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    लॉकडाउन से कीट-पतंगों को भी मिला जीवनदान, शुभ संकेत दे रही भंवरे की गुंजन

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Thu, 14 May 2020 09:48 AM (IST)

    COVID-19 Lockdown India लॉकडाउन से कीट-पतंगों को भी मिला जीवनदान कीट परागण बढ़ने से शाकभाजी फूलों का उत्पादन बढ़ने की आस।

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    लॉकडाउन से कीट-पतंगों को भी मिला जीवनदान, शुभ संकेत दे रही भंवरे की गुंजन

    किशोर जोशी, नैनीताल। COVID-19 Lockdown India: लॉकडाउन के बाद नैनीताल और उसके समीपवर्ती इलाकों के साथ-साथ कुमाऊं भर में फूल-फूल पर बहुतायत में भंवरे मंडरा रहे हैं। प्रकृति को सजनेसंवरने का मौका मिला है तो भंवरों के संग-संग मधुमक्खी व तितलियां भी खूब रस ले रहे हैं। इनका दिखना प्रकृति और परागण दोनों के लिए शुभ संकेत है। कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन में प्रदूषण का स्तर घटा और कोलाहल कम हुआ तो अस्तित्व के संकट से जूझ रहे भंवरे को भी जीवनदान मिल गया।

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    मधुमक्खी कुल का सदस्य बंबल-बी या भ्रमर कीट-पतंगों के वर्ग का जीव है। इसका जीवन चक्र 28 दिन होता है। यह परागण करने वाला कीट है। फल एवं अन्न उत्पादन में दो तिहाई भूमिका इसकी मानी जाती है। यह दक्षिण भारत में वर्ष भर दिखता है तो अन्य जगहों में मार्च से नवंबर तक। यह पुष्प से मकरंद व टांगों से परागकण एकत्र करता है। जंगल में सड़ीगली लकड़ियों में इसका निवास स्थान है। इसकी करीब ढाई सौ प्रजातियां होती हैं। खेत-बागान घटने, जंगल में भी मानवीय गतिविधियां व प्रदूषण बढऩे, दावानल, जंगलों के कटान, कोलाहल की वजह से भंवरे का कुमाऊं में भी दिखना लंबे अर्से से कम हो गया था। अब जब सब कुछ बदला है तो भंवरे भी काफी तादात में नैनीताल, भीमताल, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ के फूल और फल पैदावार वाले क्षेत्रों में मंडरा रहे हैं।

    लॉकडाउन के बाद खूब दिखने लगे भंवरे : कीट- पतंगों व पक्षियों पर नैनीताल के निकट बजून निवासी शिक्षिका निर्मला पांडेय दशकों से काम कर रही हैं। बताती हैं कि भंवरे की गुम हो चुकी गुनगुन लॉकडाउन के बाद से फिर सुनाई देने लगी है। यह प्रकृति के लिए बेहद शुभ संकेत है। नैनीताल के खुर्पाताल, बजून, मंगोली, खमारी, अधोड़ा, पंगोठ, मेहरोड़ा, सौड़, तल्ला-मलला बगड़ आदि इलाकों में भंवरों की गुनगुन खूब सुनाई दे रही है।

    लॉकडाउन से प्रकृति का नियम यानि प्राकृतिक परागण बढ़ा है, जो कि शुभ संकेत है। मानव व जीव सभ्यता के लिए कीट परागण व पर परागण की प्रक्रिया बेहद महत्वपूर्ण है। मधुमक्खी, भंवरों व तितिलयों का इसमें बड़ा योगदान है। परागण से ही कार्बोहाइड्रेड या मीठा स्वाद मिलता है।

    - प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट, जंतु विज्ञानी, कुमाऊं विवि नैनीताल