ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने का प्रयास, जानिए कैसे दिखा अरबों वर्ष पहले का अंतरिक्ष
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ ने एक ऐसे टेलीस्कोप को विकसित करते हुए उसे सुदूर अंतरिक्ष में स्थापित करने में सफलता प्राप्त की है जो ब्रह्मांड से संबंधित तमाम रहस्यों को काफी हद तक उजागर करने में सक्षम साबित हो सकता है।

अभिषेक कुमार सिंह। पिछले वर्ष जून में जब ‘धरती की आंख’ कहे जाने वाले अमेरिकी स्पेस एजेंसी ‘नासा’ के हबल स्पेस टेलीस्कोप ने कार्य करना बंद कर दिया तो लगा कि खगोल विज्ञान के एक महत्वपूर्ण कार्य में बाधा आ गई है। वर्ष 1990 में पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किए गए हबल टेलीस्कोप का कंप्यूटर खराब हो गया था। इस कंप्यूटर की मदद से टेलीस्कोप में लगे अन्य उपकरणों को नियंत्रित किया जाता था। ऐसे में ‘नासा’ ने एक नए ताकतवर टेलीस्कोप को विकसित किया। यह नया टेलीस्कोप जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप है, जिससे ली गई अंतरिक्ष की तस्वीरों ने तहलका मचा दिया है।
अंतरिक्ष में स्थापित हबल से सैकड़ों गुना अधिक ताकतवर जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप क्या कर सकता है, इसका अंदाजा हाल में तब हुआ, जब नासा ने इससे ली गई कुछ तस्वीरों को जारी किया। इन तस्वीरों ने एक झटके में कई चीजें साबित कर दीं। जैसे यह अति प्राचीन सितारों, मंदाकिनियों और आकाशगंगाओं का मुआयना कर सकता है। हमारे सौरमंडल के बाहर लाखों प्रकाशवर्ष दूर उन जगहों की थाह पा सकता है जहां सितारों का जन्म हो रहा है। यह टेलीस्कोप अपने इन्फ्रारेड सिस्टम की मदद से कास्मिक (अंतरिक्षीय) धूल के पार जाकर उन पदार्थो का करीबी चित्र ले सकता है, जिन्हें हबल से देखना असंभव था।
कहा जा सकता है कि विश्व के अब तक के सबसे बड़े स्पेस टेलीस्कोप से हाल में जो तस्वीरें मिली हैं, वे यह अंदाजा दे रही हैं कि आखिर जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से हमें क्या जानकारियां मिलने वाली हैं। ये जिज्ञासाएं पृथ्वी के पार जीवन या कहें कि ब्रह्मांड में एक्सोप्लैनेट (पृथ्वी जैसे ग्रहों) की उपस्थिति, ब्लैकहोल, डार्क मैटर, डार्क एनर्जी और न्यूट्रान तारों के अलावा आकाशगंगाएं कैसे बनती हैं और तारे कैसे बनते-बिगड़ते हैं, आदि से जुड़ी हैं। हालांकि यह नहीं कहा जा सकता है कि इन तमाम मौलिक सवालों के कुछ जवाब जेम्स वेब टेलीस्कोप से पूरी तरह मिल सकते हैं, लेकिन यह जरूर है कि इस नई वेधशाला ने जितनी सुग्राह्यता और स्पष्टता के साथ ब्रह्मांड की गहराइयों की तस्वीरें भेजी है, उनसे कई रहस्यों को हल करना आसान हो सकता है।
उम्मीद रहस्यों के सुलझने की : जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से जो शुरुआती तस्वीरें मिली हैं, उनमें से कुछ ने तो विज्ञानियों को भी चौंका दिया है। जैसे एक तस्वीर लगभग साढ़े चार अरब साल पुराने तारा समूह (एसएमएसीएस 0735) की है। हबल टेलीस्कोप इस बारे में पहले कुछ पता नहीं लगा सका था। इस तरह यह पहला अवसर है, जब जेम्स वेब टेलीस्कोप के माध्यम से मनुष्य समय और दूरी के हिसाब से अंतरिक्ष के दूरस्थ इलाकों तक पहुंच सका है। यह तस्वीर आकाशगंगा समुच्च्य (गैलेक्सी क्लस्टर) एसएमएसीएस 0723 की है। यानी इस एक तस्वीर में ही हजारों आकाशगंगाएं मौजूद हैं।
