आखिर हम अपने देश में अभी तक क्यों ब्रिटिश और मुगलों की गुलामी की मानसिकता के प्रतीक चिह्नों को ढो रहे हैं?
गुलामी के प्रतीकों को मिटाना आवश्यक यह सही समय है जब हम गुलामी के प्रतीक चिह्नों से पीछा छुड़ाकर देश को मानसिक गुलामी की दासता से मुक्त करें ताकि नई पीढ़ी एक स्वाभिमानी और समृद्ध राष्ट्र में सांस ले सकें।
पवन सारस्वत मुकलावा। हम अंग्रेजी राज से भले ही मुक्त हो गए हों, लेकिन उसकी दासता के निशान अभी भी देश के कोने-कोने में दिखाई पड़ते हैं। सड़कों से लेकर बस्तियों के नाम और न जाने कौन-कौन से प्रतीक हमें उसी दासता के बंधन से जोड़े हुए हुए हैं। शायद यही वजह है कि 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो पांच प्रण लेने का आह्वान किया, उनमें से एक गुलाम मानसिकता से मुक्ति का भी था। अच्छी बात है कि अब इस मोर्चे पर कुछ सकारात्मक संकेत दिखने लगे हैं। प्रधानमंत्री के संबोधन के करीब महीने भर बाद आज हैदराबाद शहर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह गुलामी, शोषण और उत्पीड़न से जुड़ी निजाम की ऐसी ही एक निर्मम कड़ी को तोड़ने की पहल करेंगे।
शाह आधुनिक भारत के इतिहास में हैदराबाद के जुड़ाव के उस संघर्ष की दास्तान को सुनाए जाने का सिलसिला शुरू करेंगे, जिसे कतिपय कारणों से अभी तक अपेक्षित रूप से सामने नहीं लाया गया। प्रधानमंत्री ने राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ करने का सराहनीय फैसला किया। राजपथ का नामकरण इंग्लैंड के महाराज किंग जार्ज पंचम के सम्मान में किया गया था। गुलामी के उस प्रतीक को हटाना अनिवार्य हो गया था। मोदी सरकार ने यहां पर सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा लगाने का निर्णय किया, जिन्हें स्वतंत्र भारत के कथित इतिहासकारों ने वह स्थान नहीं दिया, जिसके वह सर्वथा सुपात्र थे। इसी प्रकार भारत में निर्मित पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत आइएनएस विक्रांत को राष्ट्र के नाम समर्पित करने के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने नौसेना के नए ध्वज का अनावरण किया।
नए ध्वज से ब्रिटिश नौसेना के उस प्रतीक को हटा दिया गया, जो पता नहीं किन कारणों से इन 75 वर्षों तक हमारी सामुद्रिक सेना के ध्वज से चिपका रहा। यह उचित ही है कि अब नौसेना के ध्वज में स्वाभिमान के पर्याय छत्रपति शिवाजी के प्रतीक की छाप दिखेगी। इसी साल 26 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम में कई वर्षों से बजाई जाने वाली अंग्रेजी धुन के बजाय भारतीयता से ओतप्रोत धुन को वरीयता दी गई। समग्रता में देखें तो 2014 से अब तक मोदी सरकार ने लगभग अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाने वाले सैकड़ों कानूनों को तिलांजलि दी है। ये स्पष्ट संकेत हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही 15 अगस्त को गुलामी के प्रतीक चिह्नों से मुक्ति का आह्वान किया हो, लेकिन इस पहलू पर वह लंबे समय से मंथन में लगे थे। आखिर हम अपने देश में अभी तक क्यों ब्रिटिश और मुगलों की गुलामी की मानसिकता के प्रतीक चिह्नों को ढो रहे हैं? यह सही समय है जब हम गुलामी के प्रतीक चिह्नों से पीछा छुड़ाकर देश को मानसिक गुलामी की दासता से मुक्त करें, ताकि नई पीढ़ी एक स्वाभिमानी और समृद्ध राष्ट्र में सांस ले सकें।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)