ब्राजील में होने वाले सीओपी-30 में गूंजेगा पेरिस समझौते के अमल का मुद्दा, जुटेंगे दुनिया भर के देश
ब्राजील के बेलम में होने वाली सीओपी-30 में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पेरिस समझौते के कार्यान्वयन पर चर्चा होगी। विकसित देशों द्वारा आर्थिक सहायता के वादों और विकासशील देशों की चुनौतियों पर भी विचार किया जाएगा। भारत अपने लक्ष्यों और प्रगति का विवरण देगा, जिसमें पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली को बढ़ावा देना और 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य शामिल है।

पेरिस समझौते पर अमल करेंगे दुनिया के देश।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए 10 साल पहले यानी 2015 में हुए चर्चित पेरिस समझौते पर अब तक किस देश ने कितना अमल किया, इसे लेकर ब्राजील के बेलम में 10 नवंबर से शुरू हो रही कांफ्रेंस आफ पार्टीज (सीओपी-30) में अहम चर्चा हो सकती है।
इसके साथ ही चर्चा होगी कि इस समझौते के तहत विकसित देशों को ओर से आर्थिक व तकनीकी सहायता मुहैया कराने को लेकर किए गए वादों को किन-किन देशों ने पूरा किया। साथ ही दुनिया के जो विकासशील देश इससे जुड़े लक्ष्य को हासिल नहीं पाए, उसके पीछे क्या कारण थे।
लक्ष्यों और प्रगति का ब्यौरा देगा भारत
यह सम्मेलन 21 नवंबर तक चलेगा। इस दौरान भारत भी अपने नए लक्ष्यों व प्रगति का ब्यौरा देगा। वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की अगुवाई में भारत का प्रतिनिधिमंडल इस सम्मेलन में हिस्सा लेगा। सीओपी में इन मुद्दों के अतिरिक्त भारत के मिशन लाइफ की तर्ज पर पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए नागरिक फोकस योजना बनाने के विषय को शामिल किया गया है।
इन बातों पर दिया जाएगा जोर
इसमें लोगों को पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली से जोड़ने से संबंधित पहलों पर जोर दिया जा सकता है। कार्बन क्रेडिट और कार्बन सिंक के मुद्दे भी सम्मेलन में लंबी चर्चा होगी। भारत पिछले कुछ सालों में इस दिशा में उठाए गए कदमों को दुनिया के सामने रख सकता है। इनमें एक पेड़ मां के नाम अभियान के तहत 140 करोड़ से अधिक पौधे अब तक रोपे जा चुके हैं।
पेरिस समझौते के मद्देनजर भारत ने 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को लेकर नेट-जीरो का लक्ष्य रखा है। वर्ष 2030 तक इसके तहत गैर-जीवाश्व ईंधन ऊर्जा को पांच सौ गीगावाट तक बढ़ाना है। इनमें अपनी जरूरत का करीब पचास प्रतिशत रिन्यूएबल ऊर्जा के जरिए पूरा करना है।
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक सम्मेलन में वह ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व करेगा। साथ ही वह इन देशों के सामने खड़ी चुनौतियों को प्रमुखता से रखेगा। इनमें वे सभी देश शामिल हैं, जो तकनीकी और सामाजिक रूप से कम विकसित है।

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