पत्रकार से प्रधानमंत्री तक का सफर
नई दिल्ली। पत्रकारिता से प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले इन्द्र कुमार गुजराल ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हिस्सा लिया था और भारत छोड़ो आदोलन के दौरान जेल भी गए थे। अप्रैल 1
नई दिल्ली। पत्रकारिता से प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले इन्द्र कुमार गुजराल ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हिस्सा लिया था और भारत छोड़ो आदोलन के दौरान जेल भी गए थे। अप्रैल 1997 में भारत के प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने भारतीय मंत्रिमंडल में विभिन्न पदों पर काम किया। इसके अलावा उन्होंने बीबीसी की हिन्दी सेवा में एक पत्रकार के रूप में भी काम किया था।
बीबीसी हिंदी सेवा में इंद्र कुमार गुजराल ने पत्रकारिता और प्रसारण कौशल के क्षेत्र में अपने हाथ आजमाए, तब वे एक शर्मीले व्यापारी हुआ करते थे एवं बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने थे।
वह इंदिरा गाधी सरकार में सूचना व प्रसारण मंत्री थे। उस समय ये बात सामने आई कि चुनाव में इन्दिरा गाधी ने चुनाव जीतने के लिए असंवैधानिक तरीकों का इस्तेमाल किया जब इससे पहले संजय गाधी ने उत्तर प्रदेश से ट्रकों पर भरकर इन्दिरा जी के समर्थन में प्रदर्शन के लिए दिल्ली में लोग इकट्ठा किये तो उन्होंने इंद्र कुमार गुजराल को इसका मीडिया द्वारा कवरेज करने को कहा जिसको गुजराल ने मानने से इन्कार कर दिया क्योंकि संजय गाधी का कोई सरकारी ओहदा नहीं था। इस कारण से उन्हें सूचना व प्रसारण मंत्रालय से हटा दिया गया और विद्या चरण शुक्ल को यह पद सौंपा गया लेकिन बाद में इन्दिरा गाधी सरकार में मास्को में दूत के तौर पर इन्होंने हीं सोवियत संघ के अफगानिस्तान में हस्तक्षेप का विरोध करने की नीति पर बल दिया। ये भारतीय नीति में एक बड़ा बदलाव था और इसके बाद ही भारत ने सोवियत संघ द्वारा हंगरी और चेकोस्लोवाकिया में भी हस्तक्षेप का विरोध किया।
शुरुआती जीवन :-
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवार से ताल्लुक। पिता अवतार नारायण और माता पुष्पा गुजराल आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका में थे। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1942 में इंद्र कुमार भी जेल गए। 1945 में शीला भसीन के साथ विवाह किया। विभाजन के बाद परिवार भारत आ गया।
राजनीतिक करियर :-
छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़े। उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता से राजनीतिक पारी की शुरुआत की। भारत-पाक युद्ध के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। 1964-76 तक लगातार दो बार राज्यसभा सदस्य रहे
-इंदिरा गांधी ने प्रशासनिक क्षमता को पहचाना और वह कई विभागों में मंत्री रहे। 1975 में आपातकाल के दौर में वह सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे। 1976-80 तक तत्कालीन सोवियत संघ में भारत के राजदूत रहे
जनता दल से नाता:-
-नवें दशक के मध्य में कांग्रेस छोड़कर जनता दल में शामिल हो गए। 1989 के आम चुनाव में जालंधर से नौवीं लोकसभा में संसद सदस्य बने और वीपी सिंह सरकार में विदेश मंत्री रहे। उसी दौरान दो महत्वपूर्ण घटनाओं में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। जब गृह मंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद का कश्मीर में अपहरण हो गया तो वह मसले के समाधान के लिए श्रीनगर गए थे। इसी तरह जब इराक ने कुवैत पर आक्रमण किया तो भारत के प्रतिनिधि के तौर पर वह व्यक्तिगत रूप से इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन से मिले थे। सद्दाम के साथ उनका गले मिलना उस वक्त की अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में छाया रहा। 1992-98 के दौरान तीसरी बार राज्यसभा के लिए चुने गए
