भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगा 'शांति' विधेयक, निजीकरण को मिलेगा बढ़ावा
परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने और 2047 के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लाया गया सस्टेनेबल हॉर्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ...और पढ़ें

भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगा 'शांति' विधेयक (सांकेतिक तस्वीर)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने और 2047 के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लाया गया सस्टेनेबल हॉर्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फार ट्रांसफार्मिंग इंडिया (शांति) विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित हो चुका है।
यह विधेयक परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व (सीएलएनडी) अधिनियम के प्रविधान को सुव्यवस्थित करता है। आइये जानते हैं यह भारत को परमाणु ऊर्जा में आत्मनिर्भर बनाने में कैसे मदद कर सकता है?
परमाणु क्षेत्र में निजीकरण को मिलेगा बढ़ावा
यह विधेयक राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक हित से समझौता किए बिना 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता के राष्ट्रीय लक्ष्य प्राप्त करने के लिए जिम्मेदार निजी और संयुक्त उद्यम भागीदारी को सक्षम बनाता है।
यह विधेयक परमाणु क्षेत्र को शर्तों के तहत निजीकरण के लिए खोलता है, जो स्पेस सेक्टर को निजी क्षेत्र के लिए खोले जाने के बाद आया है। हालांकि, निर्धारित सीमा से अधिक यूरेनियम खनन का अधिकार पूरी तरह से सरकार के पास ही रहेगा।
इसके साथ ही प्रयुक्त ईंधन के प्रबंधन की जिम्मेदारी भी सरकार के पास रहेगी। स्त्रोत सामग्री, विखंडनीय सामग्री और भारी जल जैसी रणनीतिक सामग्री पर सरकार का कड़ा नियंत्रण बना रहेगा।
बिजली उत्पादन तक सीमित नहीं परमाणु ऊर्जा
परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल केवल बिजली उत्पादन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह कैंसर के इलाज, कृषि और उद्योग जैसे कई क्षेत्रों में भी उपयोगी है। यह विधेयक नवीकरणीय ऊर्जा के साथ-साथ डाटा प्रोसेसिंग, स्वास्थ्य सेवा और उद्योग जैसे क्षेत्रों से बढ़ती मांग को पूरा करने में सहायक होगा।
इसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा, खाद्य एवं कृषि, उद्योग एवं अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में परमाणु एवं विकिरण प्रौद्योगिकियों के उपयोग को नियमन के दायरे में लाना है, जबकि अनुसंधान, विकास एवं नवाचार गतिविधियों को लाइसें¨सग आवश्यकताओं से छूट प्रदान करना है।
कठोर सुरक्षा मानक
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डा. जितेंद्र ¨सह ने लोकसभा में कहा कि परमाणु सुरक्षा मानक अपरिवर्तित और अडिग हैं, जो 1962 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम में निहित कड़े सिद्धांतों द्वारा संचालित हैं। सिद्धांत सुरक्षा पहले, उत्पादन बाद में पर जोर देता है।
सुरक्षा मानकों में कठोर निरीक्षण व्यवस्था शामिल है, जिसमें निर्माण के दौरान त्रैमासिक निरीक्षण, संचालन के दौरान द्विवार्षिक निरीक्षण, पांच-वार्षिक लाइसेंस नवीनीकरण और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के मापदंडों के अनुरूप निगरानी शामिल है। भारत के परमाणु संयंत्र भौगोलिक रूप से भूकंपीय फाल्ट क्षेत्रों से दूर स्थित हैं, जिससे भारतीय रिएक्टरों में विकिरण का स्तर निर्धारित वैश्विक सुरक्षा सीमाओं से कई गुना कम है।
तय होगी जवाबदेही
विधेयक में परमाणु क्षति के लिए एक संशोधित एवं व्यावहारिक नागरिक दायित्व ढांचा प्रस्तावित किया गया है। परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड को वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है और सुरक्षा उपायों, गुणवत्ता आश्वासन एवं आपातकालीन तैयारियों से संबंधित तंत्रों को सुदृढ़ किया गया है।
इसमें परमाणु ऊर्जा निवारण सलाहकार परिषद सहित नई संस्थागत व्यवस्थाओं के निर्माण, दावा आयुक्तों की नियुक्ति और गंभीर परमाणु क्षति से जुड़े मामलों के लिए परमाणु क्षति दावा आयोग का प्रविधान है, जिसमें विद्युत अपील न्यायाधिकरण अपीलीय प्राधिकरण के रूप में कार्य करेगा।
प्रस्तावित कानून परमाणु ऊर्जा के विस्तार को सुरक्षा, जवाबदेही और जनहित के साथ संतुलित करने का प्रयास करता है, जिससे परमाणु ऊर्जा को ऊर्जा सुरक्षा और कम कार्बन वाले भविष्य की दिशा में व्यापक राष्ट्रीय प्रयास के अंतर्गत रखा जा सके।
स्त्रोत: आइएएनएस

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