प्राइम टीम, नई दिल्ली। बीते आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्टार्टअप्स के लिए कई ऐलान किए थे, लेकिन विदेशी निवेशकों पर एंजेल टैक्स लगाने की एक घोषणा सब पर भारी पड़ गई थी। हालांकि, तीन महीने के भीतर ही सरकार ने प्रस्तावित एंजेल टैक्स के दायरे को छोटा करते हुए 21 देशों के निवेशकों को इससे छूट प्रदान कर दी है। इनमें अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, दक्षिण कोरिया, इजरायल के अलावा यूरोप के 14 देश शामिल हैं। हालांकि, देश में एफडीआई के प्रमुख स्रोत मॉरीशस, सिंगापुर और यूएई इस सूची में शामिल नहीं हैं। यानी टैक्स हैवेन समझे जाने वाले देशों के निवेशकों पर यह टैक्स लागू रहेगा।

इससे पहले, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड यानी सीबीडीटी ने 19 मई को एक ड्राफ्ट जारी करके केंद्रीय बैंकों, सॉवरेन वेल्थ फंड, सरकार नियंत्रित संगठनों, बैंकों और बीमा कंपनियों को छूट का ऐलान किया था था। इसके अलावा सेबी के पास रजिस्टर्ड तथा मजबूत रेगुलेटरी ढांचा वाले देशों की एंटिटी- कैटेगरी 1 एफपीआई, एंडोमेंट फंड, पेंशन फंड जैसे निवेशकों को भी एंजेल टैक्स से छूट का प्रस्ताव किया गया था।

विशेषज्ञों की मानें तो सरकार नहीं चाहती है कि अमेरिका और यूके जैसे देशों से स्टार्टअप को मिलने वाली फंडिंग पर कोई असर पड़े, लेकिन वह टैक्स हैवेन के जरिए आने वाले निवेश पर नरम पड़ने को तैयार नहीं है। आइए 10 सवालों की की मदद से समझते हैं, एंजेल टैक्स का मुद्दा क्या है, इसे क्यों लागू किया गया, नए बदलावों का क्या असर होगा।

अब तक 120 SaaS स्टार्टअप को एक्सेलरेटर फंड उपलब्ध करा चुके उपेक्खा (Upekkha) के मैनेजिंग पार्टनर और सह-संस्थापक शेखर नायर का कहना है, “हर कोई इसे बेहद सकारात्मक कदम के तौर पर बता रहा है। 2023-24 के बजट में सभी विदेशी निवेशकों को एंजेल टैक्स के दायरे में लाया गया था, जिसमें अब बदलाव किया गया है। इसलिए अगर बजट में किए गए बदलावों के नजरिए से देखें तो स्थिति उतनी सहज नहीं है। मेरे विचार से विदेशी निवेशकों को एंजेल टैक्स के दायरे में लाने का फैसला ही सही नहीं था। यह भारतीय स्टार्टअप में विदेशी निवेश को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा। इसे यूं कह सकते हैं कि बजट प्रस्तावों से जो चोट लगी थी, उस पर अब मरहम लगाने की कोशिश की गई है। व्यक्तिगत रूप से मैं किसी चोट के ही पक्ष में नहीं हूं।”

क्या है एंजेल टैक्स का मुद्दा?

भारत में एंजेल टैक्स नया नहीं है। इसकी शुरुआत 2012 में हुई थी। भारतीय निवेशकों से मिलने वाली फंडिंग पर एंजेल टैक्स पहले से लागू है। लेकिन बीते आम बजट में वित्त मंत्रालय ने विदेशी निवेशकों से मिलने वाले निवेश को भी एंजेल टैक्स के दायरे में ला दिया।

अब क्या बदलाव हुआ है?

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड यानी सीबीडीटी की ओर से जारी अधिसूचना में 21 देशों अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्पेन, ऑस्ट्रिया, कनाडा, चेक रिपब्लिक, बेल्जियम, डेनमार्क, फिनलैंड, इजरायल, इटली, आइसलैंड, जापान, दक्षिण कोरिया, रूस, नॉर्वे, न्यूजीलैंड और स्वीडन के निवेशकों को एंजेल टैक्स में छूट दे दी गई है।

आखिर एंजेल टैक्स है क्या?