गुजराल सिद्धांत:-
1996 में आम चुनावों के बाद एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने। उस सरकार में गुजराल एक बार फिर विदेश मंत्री बने। इसी दौरान पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने के लिए उन्होंने अपना प्रसिद्ध पांच सूत्रीय 'गुजराल सिद्धांत' दिया।
प्रधानमंत्री:-
अप्रैल, 1997 में सरकार को बाहर से समर्थन दे रही कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया। गहरे राजनीतिक संकट और चुनाव को टालने के लिए संयुक्त मोर्चा और कांग्रेस के बीच एक समझौता हुआ। नतीजतन एचडी देवगौड़ा ने इस्तीफा दे दिया। इंद्र कुमार गुजराल को संयुक्त मोर्चा का नया नेता चुना गया और 21 अप्रैल, 1997 को वह देश के 12वें प्रधानमंत्री रहे। उनकी सरकार चारा घोटाला और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन जैसे मसलों पर घिरी। नवंबर, 1997 में जैन कमीशन के मामले पर कांग्रेस ने उनकी सरकार से समर्थन खींच लिया। 28 नवंबर, 1997 को उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। वह कुल मिलाकर 11 महीने प्रधानमंत्री रहे। जिनमें से तीन महीने वह केयर टेकर सरकार के मुखिया रहे। 1998 के आम चुनाव में वह जालंधर से लोकसभा सदस्य बने। 1999 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया।
व्यक्तिगत जीवन:-
इंद्र कुमार को उर्दू भाषा से भी लगाव था। उन्होंने उर्दू में भी लिखा है। उनकी पत्नी शीला भी कवियत्री थीं और उन्होंने पंजाबी, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में कई किताबें लिखी हैं। शीला की पिछले साल मृत्यु हो गई। इंद्र कुमार दो पुत्र नरेश और विशाल गुजराल हैं। उनके भाई सतीश गुजराल प्रसिद्ध चित्रकार और आर्किटेक्ट हैं। नरेश वर्तमान में राज्यसभा सदस्य हैं। भतीजी मेधा ने भजन सम्राट अनूप जलोटा से शादी की है।
गुजराल सिद्धांत :-
विदेश नीति के मामले में अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए इंद्र कुमार गुजराल ने पांच सूत्रीय फार्मूले को दिया। ये सिद्धांत भारतीय विदेश नीति का अहम हिस्सा बन गए हैं :-
-भारत को बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका की यथासंभव मदद करनी चाहिए
- दक्षिण एशिया क्षेत्र के किसी भी देश को क्षेत्र के दूसरे देश के खिलाफ अपनी भूमि का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए
-किसी भी देश को दूसरे देश के अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए
-सभी दक्षिण एशियाई देशों को एक-दूसरे की क्षेत्रीय एकता और संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए
-उनको द्विपक्षीय बातचीत के जरिए मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए।
कला के कद्रदान थे आइके गुजराल
जागरण संवाददाता, गुड़गांव। पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल कला के जबर्दस्त कद्रदान थे। पेंटिंग प्रदर्शनी के लिए यदि उनके पास निमंत्रण आता तो कभी नकारते नहीं थे। न केवल उद्घाटन करने के लिए पहुंचते थे, बल्कि रुककर पेंटिंग देखते थे और कलाकारों को सुझाव भी देते थे।
जाने-माने चित्रकार एलआर गांधी ने बताया कि सन 1973 में उन्होंने पहली बार सोलो पेंटिंग प्रदर्शनी त्रिवेणी कला संगम के घरानी गैलरी में आयोजित की थी। उसका शुभारंभ गुजराल ने ही किया था। उस समय वे सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे। उनके पास जब प्रदर्शनी के उद्घाटन के लिए पहुंचा तो सरल स्वभाव गुजराल ने बिना कुछ पूछताछ किए आमंत्रण स्वीकार कर लिया। वे कहते थे जहां संवेदना है वहीं कला है। गुजराल प्रकृति पर आधारित चित्रों के मुरीद थे। मंजीत बाबा सम्मान से नवाजे गए एलआर गांधी का मानना है कि इंद्रकुमार गुजराल के निधन से कला का एक महान कद्रदान दुनिया से चला गया। उनके भाई सतीश गुजराल भी महान कलाकार व विचारक हैं।
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