारियां
दुनिया को बदल देने वाली ऐसी ही पांच महामारियां हैं। फाइल फोटो

नई दिल्‍ली, जेएनएन। मानवीय इतिहास में रोग और महामारियों ने बड़ी भूमिका निभाई है। हर महामारी के बाद एक नया सूरज निकलता है और मानव सभ्यता नई राहों पर बढ़ जाती है। कोरोना वायरस के प्रकोप के समय हमें इसी उम्मीद और धैर्य के साथ आगे बढ़ना चाहिए। महामारियों ने हमारे वर्तमान को प्रभावित किया है और कोविड-19 हमारे भविष्य को लेकर चिंतित कर रहा है। हालांकि इस मौके पर अपने अतीत से सबक लेना चाहिए। जहां हमने ऐसी कई महामारियों का सामना किया। दुनिया को बदल देने वाली ऐसी ही पांच महामारियां हैं।

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यलो फीवर: हैती में 1801 में यूरोपीय औपनिवेशिक ताकतों के खिलाफ गुलामों ने बगावत कर दी और इसके परिणामस्वरूप तुसैंत लोवरतूर फ्रांस के शासक बने। जबकि फ्रांस में नेपोलियन ने खुद को आजीवन देश का शासक घोषित कर हैती पर कब्जा जमाने की सोची। उसने हजारों सैनिकों को लड़ने भेजा लेकिन वे यलो फीवर से लड़ नहीं सके। करीब 50 हजार सैनिक मारे गए और सिर्फ 3 हजार बच सके। बाद में लाखों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अमेरिका को बेच दिया गया। लुइसियाना पर्चेज के मिलने से अमेरिका का क्षेत्रफल दोगुना हो गया।

प्लेग: यूरोप में चौदहवीं सदी का पांचवा और छठा दशक यूरोप के लिए काफी मुश्किल वक्त था। जब प्लेग के कारण यहां की करीब एक तिहाई आबादी खत्म हो गई थी। इसके चलते खेतों में काम करने वाले किसानों की कमी हो गई और सामंती व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई। राजस्व भरने के लिए जमीदारों के यहां पर काम करने की निर्भरता कम हुई और धीरे-धीरे वे जमींदारों की कैद से मुक्त होने लगे। इससे मजदूरी की प्रथा सामने आई और यूरोप के विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया। इसी के कारण व्यापारिक और नकदी आधारित व्यवस्था को बढ़ावा मिला। वहीं मजदूरों को भुगतान करना महंगा पड़ने लगा और फिर शुरूआत हुई समुद्री यात्रओं के जरिए नए ठिकाने तलाशने की।

चेचक: पंद्रहवीं सदी के आखिर में यूरोपीय देशों ने अमेरिकी महाद्वीप में अपने उपनिवेश बनाए। बड़े पैमाने पर लोग मारे गए, जिसका परिणाम जलवायु परिवर्तन के रूप में सामने आया। ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के मुताबिक उस वक्त अमेरिका की आबादी छह करोड़ थी जो घटकर 60 लाख रह गई। अमेरिका में यूरोपीय उपनिवेश की स्थापना के साथ बीमारियां वहां पहुंची। इनमें चेचक के साथ ही खसरा, हैजा, मलेरिया, प्लेग, काली खांसी और टाइफस भी शामिल है। अमेरिका में आबादी की कमी से खेती कम हुई और बड़ा इलाका चारागाह और जंगल बन गया। यह क्षेत्रफल 5 लाख 60 हजार वर्ग किलोमीटर है जो कि केन्या या फ्रांस के आकार का है। इसके कारण कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर नीचे आया और धरती का तापमान कम हुआ। हरियाली के कारण दुनिया में एक तरह से लघु हिम युग लौट आया।

जानवरों की महामारी: यूरोपीय देशों के साम्राज्य बढ़ाने में अफ्रीका में फैली बीमारी से बड़ी संख्या में जानवरों की मौत हुई। राइंडरपेस्ट नाम के वायरस ने 1888 से 1897 के दौरान 90 फीसद पालतू पशुओं को खत्म कर दिया। इसके चलते अफ्रीका के बड़े इलाके में लोगों के सामने भूखे मरने की नौबत आ गई। बैलों के मरने से खेती पर भी संकट आ गया। जिसने यूरोपीय देशों को उपनिवेश स्थापित करने का मौका दे दिया। हालांकि उपनिवेश स्थापित करने की योजना पहले से ही बन चुकी थी। 14 देशों ने तय किया कि अफ्रीका के किस हिस्से पर कौन शासन करेगा। 1900 तक 90 फीसद हिस्से पर औपनिवेशिक ताकतें काबिज हो गईं।

मिंग राजवंश का पतन: चीन का मिंग राजवंश करीब तीन सदियों तक सत्ता पर काबिज रहा। हालांकि प्लेग के कारण इस राजवंश का पतन हो गया। 1641 में उत्तरी चीन में प्लेग जैसी महामारी के कारण बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई। कई जगह आबादी 20 से 40 फीसद तक कम हो गई। इसके कारण लोगों ने मरने वाले लोगों को खाना शुरू कर दिया था। यह संकट मलेरिया और प्लेग जैसी बीमारियों के एक साथ फैलने से शुरू हुआ। ऐसी संभावना जताई जाती है कि चीन में आक्रमणकारियों के साथ ये बीमारियां आई हों। बाद में मंचूरिया के क्विंग वंश ने संगठित रूप से चीन पर हमला किया और मिंग राजवंश का खात्मा हो गया। हालांकि मिंग वंश के सत्ता में आने के लिए सूखा और भ्रष्टाचार जैसे कारण भी थे।


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