दुनियाभर में गहराती बाल श्रम की समस्या, बच्चों से स्कूल जाने का छीन लेता है अधिकार
बाल मजदूरी बच्चों से स्कूल जाने का अधिकार छीन लेती है और वे गरीबी के चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाते हैं। कोविड-19 महामारी के कारण बढ़ी हुई आर्थिक अस ...और पढ़ें

नई दिल्ली, जेएनएन। यूनिसेफ के अनुसार दुनिया भर में बाल मजदूरों की संख्या बढ़कर 160 मिलियन हो गई है। 2016 में यह आंकड़ा 94 मिलियन था। कोविड-19 महामारी के कारण बढ़ी हुई आर्थिक असुरक्षा के कारण गरीब परिवारों के बच्चों को मजबूरी में बाल श्रम करना पड़ रहा है। लगातार बढ़ती बाल श्रमिकों की संख्या वैसे ही चिंता का विषय बनी हुई थी। कोरोना संकट ने इसे और भयावह बना दिया है। बाल श्रम बालकों को उन मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित करता है जिस पर उनका नैसर्गिक अधिकार होता है। यह भौतिक, मानसिक, सामाजिक और नैतिक विकास को भी बाधित करता है।
बाल श्रम विश्व में एक ऐसी समस्या है जिसके निदान के बगैर बेहतर भविष्य की कल्पना संभव नहीं है। यह स्वयं में एक राष्ट्रीय और सामाजिक कलंक तो है ही, अन्य समस्याओं की जननी भी है। देखा जाए तो यह नौनिहालों के साथ जबरन होने वाला ऐसा व्यवहार है जिससे राष्ट्र या समाज का भविष्य खतरे में पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे लेकर वर्ष 1924 में पहल तब हुई, जब जिनेवा घोषणापत्र में बच्चों के अधिकारों को मान्यता देते हुए पांच सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की गई। इसके चलते बाल श्रम को प्रतिबंधित किया गया। साथ ही बच्चों के लिए कुछ विशिष्ट अधिकारों को स्वीकृति दी गई।बाल मजदूरी और शोषण के अनेक कारण हैं जिनमें गरीबी, वयस्कों तथा किशोरों के लिए अच्छे कार्य करने के अवसरों की कमी, प्रवास आदि शामिल हैं। ये सब सिर्फ कारण नहीं, बल्कि भेदभाव से पैदा होने वाली सामाजिक असमानताओं के परिणाम भी हैं। बच्चों का काम स्कूल जाना है, न कि मजदूरी करना। बाल मजदूरी बच्चों से स्कूल जाने का अधिकार छीन लेती है। और वे पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी के चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाते हैं।
भारत में बाल श्रम निषेध के लिए 1948 के कारखाना अधिनियम से लेकर कई कानून बनाए गए हैं। बावजूद इसके बाल श्रमिकों की संख्या में निरंतर वृद्धि दर्ज की गई है। कुल श्रम शक्ति का पांच फीसद बाल श्रम ही है। इसको रोकने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है। चूंकि भारत में लगभग 80 प्रतिशत बाल श्रम ग्रामीण क्षेत्रों में होता है। इसलिए पंचायत बाल श्रम को कम करने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है। इसके साथ माता-पिता को प्रोत्साहित करना होगा कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें। ऐसा माहौल भी तैयार करना होगा जहां बच्चों को काम न करना पड़े। इसका भी आकलन करते रहना होगा कि बच्चों को स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध हों। गांवों में आंगनबाड़ी को सक्रिय रखने की भी जरूरत है, ताकि जो भी कार्यरत माताएं हैं उनके छोटे बच्चों की जिम्मेदारी उनके बड़े भाई-बहनों पर न आ पाए, क्योंकि ऐसे में बच्चों के स्कूल छोड़ने की संभावना ज्यादा रहती है।
(लेखक- नृपेंद्र अभिषेक नृप, सामाजिक मामलों के जानकार हैं)

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