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किसी भी देश की प्रगति में अन्य सभी कारकों के साथ उसकी जनसांख्यिकीय स्थिति भी महत्वपूर्ण

राष्ट्रीय संसाधनों की उपलब्धता के अनुरूप जनसंख्या हो तो देश प्रगति-पथ पर सरलता से आगे बढ़ता है वहीं जिस देश में संसाधनों पर जनसंख्या का भार अधिक होता है उनके लिए विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करना आसान नहीं रह जाता।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 27 Jul 2022 10:38 AM (IST)Updated: Wed, 27 Jul 2022 10:38 AM (IST)
किसी भी देश की प्रगति में सभी कारकों के साथ उसकी जनसांख्यिकीय स्थिति का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। फाइल

पीयूष द्विवेदी। गोरखपुर से भाजपा सांसद रवि किशन लोकसभा में जनसंख्या नियंत्रण पर बिल लाने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि इस बीच स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने राज्यसभा में कहा है कि केंद्र सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने पर कोई विचार नहीं कर रही है। सवाल है कि क्या भारत को ऐसे किसी कानून की जरूरत है? वैसे तो इस पर अलग-अलग विशेषज्ञों की अलग-अलग राय देखने को मिलती है, लेकिन यह सच है कि किसी भी देश की प्रगति में अन्य सभी कारकों के साथ उसकी जनसांख्यिकीय स्थिति का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। राष्ट्रीय संसाधनों की उपलब्धता के अनुरूप जनसंख्या हो तो देश प्रगति-पथ पर सरलता से आगे बढ़ता है, वहीं जिस देश में संसाधनों पर जनसंख्या का भार अधिक होता है, उनके लिए विकास की राह अपेक्षाकृत कठिन हो जाती है और विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करना आसान नहीं रह जाता। विश्व के अधिकांश विकसित देशों में संसाधनों पर जनसंख्या का भार कम ही मिलेगा। वे देश जनसंख्या के नियोजन और स्थिरीकरण के लक्ष्यों को प्राप्त कर चुके हैं।

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अमेरिका की जनसंख्या भारत की जनसंख्या के लगभग एक चौथाई जितनी है, जबकि क्षेत्रफल की दृष्टि से वह भारत से तीन गुना बड़ा है। रूस के पास विश्व का सर्वाधिक भू-भाग है, लेकिन आबादी मात्र 15 करोड़ के आसपास है। कनाडा, चीन, ब्राजील और आस्ट्रेलिया भी भारत से अधिक भू-भाग रखते हैं, जबकि इनमें से एक चीन को छोड़कर बाकी सभी की जनसंख्या भारत से बहुत कम है। हालांकि चीन की जनसंख्या भी अब हमसे थोड़ी ही अधिक रह गई है, जबकि क्षेत्रफल के मामले में वह भारत से तीन गुना बड़ा है। यद्यपि अधिक जनसंख्या होने के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू विशेषज्ञों द्वारा रेखांकित किए जाते हैं, लेकिन भारत के संदर्भ में तो जनसंख्या वृद्धि की स्थिति कठिनाई पैदा करने वाली ही अधिक प्रतीत होती है। जनसंख्या के मामले में आज भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है, वहीं क्षेत्रफल की दृष्टि से इसका स्थान सातवां है। भारत के पास विश्व का केवल ढाई प्रतिशत भू-भाग है, जबकि वैश्विक जनसंख्या का 18 प्रतिशत हिस्सा यहां रहता है। इस तथ्य से भारत में जनसंख्या और राष्ट्रीय संसाधनों के मध्य मौजूद असंतुलन को समझा जा सकता है। इतने कम भू-भाग में इतनी बड़ी आबादी को लेकर चलना विकास के प्रत्येक लक्ष्य को कठिन बनाने वाली स्थिति ही है।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट : पिछले दिनों विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गई। उसके मुताबिक इस वर्ष चीन की जनसंख्या 1.426 अरब है, जबकि भारत की आबादी 1.412 अरब है। ऐसे में कहा जा रहा है कि भारत अगले साल तक जनसंख्या के मामले में चीन को पछाड़ सकता है। पहले अनुमान था कि यह स्थिति 2027 तक आएगी, लेकिन जिस गति से भारत की जनसंख्या बढ़ रही है उसे देखते हुए अब अगले वर्ष ही भारत विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। रिपोर्ट का यह अनुमान और चिंतित करने वाला है कि 2050 में भारत की आबादी 1.668 अरब तक पहुंच सकती है, जबकि इस समय तक चीन द्वारा अपनी आबादी को नियंत्रित करके 1.317 अरब तक ले आने की उम्मीद है। हालांकि एक राहत देने वाली जानकारी यह है कि वैश्विक आबादी 1950 के बाद से अपनी सबसे धीमी गति से बढ़ रही है।

