शादी की उम्र न होने पर भी दो वयस्क लिव इन रिलेशनशिप में साथ रह सकते हैं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून में भी लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता दी गई है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर व्यक्ति की साथी चुनने की पसंद को महत्व दिया है। कोर्ट ने कहा है कि दो वयस्क विवाह योग्य आयु न होने पर भी लिव इन रिलेशनशिप में साथ रह सकते हैं। कोर्ट ने 20 वर्ष के लड़के से शादी करने वाली 19 वर्ष की लड़की को साथ साथ रहने की इजाजत दे दी है। कोर्ट ने शादी को अमान्य कर लड़की को पिता के घर वापस भेजने का केरल हाईकोर्ट का आदेश रद कर दिया है।
- सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल के लड़के से शादी करने वाली 19 साल की लड़की को साथ रहने की दी इजाजत
- कोर्ट ने हादिया के केस में व्यक्ति की पसंद के मौलिक अधिकार पर एक बार फिर लगाई मुहर
यह फैसला न्यायमूर्ति एके सीकरी व न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल लड़के की याचिका स्वीकार करते हुए सुनाया है। इस मामले में लड़की लड़का दोनों हिन्दू हैं। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में लड़का लड़की दोनों वयस्क हैं। लड़की 19 वर्ष की है और लड़के की आयु को लेकर विवाद है जो कि अभी 21 वर्ष का नहीं हुआ है। लड़के की जन्मतिथि 20 मई 1997 है जो कि इसी माह 30 मई को 21 वर्ष का होगा। जबकि दोनों की शादी गत वर्ष 12 अप्रैल 2017 को हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने तथ्यों को दर्ज करते हुए फैसले में कहा है कि हिन्दू विवाह अधिनियम में विवाह के लिए लड़की की आयु 18 वर्ष और लड़के की आयु 21 वर्ष होनी चाहिए। लेकिन सिर्फ लड़के की आयु 21 वर्ष की न होने के आधार पर विवाह को शून्य नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने हिन्दू विवाह अधिनियम के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा कि कानून में ऐसी शादी शुरू से शून्य नही होती बल्कि शून्य घोषित कराई जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि वैसे वो कानून के इस विस्तार मे नहीं जाना चाहता। इसके अलावा भी देखा जाए तो दोनों वयस्क हैं। ऐसे में अगर वे शादी योग्य उम्र न होने के कारण शादी नहीं कर सकते, तो भी उन्हें बिना शादी साथ रहने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि कानून में भी लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता दी गई है। इसे घरेलू हिंसा कानून 2005 में मान्यता दी गई है।
कोर्ट ने हादिया मामले में दिये गये हाल के फैसले को उद्धृत करते हुए व्यक्ति की पसंद के संवैधानिक मौलिक अधिकार पर एक बार फिर मुहर लगाई है। कोर्ट ने पसंद के अधिकार से संबंधित हादिया केस के फैसले के कई पैराग्राफ इस आदेश में उद्धत किये हैं। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में लड़की ने लड़के साथ रहने की इच्छा जताई है इसलिए हाईकोर्ट का आदेश रद किया जाता है। हालांकि कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में लड़की की ओर से कोई पेश नहीं हुआ था इसलिए ये लड़की की इच्छा पर निर्भर करेगा कि वो किसके साथ रहना चाहती है।
क्या था मामला
इस मामले में शादी गत वर्ष अप्रैल में हुई थी। शादी के वक्त लड़की की आयु 19 और लड़के की 20 थी। लड़की के पिता ने बेटी के गुमशुदा होने की रिपोर्ट लिखाई। बाद में मामले की सही से जांच न होने का आधार देते हुए हाईकोर्ट मे बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की। हाईकोर्ट में पुलिस ने लड़का लड़की दोनों को पेश किया। हाईकोर्ट ने लड़की की आयु 21 वर्ष से कम होने के कारण शादी को अमान्य घोषित कर दिया और लड़की को वापस पिता के घर भेज दिया था। जिसके खिलाफ लड़के ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।