यदि कोई अनलिस्टेड कंपनी फेयर वैल्यू से ऊंची कीमत पर शेयर बेचकर पूंजी उठाती है तो फेयर वैल्यू और सेल वैल्यू के अंतर को उस कंपनी की आय माना जाता है और उस पर आयकर लगता है। इसे ही एंजेल टैक्स कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी स्टार्टअप के शेयर का फेयर प्राइस 100 रुपए है, लेकिन वह 200 रुपए प्रति शेयर के भाव से फंड उठाती है तो इस 100 रुपए के प्रीमियम पर उसे एंजेल टैक्स भरना होगा।

फेयर वैल्यू कैसे तय होती है?

भारतीय निवेशकों के लिए फेयर वैल्यू तय करने के दो तरीके हैं, पहला डिस्काउंटेड कैश फ्लो (डीसीएफ) और दूसरा नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) पद्धति। लेकिन सीबीडीटी विदेशी निवेशकों के लिए 5 और मूल्यांकन विधियों को शामिल करने जा रहा है। इसके बारे में जल्द ही जानकारी साझा की जाएगी।

इन देशों को ही छूट क्यों मिली है?

नांगिया एंडरसन इंडिया के चेयरमैन राकेश नांगिया के मुताबिक, इन 21 देशों में वित्तीय नियमन का ढांचा काफी मजबूत है। सरकार ऐसे देशों से अधिक विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करना चाहती है, जिनके पास मजबूत नियामकीय ढांचा है। यह कदम बेहिसाब धन के प्रवाह को रोकने के लिए विदेशी निवेश को एंजेल टैक्स के दायरे में लाने के सरकार के शुरुआती इरादे के अनुरूप है।

ट्रैक्सन टेक्नोलॉजीज की सह-संस्थापक नेहा सिंह के अनुसार, “अमेरिका, यूके, फ्रांस समेत 21 देशों के निवेशकों को एंजेल टैक्स से छूट देने का फैसला मजबूत रेगुलेटरी ढांचा वाले देशों से निवेश बढ़ाने के मकसद से लिया गया है। इसे प्राइवेट मार्केट में बेहिसाब पैसे का सर्कुलेशन घटाने के सरकार के लक्ष्य के अनुरूप कहा जा है।”

शेखर कहते हैं, “फिर भी सभी देशों पर टैक्स लगाने की जगह 21 देशों को छूट देने का निर्णय निश्चित रूप से बेहतर कहा जा सकता है। इसमें सिंगापुर, मॉरीशस, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग जैसे देश शामिल नहीं किए गए हैं जिनका भारत में एफडीआई में सबसे अधिक योगदान रहता है। इन देशों के स्पेशल पर्पज व्हीकल (SPV) भारतीय स्टार्टअप में काफी पैसा लगाते हैं। सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि सिर्फ 21 देशों को छूट क्यों दी गई है, अनुमान है कि वह शुरुआत उन देशों से करना चाहती है जहां रेगुलेटरी ढांचा मजबूत है।”

इन देशों से देश में कितना एफडीआई आता है?

भारत में अप्रैल 2000 से दिसंबर 2022 तक हुए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में इन 21 देशों की हिस्सेदारी 29% है। इनमें सबसे अधिक हिस्सा अमेरिका का 9.45%, जापान का 6.13%, इंग्लैंड का 5.39%, जर्मनी का 2.23% और फ्रांस का 1.67% है। कुल एफडीआई में अमेरिका तीसरे स्थान पर है।

देश में सबसे अधिक अधिक एफडीआई किस देश से आती है?

देश में सबसे अधिक विदेशी निवेश सिंगापुर और मॉरीशस से आता है। ये दोनों देश मिलकर भारत में आने वाली कुल एफडीआई का 49% से अधिक योगदान करते हैं।

फिर इन देशों को छूट क्यों नहीं दी गई?