तस्वीर की व्याख्या करते हुए नासा के विज्ञानियों ने कहा है कि इस गैलेक्सी क्लस्टर का संयुक्त द्रव्यमान (मास) एक गुरुत्वीय लेंस की तरह काम करता है। इसके पीछे कई और आकाशगंगाएं मौजूद हैं जो इस लेन्स की वजह से दिखाई देती हैं। शुरुआती ब्रह्मांड की झलक देती यह तस्वीर तो केवल एक नमूना है। जेम्स वेब टेलीस्कोप से ब्रह्मांड के इसी तरह के कई अनजान कोनों और रहस्यों के उजागर होने की उम्मीद की जा रही है। यह टेलीस्कोप जिन अन्य रहस्यों का कुछ अता-पता दे सकेगा, उनमें पृथ्वी के अलावा इस तरह के अन्य ग्रहों की पड़ताल करना है। वैसे हाल के दशक में ऐसे लगभग एक हजार एक्सोप्लैनेट यानी पृथ्वी जैसी संरचना और वातावरण वाले ग्रहों का पता चला है, लेकिन उनके बारे में अब तक प्राप्त विवरण ज्यादा सटीक नहीं हैं। इस नए टेलीस्कोप से इस रहस्य की जांच-पड़ताल हो सकती है। इसी तरह डार्क मैटर, डार्क एनर्जी, आकाशगंगाओं और तारों के जीने-मरने के अलावा ब्लैकहोल के रहस्यों पर से पर्दा उठने की उम्मीद की जा रही है।
हबल का उत्तराधिकारी : जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को जिस हबल टेलीस्कोप से तुलनात्मक रूप से सौ गुना बेहतर बताया जा रहा है, असल में यह उसी हबल के उत्तराधिकारी के रूप में विकसित किया गया है। इसका खाका उसी दौरान खींच लिया गया था, जब हबल को लान्च करने का कार्यक्रम बना था। वर्ष 1989 में नासा ने जेम्स वेब स्पेस को अगली पीढ़ी का टेलीस्कोप बनाने का काम शुरू किया था, जबकि हबल को उसके अगले साल 1990 में अंतरिक्ष में भेजा गया था। हबल और जेम्स वेब जैसे टेलीस्कोप की जरूरत इसलिए पड़ने लगी थी, क्योंकि धरती पर मौजूद सभी तरह के टेलीस्कोप प्रकाश प्रदूषण आदि कई कारणों से सुदूर अंतरिक्ष के चित्र या कोई सूचना ठीक प्रकार से दर्ज नहीं कर पा रहे थे। खगोलविदों को पता चला कि ब्रह्मांड से संबंधित सूचनाएं और आकाशगंगाओं के सटीक चित्र हासिल करने के लिए पृथ्वी की सतह से दूर वेधशालाएं अंतरिक्ष में स्थापित करनी होंगी, ताकि धरती पर मौजूद प्रकाश प्रदूषण या पैदा होने वाली चमक उनके रास्ते में अड़चन न डाल सके।
वैसे तो जेम्स वेब टेलीस्कोप हबल का उत्तराधिकारी है, परंतु इसकी कार्यप्रणाली, इसके उपकरणों, सेंसर्स और पृथ्वी से इसकी दूरी में काफी अंतर है। जहां हबल को पृथ्वी की निचली कक्षा में महज 330 मील की दूरी पर स्थापित किया गया था, वहीं जेम्स वेब को अंतरिक्ष में 10 लाख मील दूर भेजकर वहां से सौरमंडल और बाह्य अंतरिक्ष के करीबी चित्र लेने योग्य बनाया गया। अंतरिक्ष में स्थापित यह अब तक का सबसे ताकतवर और सबसे जटिल इन्फ्रारेड तकनीक से लैस टेलीस्कोप है, जो अन्य ग्रहों पर आक्सीजन आर्गेनिक अणुओं की थाह भी ले सकेगा।
लगभग 10 अरब डालर की लागत वाला जेम्स वेब टेलीस्कोप कई मायनों में हबल से बेहतर है। इतने भारी-भरकम खर्च की कुछ ठोस वजहें भी हैं। मानव इतिहास का यह सबसे महंगा टेलीस्कोप इन्फ्रारेड, आप्टिकल और अल्ट्रावायलेट किरणों को पकड़ने और उनका विश्लेषण करने वाले सेंसरों और लेन्सों से युक्त है। 25 दिसंबर 2021 को फ्रेंच गुयाना स्पेस सेंटर से प्रक्षेपित किए जाने के एक महीने के बाद यह टेलीस्कोप अपनी कक्षा में पहुंच गया था। वैसे इससे पहली तस्वीर हासिल करने में लगभग आठ माह का समय लगा है। चंद्रमा के लिए अपोलो मिशन संचालित करने वाले नासा के एडमिनिस्ट्रेटर जेम्स ई. वेब के नाम पर बनाए गए इस स्पेस टेलीस्कोप इन्फ्रारेड कैमरे और इसके लेन्स (मिरर) ने जेम्स वेब को सबसे बेहतरीन वेधशाला बनने की ताकत दी है। इसमें लगे 21.32 फीट (6.4 मीटर) के सोने से दमकते मिरर और उसकी कार्यप्रणाली ने हबल की तुलना में अत्यधिक सक्षम टेलीस्कोप बना दिया है। इसके लेंस का मिरर बेरिलियम धातु के 18 कोणीय टुकड़ों और 48 ग्राम सोने की परत से बना है जो बेहद निम्न आवृत्ति वाली इन्फ्रारेड तरंगदैध्र्य को पकड़ सकता है। चूंकि बाह्य अंतरिक्ष में मौजूद प्रकाश निम्न आवृत्ति वाली तरंगदैध्र्य का है, इसलिए जेम्स वेब वह काम कर पा रहा है जो हबल नहीं कर पा रहा था।
