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यहां से गुजरते हुए हर वक्त रहता है जान का खतरा, फिर भी आंखें बंद किए है सरकार

पिथौरागढ़, नैनीताल, ऊधमसिंहनगर, चम्पावत, बागेश्वर और अल्मोड़ा जिले में कई ऐसे पुल हैं जो अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं। जरूरत है इनका नए सिरे से मरम्मत कराने की।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 21 Jan 2019 03:35 PM (IST)Updated: Tue, 22 Jan 2019 07:43 PM (IST)
यहां से गुजरते हुए हर वक्त  रहता है जान का खतरा, फिर भी आंखें बंद किए है सरकार
यहां से गुजरते हुए हर वक्त रहता है जान का खतरा, फिर भी आंखें बंद किए है सरकार

नैनीताल, जेएनएन। कुमाऊं में शहर और गांवों को जोड़ने वाले कई पुल अंतिम सांस गिन रहे हैं। बावजूद इसके इन पुलों पर आवागमन जारी है। हर दिन इन पर से स्कूली बच्चों के साथ ही हजारों की तादाद में छोटे-बड़े वाहन गुजरते हैं। जानलेवा हो चुके इन पुलों पर सफर रोजना खतरनाक हो रहा है। पिथौरागढ़, नैनीताल, ऊधमसिंहनगर, चम्पावत, बागेश्वर और अल्मोड़ा जिले में कई ऐसे पुल हैं जो अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं। जरूरत है इनका नए सिरे से मरम्मत कराने की।

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हर दिन करीब दो सौ बच्चे करते हैं इस पुल पर जानलेवा सफर
पिथौरागढ़ : नाचनी के पास नामिक ग्लेशियर क्षेत्र से निकलने वाली रामगंगा नदी बहती है। रामगंगा नदी यहां पर बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिले की सीमा है। बागेश्वर के चार गांवों के बच्चे नर्सरी से लेकर इंटर तक की पढ़ाई के लिए रामगंगा नदी के दूसरी तरफ नाचनी आते हैं। 11 जुलाई को बादल फटने से रामगंगा नदी में बना विशाल झूला पुल बह गया था। इसके बाद ग्रामीणों की आवाजाही के लिए गरारी लगाई गई। गरारी चलाने के लिए एक तरफ से रस्सी खींचनी पड़ती है। चार माह तक बच्चों की माताएं गरारी खींच कर बच्चों को स्कूल भेजती थीं। शीतकाल आने के बाद जब नदी का जलस्तर घटा तो ग्रामीणों ने श्रमदान से एक पुल बनाया। इस पुल पर सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है। प्रतिदिन दो सौ से अधिक बच्चे इस पुल से विद्यालय आते जाते हैं। सरकार को अभी भी यहां पुल निर्माण की सुध नहीं आई है। गर्मी शुरू होते ही बर्फ पिघलते ही नदी का जल स्तर बढ़ेगा और पुल बह जाएगा। इस पुल से बच्चों के अलावा दर्जनों गांवों के लोग इधर उधर जाते हैं।

इस कांपते पुल पर चलते हैं भारी वाहन
अस्कोट-कर्णप्रयाग मोटर मार्ग में थल में रामगंगा नदी पर बना मोटर पुल लंबे समय से कांप रहा है। वर्ष 1962 में बना पुल अब जर्जर हालत में पहुंच चुका है। भारी वाहनों के चलते ही पुल कांपता है। पुल पर बिछाया गया सीमेंट टूट चुका है। सरिया नजर आने लगी है। कभी भी इस पर हादसा हो सकता है। यहां सिर्फ चेतावनी बोर्ड लगाकर कोरम पूरा किया गया है। यह पुल सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। इस पुल से जिले का आधा हिस्सा शेष जगत से जुड़ा है। रामगंगा नदी पर दूसरा पुल 85 किमी की दूरी पर है।

दो वर्ष पूर्व ध्वस्त पुल के स्थान पर नहीं बना दूसरा पुल
तहसील के बारह गांवों को जोडऩे के लिए कुलूर नदी पर बना पुल दो वर्ष पूर्व दो भार वाहनों के एक साथ गुजरने के दौरान टूट गया। इस हादसे में दो लोगों की मौत हो गई थी। आगामी फरवरी माह में पुल ध्वस्त हुए दो साल पूरे होने जा रहे हैं , लेकिन अभी तक व्यवस्था चुप है। यहां पर भी एक गरारी लगा कर इतिश्री कर ली गई थी। बारह गांवों के रोड होने के बाद भी आठ से दस किमी पैदल चलते हैं। कुलूर नदी में वैकल्पिक व्यवस्था के तहत डाले गए पत्थरों पर चल कर आवाजाही कर रहे हैं।

