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    लगातार बढ़ता जा रहा है जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का दबाव, पूरी दुनिया के लिए है चिंता का विषय

    By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By:
    Updated: Mon, 01 Nov 2021 10:51 PM (IST)

    COP-26 Climate Summit स्काटलैंड के ग्लासगो में करीब 200 देश 26वीं कांफ्रेंस आफ पार्टीज (COP-26) में इस मसले पर चर्चा कर रहे हैं। समस्या कारण दुष्प्रभाव और समाधान को कुछ ग्राफ से समझने का प्रयास करते हैं ।

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    ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ने के कारण लगातार बढ़ रहा औसत वैश्विक तापमान

    नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। औद्योगिक काल के बाद से विकास के नाम जिस तरह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता चला गया, वह अब पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन गया है। स्काटलैंड के ग्लासगो में करीब 200 देश 26वीं कांफ्रेंस आफ पार्टीज (सीओपी26) में इस मसले पर चर्चा कर रहे हैं। समस्या, कारण, दुष्प्रभाव और समाधान को कुछ ग्राफ से समझने का प्रयास करते हैं।

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    समस्या : वातावरण में बढ़ रहा कार्बन डाई आक्साइड का स्तर

    300, 320, 340, 360, 380, 400, 420 (पा‌र्ट्स प्रति मिलियन)

    1960, 1970, 1980, 1990, 2000, 2010, 2020

    औद्योगिक क्रांति के बाद से कार्बन डाई आक्साइड का स्तर लगातार बढ़ रहा है। अभी यह करीब 40 लाख साल के सर्वोच्च स्तर पर है। विज्ञानियों का कहना है कि इसके बढ़ने की दर 6.6 करोड़ साल में सर्वाधिक है।

    कारण-1 : जीवाश्म ईधन का प्रयोग

    0, 10, 20, 30, 40

    (अरब टन सालाना)

    1960, 1970, 1980, 1990, 2000, 2010, 2020

    हर साल कोयला और पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईधनों के जलने से वातावरण में करोड़ों टन कार्बन डाई आक्साइड मुक्त होती है। 2020 में कोरोना के कारण इसमें थोड़ी सी कमी आई थी, लेकिन यह बहुत उत्साहजनक नहीं है।

    कारण-2 : कृषि क्षेत्र से मीथेन का उत्सर्जन

    5, 5.5, 6, 6.5, 7, 7.5, 8, 8.5

    (मिलियन किलोटन कार्बन डाई आक्साइड के समतुल्य)

    1970, 1980, 1990, 2000, 2010, 2018

    मीथेन भी एक अहम ग्रीनहाउस गैस है और इसका उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है। विशेषतौर पर पशुपालन और लैंडफिल साइट्स का इसमें अहम योगदान है।

    दुष्प्रभाव-1 : बढ़ता औसत वैश्विक तापमान

    -0.6, -0.4, -0.2, 0, 0.2, 0.4, 0.6, 0.8

    (1960 से 1990 के औसत की तुलना में)

    1850, 1900, 1950, 2000

    ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ने के कारण लगातार औसत वैश्विक तापमान बढ़ता जा रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से इसमें बढ़ोतरी का क्रम तेज हुआ है। बढ़ती गर्मी से अप्रत्याशित मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं।

    दुष्प्रभाव-2 : समुद्र का बढ़ता जलस्तर

    0, 20, 40, 60, 80, 100

    (मिलीमीटर में)

    1993, 1998, 2003, 2009, 2014, 2020

    बर्फ पिघलने के कारण समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। अभी यदि वैश्विक तापमान में वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस पर रोक भी दिया जाए, तो भी दुनिया में हर पांचवां व्यक्ति आने वाले दशकों में अपने शहर को डूबते देखेगा।

    दुष्प्रभाव-3 : कम होती आर्कटिक की बर्फ

    3, 4, 5, 6, 7, 8

    (मिलियन वर्ग किलोमीटर)

    1980, 1990, 2000, 2010, 2020

    जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, समुद्र की बर्फ पिघल रही है और बर्फ पिघलने से समुद्र का पानी ज्यादा सूर्य की रोशनी सोखने लगता है। यह तापमान के और बढ़ने का कारण बनता है।

    समाधान की ओर-1 : पवन और सौर ऊर्जा का बढ़ता प्रयोग

    0, 2, 4, 6, 8

    (टेरावाट में)

    कोयला, पवन, सौर

    2000, 2010, 2020, 2030, 2040, 2050

    सस्ती होती टेक्नोलाजी के कारण अक्षय ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग बढ़ रहा है। कोयले का प्रयोग भी घटने का अनुमान है। हालांकि अभी इस दिशा में और अधिक प्रयास किए जाने की जरूरत है।

    समाधान की ओर-2 : इलेक्ट्रिक वाहनों का बढ़ता चलन

    0, 5, 10, 15, 20, 25, 30, 35, 40

    (लाख में)

    2010, 2012, 2014, 2016, 2018, 2020

    जीवाश्म ईधनों से चलने वाले वाहनों की तुलना में अभी इलेक्टि्रक वाहनों की संख्या बहुत कम है। हालांकि पिछले कुछ वर्षो से जिस तरह से लगातार इनकी संख्या बढ़ रही है, वह उम्मीद बढ़ाने वाली है।

    समाधान की ओर-3: सस्ती होती लिथियम आयन बैट्री की कीमत

    0, 200, 400, 600, 800, 1000

    (कीमत डालर प्रति किलोवाट क्षमता में)

    2010, 2011, 2012, 2013, 2014, 2015, 2016, 2017, 2018, 2019, 2020

    पवन और सौर जैसी अक्षय ऊर्जा के प्रयोग में बैट्रियों का इस्तेमाल बहुत अहम है। पिछले एक दशक में बैट्रियों की कीमत में उल्लेखनीय कमी आई है। इससे समाधान की नई राह खुल रही है।