इन देशों का नियाकीय ढांचा सख्त नहीं है। मॉरीशस को तो दुनिया के शीर्ष टैक्स हैवेन देशों की सूची में रखा जाता है। टैक्स हैवेन उन देशों को कहते हैं जहां टैक्स की दर बहुत कम होती है और नियम ऐसे लचर होते हैं जो कंपनियों को टैक्स चोरी में सहायता प्रदान करते हैं। सरकार नहीं चाहती कि टैक्स हैवेन देशों से गैर-विनियमित पैसा देश में आए।

स्टार्टअप्स की चिंता क्या है?

भारतीय स्टार्टअप्स को फंडिंग मुख्य रूप से विदेशी निवेशकों से हासिल होती है। स्टार्टअप्स को चिंता थी कि एंजेल टैक्स के चलते विदेशी निवेशक भारत में निवेश करने से करताने लगेंगे। स्टार्टअप्स का कहना था कि विदेशी निवेशक नहीं चाहेंगे कि उनके निवेश का एक हिस्सा टैक्स के रूप में चला जाए। विदेशी निवेशक किसी भी प्रकार के लिटिगेशन से बचना चाहेंगे। इसलिए वह अपना फंड दूसरे देशों में डायवर्ट करने लगेंगे।

एंजेल टैक्स से क्या इन 21 देशों के निवेशकों के अलावा भी किसी को छूट है?

जी हां, डीपीआईआईटी से मान्यता प्राप्त स्टार्टअप को एंजेल टैक्स से छूट जारी रहेगी और भारत में पंजीकृत घरेलू अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड (एआईएफ) को इससे छूट दी गई है। सीबीडीटी ने 19 मई को एक ड्राफ्ट जारी करके केंद्रीय बैंकों, सॉवरेन वेल्थ फंड, सरकार नियंत्रित संगठनों, बैंकों और बीमा कंपनियों को भी छूट देने की बात कही थी। इसके अलावा सेबी के पास रजिस्टर्ड तथा मजबूत रेगुलेटरी ढांचा वाले देशों की एंटिटी- कैटेगरी 1 एफपीआई, एंडोमेंट फंड, पेंशन फंड जैसे निवेशकों को भी एंजेल टैक्स से छूट का प्रस्ताव है।

21 देशों के विदेशी निवेशकों को मिली छूट को जानकार एक शुरुआत मान रहे हैं। उनका मानना है कि आने वाले समय में इस संख्या में इजाफा होगा। स्टार्टअप्स को कानूनी सलाह देने वाले स्टार्टअप लीगलविज.इन के सह-संस्थापक शृजय शेठ कहते हैं, “सूची में सिंगापुर और मॉरीशस जैसे देशों को शामिल न करना थोड़ा आश्चर्यजनक है, क्योंकि इन देशों से भारत में काफी विदेशी निवेश आता है। टैक्स बेनिफिट, इन्फ्रास्ट्रक्चर और बिजनेस केंद्रित नीतियों-कानूनों के चलते अनेक प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल फर्म सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) जैसे देशों से बिजनेस चलाना पसंद करते हैं। उम्मीद है कि आने वाले समय में छूट वाली सूची में इन देशों को भी शामिल किया जाएगा।”

नेहा के अनुसार, सीबीडीटी को अभी टैक्स कैलकुलेशन के लिहाज से स्टार्टअप में नॉन-रेजिडेंट (विदेशी) निवेश की वैलुएशन से संबंधित दिशानिर्देश जारी करना है। इसके जारी होने के बाद स्पष्ट होगा कि जो देश इस सूची में नहीं हैं उनका क्या असर होगा और वहां के निवेशक क्या रणनीति अपनाएंगे।

शेखर के मुताबिक, भारत में आने वाले कुल एफडीआई में यूएई का हिस्सा दो फीसदी के आसपास है। सरकार वहां के निवेशकों को छूट देगी या नहीं, या फिर कब देगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल है क्योंकि यह कई बातों पर निर्भर करेगा। मसलन, यूएई के रेगुलेटरी ढांचे पर भारतीय अथॉरिटी को कितना भरोसा है, दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध कैसे हैं और वहां से कितना एफडीआई आता है।