धारचूला, मुनस्यारी में 31 स्थानों पर हैं अस्थाई पुल और पुलिया
धारचूला और मुनस्यारी में अभी भी सैकड़ों गांवों की लाइफ लाइन पुल और पुलिया हैं। प्रतिवर्ष आपदा में पुल और पुलिया बह जाती है। सरकार के स्तर से पुल और पुलिया बनाने के लिए ढाई लाख से लेकर पांच लाख तक की धनराशि मिलती है। पुल निर्माण करने वाले विभाग ठीक मानसून काल से पूर्व पुल और पुलिया निर्माण की रस्म भर अदा कर देते हैं। पहली मानसूनी वर्षा में आधे से अधिक पुल और पुलिया बह जाती है। क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीण श्रमदान से सदियों से पूर्व की भॉति कच्चे पुल बनाते हैं। ये कच्चे पुल और पुलिया ही उनकी लाइफ लाइन रहती हैं।

नब्बे लाख का भेजा गया है प्रस्ताव
एके वर्मन अधिशासी अभियंता लोनिवि डीडीहाट ने बताया कि थल मोटर पुल के लिए नब्बे लाख का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। इसके तहत पुल की मरम्मत होनी है। पुल पर एक साथ दोनों तरफ से भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक लगाई गई है। नाचनी में भी रामगंगा नदी पर पुल निर्माण का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है।

नैनीताल में पांच पुल हो चुके हैं उम्रदराज
नैनीताल जिले में छोटे-बड़े मिलाकर कुल पांच पुल ऐसे हैं जो कि उम्रदराज हो चुके हैं। इन्हें मरम्मत की जरूरत है। इसमें मुख्य ब्रिटिश दौर में बना वीरभट्टी पुल भी शामिल है। 2017 में सिलेंडर विस्फोट के कारण यह पुल पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। अभी अस्थायी बैली पुल बनाकर काम चलाया जा रहा है। नया पुल कब बनेगा यह तय नहीं हो सका है। रानीबाग-भीमताल पुल, काठगोदाम नैनीताल पुल, काकड़ीघाट, भुजियाघाट, खैरना पुल की उम्र 50 साल से अधिक है। लिहाजा हर साल बरसात से पहले व बाद में इनकी मरम्मत करना जरूरी है।

ऊधमसिंहनगर जिले में भी पुल पर लटक रही है जिंदगी

किच्छा
चार करोड़ रुपया खर्च करने के बाद भी धौरा डैम से जुड़े दर्जनों गांवों के हजारों ग्रामीणों को गौला नदी पर रपटा पुल का लाभ नहीं मिल पाया है। पुल के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाने के कारण मामला जांच में लंबित है और निर्माण एजेंसी से जुड़े आरोपितों के खिलाफ एफआईआर भले ही दर्ज कर ली गई हो पर इसका खामियाजा आज भी दर्जनों गांवों की जनता को भुगतना पड़ रहा है। रपटा पुल पर निर्माण प्रारंभ होने पर ग्रामीणों ने राहत की सांस ली थी। रपटा पुल बन जाने परर पिपलिया मोड़ से किच्छा मात्र दो किमी रह जाता है जबकि पुलभट्टा से घूम कर आने में दस किमी से भी अधिक हाईवे के भीड़ भाड़ भरे माहौल में चलना पड़ता है। जिससे दुर्घटनाओं का भी खतरा बना रहता है