हबल हमारी आंख की तरह अल्ट्रावायलेट तरंगदैध्र्य वाले प्रकाश को देख पाता था, जबकि जेम्स वेब से कास्मिक बादलों के पार का अंतरिक्ष भी साफ दिखता है। अरबों वर्ष पहले का यह प्रकाश निम्न आवृत्ति वाली तंरगदैध्र्य का है, जिसे हबल जैसे टेलीस्कोप से देखना संभव नहीं था। पर हम हबल के योगदान को इस मौके पर नकार नहीं सकते। इसमें कोई संदेह नहीं कि हबल एक बेहतरीन और उपयोगी टेलीस्कोप था, लेकिन सौरमंडल और अंतरिक्ष से जुड़ी तमाम गुत्थियों को सुलझाने के दृष्टिकोण से अत्याधुनिक लेन्स वाला जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप समय की आवश्यकता है। अब माइक्रोवेव व रेडियो टेलीस्कोपों को विकसित किया जाना है। जाहिर है कि ये और भी एडवांस्ड टेलीस्कोप होंगे, जिनसे ब्रह्मांड-अंतरिक्ष से जुड़ी अनगिनत पहेलियों को सुलझाया जा सकेगा।
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से 13 अरब वर्ष पहले की तस्वीर (गैलेक्सी क्लस्टर एसएमएसीएस 0723 की) कैसे मिली, इसकी कहानी अपनेआप में दिलचस्प है। दरअसल हमारा दिमाग भी किसी दृश्य को तभी दर्ज करता है, जब हम अपनी आंख से उस दृश्य को प्रत्यक्ष रूप से अपने सामने देखते हैं। इसी तरह कैमरे भी किसी तस्वीर में सामने उपस्थित दृश्य को प्रकाश की किरणों के माध्यम से उसके वास्तविक समय में उतार पाते हैं। तो आखिर जेम्स वेब टेलीस्कोप अरबों साल पहले के ब्रह्मांड की तस्वीर कैसे उतार लाया। वह भी तब जबकि हमारी अपनी पृथ्वी भी महज साढ़े चार अरब साल पुरानी है। एक झटके में ऐसा लगता है कि जेम्स वेब टेलीस्कोप का इन्फ्र ारेड कैमरा समय से पीछे जा सकता है यानी टाइम ट्रैवल कर सकता है। पर ऐसा नहीं है। ऐसा इसलिए हुआ है कि अंतरिक्ष में लाखों मील भीतर जाकर भी यह टेलीस्कोप अपने सामने प्रत्यक्ष दिख रहे ब्रह्मांड को देख-समझ पा रहा है।
इसे ऐसे समझा जा सकता है कि हर सुबह जब सूर्योदय होता है तो उसका प्रकाश हम तक आने में साढ़े आठ मिनट का समय लगता है। ऐसे में यदि किसी दिन सूर्य विस्फोट के साथ खत्म भी हो जाए, तो साढ़े आठ मिनट तक हमें इसका पता नहीं चलेगा। हमें वह सामने अपने संपूर्ण आकार में ही दिखेगा। साढ़े आठ मिनट बीतने के बाद ही सूर्य पर हुए विस्फोट की घटना का अहसास होगा। इसका अभिप्राय यह हुआ कि जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने जिस गैलेक्सी क्लस्टर एसएमएसीएस 0723 की तस्वीर उतारी है, वह असल में 13 अरब वर्ष पहले की है। लेकिन करोड़ों प्रकाशवर्ष दूर होने के कारण उसका प्रकाश इस वेधशाला के कैमरे के लेंसों तक अब पहुंचा है। यानी इस बीच कई अरब साल पहले यदि यह गैलेक्सी नष्ट हो गई होगी, तो भी हमें इसका पता अरबों वर्ष बाद ही लग पाएगा। वैसे इस वेधशाला की खूबी यह भी है कि बेरिलियम धातु के 18 कोणों से तैयार फूल के आकार जैसा दिखने वाला इसका ताकतवर मिरर (लेंस) कास्मिक बादलों और अंतरिक्षीय धूल के पार हो रही गतिविधियों को स्पष्टता के साथ देख पाता है।
[संस्था एफएसआइ ग्लोबल से संबद्ध]
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