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    'अभियोजकों की नियुक्ति में नहीं होना चाहिए भाई-भतीजावाद', सुप्रीम कोर्ट का आदेश

    Updated: Thu, 30 Jan 2025 07:43 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न हाईकोर्ट में राजनीतिक कारणों के चलते लोक अभियोजकों की नियुक्ति पर नाराजगी जाहिर की है। जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने इन नियुक्तियों को लेकर कहा है कि अभियोजकों की नियुक्ति में पक्षपात और भाई-भतीजावाद नहीं होना चाहिए। पीठ ने कहा न्यायाधीश भी इंसान हैं और कई बार गलतियां कर देते हैं।

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    अभियोजकों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला (फाइल फोटो)

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हाई कोर्ट में अभियोजकों की नियुक्ति को लेकर राज्य सरकारों की आलोचना करते हुए कहा कि ये राजनीतिक वजहों से नहीं होनी चाहिए। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने कहा कि पक्षपात और भाई-भतीजावाद के चलते योग्यता से समझौता होता है।

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    जस्टिस जेबी पार्डीवाला और आर महादेवन की पीठ ने कहा कि न्यायाधीश भी इंसान होते हैं और उनसे गलतियां हो जाती है, ऐसे में अभियोजक की जिम्मेदारी इसे सुधारना होती है।

    पीठ ने कहा, न्यायाधीश भी इंसान हैं और कई बार गलतियां कर देते हैं। कई बार काम के दबाव के चलते ऐसा हो जाता है। उसी वक्त बचाव पक्ष और सरकारी अभियोजक का यह कर्तव्य है कि अगर अदालत कोई गलती कर रही है तो उसे सुधारें और हम इसके लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार मानते हैं।

    राज्य सरकारों के लिए है संदेश

    • यह आदेश सभी राज्य सरकारों के लिए एक संदेश है कि उन्हें संबंधित हाई कोर्ट में एजीपी और एपीपी की नियुक्ति केवल योग्यता के आधार पर करनी चाहिए।
    • पीठ ने कहा, यह अलग बात है कि हाई कोर्ट ने सरकारी वकील की प्रार्थना को खारिज कर दिया। यह देश के हाई कोर्ट में सरकारी वकीलों की स्थिति है।
    • जब देश भर की राज्य सरकारें उनके हाई कोर्ट में सरकारी वकील की नियुक्ति केवल राजनीतिक कारणों से करती हैं, तब ऐसा होना तो तय ही है।
    • राज्य सरकारों का कर्तव्य है कि वे व्यक्ति की कानून में दक्षता, पूरी पृष्ठभूमि और ईमानदारी समेत पूरी योग्यता का पता लगाएं।

    क्या बोला SC?

    सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट से जुड़े उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें अपीलकर्ताओं को हत्या का दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। पीठ ने हरियाणा सरकार को चार सप्ताह के भीतर अपीलकर्ताओं को पांच-पांच लाख का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया। यह मामला 13 मार्च 1998 को हरियाणा में हुई एक घटना से जुड़ा है।

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