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    इटली से वापस लाई जाएगी भगवान अवलोकितेश्वर पद्मपाणि की मूर्ति, 20 साल पहले बिहार के कुर्किहार से की गई थी चोरी

    By Neel RajputEdited By:
    Updated: Tue, 22 Feb 2022 11:06 PM (IST)

    एएसआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि मूर्ति को लेकर जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार इटली के मिलान पहुंचने से पहले यह मूर्ति कुछ समय के लिए फ्रांस के कला बाजार में भी रखी गई थी। वहां इसे बेचने की तैयारी थी।

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    मूर्ति वापस लाने की तैयारी में जुटा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

    नई दिल्ली, वीके शुक्ला। मोदी सरकार आने के बाद तेजी से शुरू हुई देश में धरोहर वापस लाने की रणनीति के तहत अब जल्द ही इटली से बौद्ध भगवान अवलोकितेश्वर पद्मपाणि की मूर्ति लाई जाएगी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने एक माह में दिल्ली लाने की तैयारी की है। मूर्ति को बिहार के गया जिला के कुर्किहार मंदिर में स्थापित किया जा सकता है जहां से दो दशक पहले इसे चोरी कर लिया गया था।

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    कुर्किहार देश के महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है। मूर्ति में अवलोकितेश्वर को अपने बाएं हाथ में एक खिलते हुए कमल की डंडी पकड़े हुए दिखाया गया है, जिसमें उनके पैरों के पास दो परिचारिकाएं हैं। एएसआइ के अनुसार, मूर्ति पत्थर की बनी है, जिसे आठवीं से लेकर 12वीं शताब्दी के बीच का बताया जा रहा है। एएसआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि मूर्ति को लेकर जो जानकारी सामने आई है, उसके अनुसार इटली के मिलान पहुंचने से पहले यह मूर्ति कुछ समय के लिए फ्रांस के कला बाजार में भी रखी गई थी। वहां इसे बेचने की तैयारी थी।

    इस धरोहर को वापस देश को दिलाने के लिए सिंगापुर इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट और आर्ट रिकवरी इंटरनेशनल ने अहम भूमिका अदा की है। भारतीय मंदिर में इसे दिखाते हुए अभिलेखीय तस्वीरों के साथ प्रस्तुत करने पर मूर्ति के मालिक ने इसे स्वेच्छा से दे दिया। हैंडओवर की शर्त के तहत मूर्ति के मालिक की पहचान उजागर नहीं की जाएगी। बता दें कि कुर्किहार में सन 1930 में एक पुरातात्विक खोदाई में 220 से अधिक मूर्तियां मिली थीं। उनमें से अधिकांश मूर्तियां अब बिहार के पटना संग्रहालय में हैं।

    कौन हैं अवलोकितेश्वर पद्मपाणि

    भगवान अवलोकितेश्वर पद्मपाणि बौद्ध धर्म के सर्वाधिक लोकप्रिय बोधिसत्वों में से एक हैं। बौद्ध धर्म की मान्यताओं के अनुसार, अवलोकितेश्वर अपनी करुणा में कोई भी रूप धारण करके किसी दुखी प्राणी की सहायता के लिए आ सकते हैं। चीनी धर्मयात्री फाहियान 399 ई. में जब भारत आए थे, तब उन्होंने सभी जगह अवलोकितेश्वर की पूजा होते देखी। अवलोकितेश्वर को अक्सर एक कमल का फूल पकड़े हुए दर्शाया जाता है। कथाओं में भी उनकी कमल-प्रकृति का वर्णन मिलता है।