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    सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल कानून पर केंद्र से फरवरी अंत तक मांगा जवाब, आखिर कानून के खिलाफ क्यों हैं BJP नेता?

    By Jagran NewsEdited By: Piyush Kumar
    Updated: Mon, 09 Jan 2023 10:19 PM (IST)

    सोमवार को पूजा स्थल कानून की वैधानिकता को लेकर सुनवाई हुई। बता दें कि भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने पूजा स्थल (विशेष प्रविधान) कानून 1991 के उपबंधों को भेदभाव वाला बताते हुए चुनौती दी है।

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    पूजा स्थल कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पूजा स्थल कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह फरवरी के अंत तक याचिकाओं का जवाब दाखिल कर दे। भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने पूजा स्थल (विशेष प्रविधान) कानून, 1991 के उपबंधों को भेदभाव वाला बताते हुए चुनौती दी है। इस मामले में उनके अलावा भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी व चार अन्य लोगों ने भी याचिका दाखिल कर रखी है। 1991 में लागू हुआ यह कानून कहता है कि पूजा स्थलों की वही स्थिति रहेगी जो 15 अगस्त, 1947 को थी।

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    केंद्र सरकार फरवरी के अंत तक जवाब दाखिल करे: कोर्ट 

    सोमवार को मामला प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और पीएस नरसिम्हा की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लगा था। पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या केंद्र ने मामले में जवाब दाखिल कर दिया है। मेहता ने कहा कि कोर्ट मामले पर सुनवाई की तारीख तय कर दे, वह तब तक जवाब दाखिल कर देंगे। पीठ ने मामले की सुनवाई टालते हुए कहा कि केंद्र सरकार फरवरी के अंत तक जवाब दाखिल करे। इस मामले में जमीयत उलमा ए हिंद और कुछ अन्य लोगों व संस्थाओं ने हस्तक्षेप अर्जियां भी दाखिल कर रखी हैं। कई ने याचिका का विरोध किया है।

    कपिल सिब्बल ने जनहित याचिका पर सुनवाई करने पर उठाया सवाल 

    सोमवार को एक हस्तक्षेप अर्जीकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि याचिका पर उनकी प्राथमिक आपत्तियां हैं, कोर्ट को पहले उन पर सुनवाई करनी चाहिए। सिब्बल ने कहा कि इस संबंध में जनहित याचिका पर विचार नहीं हो सकता जब तक कि उसमें किसी निश्चित ढांचे के बारे में बात न की गई हो क्योंकि इस तरह की जनहित याचिका का अयोध्या राम जन्मभू्िम मामले में दिए गए फैसले पर असर पड़ता है जिसमें कोर्ट ने इस कानून पर कुछ विचार व्यक्त किए हैं। ऐसे में कोर्ट को मामले में अंतिम सुनवाई करने से पहले इन प्राथमिक आपत्तियों पर विचार करना चाहिए।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जब मामले पर सुनवाई होगी तब आपत्तियों पर भी विचार किया जाएगा। एक अन्य हस्तक्षेप अर्जीकर्ता की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि अभी तक इस मामले में केंद्र सरकार का स्पष्ट रुख सामने नहीं आया है, कानून पर सरकार का क्या नजरिया है, यह पता नहीं है। इस बीच ज्ञानवापी मस्जिद, ईदगाह मस्जिद के मामले अदालतों में चल रहे हैं। पिछली सुनवाई 14 नवंबर को सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सरकार इस मामले में विभिन्न पहलुओं को समेटते हुए समग्र हलफनामा दाखिल करेगी। लेकिन अभी तक सरकार ने हलफनामा दाखिल नहीं किया है और सोमवार को सरकार को एक बार फिर जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मिल गया।

    पूजा स्थल कानून, 1991 की वैधानिकता को अश्वनी उपाध्याय ने दी चुनौती

    अश्वनी उपाध्याय ने याचिका में पूजा स्थल कानून, 1991 की वैधानिकता को चुनौती देते हुए कहा है कि यह कानून भेदभाव करता है। इसमें संविधान में मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। कानून 1991 में आया और उसे लागू पूर्व की तारीख 15 अगस्त, 1947 से किया गया। याचिका में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हुआ था, उसके पहले आक्रमणकारियों ने उनके पूजा स्थलों पर जबरन कब्जा कर लिया था, लेकिन वे अपने पूजा स्थलों को वापस लेने की स्थिति में नहीं थे। यह कानून आक्रमणकारियों द्वारा जबरन कब्जाए गए पूजा स्थलों और उनकी बदली गई प्रकृति को मान्यता देता है।

    इसके अलावा कानून में राम जन्मभूमि को छूट दी गई है, जबकि कृष्ण जन्मस्थान को छूट नहीं दी गई है, जबकि दोनों विष्णु का अवतार हैं। यह कानून अपने पूजा स्थल वापस पाने के लिए अदालत में सूट दाखिल करने पर भी रोक लगाता है। जबकि न्यायपालिका से न्यायिक समीक्षा का अधिकार नहीं छीना जा सकता।

    पिछली सुनवाई में सुब्रमण्यम स्वामी चाहते थे कि शीर्ष अदालत कानून के कुछ प्रविधानों को 'रीड डाउन' करे ताकि हिंदू वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद व मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद पर दावा कर सके। जबकि उपाध्याय का दावा था कि पूरा कानून ही असंवैधानिक है और 'रीड डाउन' का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। कानून की भाषा में 'रीड डाउन' का मतलब किसी कानून को असंवैधानिकता के आधार पर रद होने से बचाना होता है।

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