काशीपुर
बाजपुर हाईवे स्थित बहल्ला नदी पर बनी सकरी पुलिया जान की मुसीबत बनी है। पुलिया से एक ही चौपहिया वाहन गुजर सकता है। पुलिया की दीवारें टूटी हुई हैं। थोड़ी सी चूक होने पर चालक वाहन लेकर नदी में गिर सकता है। कुछ माह पहले पुलिया से एक वाहन नदी में गिर गया था। ऐसे तो छोटी घटनाएं तो अक्सर होती रहती हैं। यहीं पुलिया पर अक्सर जाम ही लगा रहता है। कई बार शिकायत के बाद भी प्रशासन का ध्यान नहीं जाता है। खास बात यह है कि हल्द्वानी व रुद्रपुर जाने वाले राज्य व जिले के आला अफसर गुजरते हैं, मगर इसे ठीक कराने की कोशिश की नहीं की गई। इसी तरह सुल्तानपुरपट़टी में इसी हाइवे पर बनी पुलिया जर्जर स्थिति में है और यहां पर जाम ही जाम लगा रहता है। एक बार जाम लगता है तो पुलिया पार करने में कम से कम एक घंटा समय लगता है।

खटीमा
पहेनिया-सैजना मार्ग पर परवीन नदी पर बना पुल डेढ़ माह से भी अधिक समय से क्षतिग्रस्त स्थिति में है। वहां से भारी वाहनों की आवाजाही पर पूरी तरह रोक लगा रखी है।नदी पर वैकल्पिक व्यवस्था के लिए रपटा बना रखा है। वह भी दो बार क्षतिग्रस्त हो चुका है। बावजूद इसके वहां से वाहनों की आवाजाही हो रही है। कोई और वैकल्पिक मार्ग न होने की वजह से करीब एक दर्जन गांवों के ग्रामीणों को वहीं से आवागमन करना पड़ रहा है। इस संबंध में लोक निर्माण विभाग के साथ ही स्थानीय जनप्रतिनिध भी मौके का निरीक्षण कर चुके हैं। हालांकि उन्होंने आश्वासन के सिवाय लोगों को कुछ और नहीं दिया। वहीं सत्रहमील- नानकमत्ता मार्ग पर नौसर में परवीन नदी पर बना पुल पिछले तीन सालों से नहीं बन सका है। हालांकि वहां पर नए पुल का निर्माण कार्य चल रहा है। लेकिन जो कार्यदायी संस्था की लेटलतीफी की वजह से अधर में लटका हुआ है। बता दें कि यह मार्ग ऐतिहासिक गुरुद्वारा नानकमत्ता साहिब को उततर प्रदेश से जोड़ता है। बड़ी संख्या में श्रद्घालु इसी मार्ग से होकर गुजरते हैं। ब्रिटिश कालीन इस पुल के जर्जर होने की वजह से श्रद्धालुओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

कुमाऊं-गढवाल को जोडऩे वाला पुल हो चुका है जर्जर
अल्मोडा : अल्मोड़ा जिले की भिकियासैंण तहसील में वर्ष 1970 के समय में बना हुआ पुल वर्तमान में जर्जर हालत में हैं। पुल के दोनों तरफ बने पिलर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं। जबकि वर्षों से पुल की मरम्मत भी नहीं की गई है। यह पुल कुमाऊं और गढ़वाल के कई क्षेत्रों को जोडऩे वाला है। इसके अलावा जिले के क्वारब और मरचूला में बने पुल भी जर्जर हालत में हैं।

सरयू-गोमती के ऊपर बने पुल जर्जर हालत में
बागेश्वर : जिला मुख्यालय में दो पुल राष्ट्रीय राज मार्ग 309 ए में जर्जर हालत में हैं। जर्जर पुलों पर आवागमन जारी है। स्थानीय लोग जीणोद्धार की लंबे समय से मांग कर रहे हैं। सरयू और गोमती नदी के ऊपर बने हैं।

मियाद पूरी कर चुका है शारदा बैराज
चम्पावत : भारत-नेपाल के बीच ब्रिटिश शासनकाल में बना शारदा बैराज पुल दोनों देशों के बीच आवागमन का मुख्य मार्ग है। 1928 में बना एक किमी लंबा यह पुल अब अपनी मियाद पूरी कर चुका है। जिस कारण पुल से भारी वाहनों की आवाजाही पर प्रशासन ने रोक लगा दी है, मगर हल्के वाहनों का आवागमन जारी है। बारिश के दिनों में शारदा का जल स्तर बढऩे पर छोटे वाहनों की आवाजाही पर रोक लगा दी जाती है। इस पुल पर वाहन चलने पर पुल के कंपन को आसानी से महसूस किया जा सकता है। शारदा बैराज के पुल अपनी मियाद पूरी कर चुका है यह जानते हुए भी आज तक आवागमन के लिए शारदा नदी पर नया पुल नहीं बनाया गया है।


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