भारत की जनसंख्या नीति : ऐसा नहीं है कि जनसंख्या वृद्धि की समस्या के प्रति भारत में शासन के स्तर पर एकदम निष्क्रियता रही हो। भारत परिवार नियोजन कार्यक्रम अपनाने वाला विश्व का पहला देश है। पहली पंचवर्षीय योजना के समय से ही बढ़ती जनसंख्या को संकट मानते हुए परिवार नियोजन के प्रयास शुरू कर दिए गए थे, पर आजादी के बाद देश को पहली जनसंख्या नीति मिलने में ढाई दशक से अधिक समय लग गया। 1976 में देश की पहली जनसंख्या नीति की घोषणा की गई थी, जिसके बाद जबरन नसबंदी का दौर चला था। 1981 में इसमें कुछ संशोधन किए गए। जन्म दर तथा जनसंख्या वृद्धि में कमी लाने, विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाने, परिवार नियोजन को प्रोत्साहित करने और महिला शिक्षा पर विशेष जोर देने की बात कही गई। 2000 में केंद्र सरकार ने एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित एक विशेष दल की रिपोर्ट के आधार पर नई राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की। इसका उद्देश्य प्रजनन तथा शिशु स्वास्थ्य की देखभाल के लिए बेहतर सेवातंत्र की स्थापना तथा गर्भ निरोधकों और स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढांचे की आवश्यकताएं पूरी करते हुए 2045 तक जनसंख्या में स्थायित्व के लक्ष्य को प्राप्त करना है। 2000 में राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन भी किया गया, जिसे राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की समीक्षा एवं क्रियान्वयन जैसे दायित्व सौंपे गए। हालांकि इन नीतियों का धरातल पर कुछ खास असर नहीं दिखता, क्योंकि इनके बाद भी देश की जनसंख्या में निर्बाध रूप से वृद्धि हुई है।

इस समय जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए देश में काहिरा माडल लागू है, जिसके तहत यह निर्धारित है कि भारत सरकार किसी भी नागरिक को संतानोत्पत्ति से जबरन नहीं रोकेगी, बल्कि निरोध कार्यक्रमों एवं जागरूकता के जरिये जनसंख्या नियंत्रण का प्रयास करेगी। यद्यपि हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश, असम आदि कुछ राज्य सरकारों ने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर नई नीतियों की घोषणा की है, जिसमें दो से अधिक बच्चों पर विभिन्न सरकारी लाभों से व्यक्ति को वंचित करने का प्रविधान किया गया है। इन राज्यों के ये पहल सराहनीय हैं, लेकिन राज्य स्तर पर ऐसी नीतियों के आने से देश में जनसंख्या वृद्धि पर विशेष नियंत्रण की उम्मीद करना बेमानी है।

जनसंख्या वृद्धि के कारण : भारत में जनसंख्या वृद्धि का एक कारण तो देश में जन्म और मृत्यु दर के बीच भारी अंतर होना है। 2010 से 2019 के बीच भारत में जनसंख्या वृद्धि 1.2 प्रतिशत की दर से हुई, वहीं इस अवधि में मृत्युदर मात्र 0.5 प्रतिशत रही। वहीं बेटे की चाह और अपनी वंश परंपरा को आगे बढ़ाने का सामाजिक लोभ भी जनसंख्या वृद्धि का बड़ा कारण है। जागरूकता में कमी के कारण बहुत से लोग सुरक्षित उपायों को नहीं अपनाते और बच्चे पैदा करते रहते हैं। संतानोत्पत्ति को पुरुष के पुंसत्व और स्त्री के स्त्रीत्व से जोड़कर देखने की मानसिकता भी जनसंख्या वृद्धि के लिए जिम्मेदार है। इन सबके अलावा धर्म-मजहब के नाम पर जनसंख्या वृद्धि के लिए दिए जाने वाले बयान इसे प्रोत्साहित करने का ही काम करते हैं। मुसलमानों में यह समस्या कुछ अधिक ही गहरी है। पिछले 60 वर्षो में भारत की जनसंख्या में मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी में चार प्रतिशत की वृद्धि, जबकि हिंदू आबादी की हिस्सेदारी में करीब इतनी ही गिरावट आई है।

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनसंख्या के धार्मिक असंतुलन पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसा न हो कि एक वर्ग की जनसंख्या तो तेजी से बढ़ जाए और जो यहां के मूल निवासी हैं उनकी आबादी कम रह जाए। योगी का कहना था कि ऐसी स्थिति में अव्यवस्था और अराजकता के पैदा होने का खतरा रहता है। योगी का यह कथन अपने आप में सच्चाई है, जिसके कई प्रमाण देश में मौजूद हैं। जम्मू-कश्मीर में कभी हिंदू शासक हुआ करते थे। जनसांख्यिकीय असंतुलन के कारण ही वह भूमि आतंकवाद और अलगाववाद के दुश्चक्र में पिसने को मजबूर होती रही। घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन जनसांख्यिकीय असंतुलन का ही परिणाम था। आज झारखंड के कई जिलों के विद्यालयों में मजहब विशेष की आबादी बढ़ते ही साप्ताहिक अवकाश का दिन रविवार से शुक्रवार कर देना और प्रार्थना की विधि बदल देना भी जनसंख्या के धार्मिक असंतुलन के खतरे को ही दिखाता है। अत: जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों में इस तथ्य का भी बराबर ध्यान रखने की जरूरत है।

जनसंख्या नियंत्रण के उपाय : भारत में जनसंख्या नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभी कोई दंडात्मक विधान नहीं है। यह पूरा मामला पति-पत्नी के लिए स्वैच्छिक रखा गया है। सरकारें ‘हम दो हमारे दो’ जैसे नारे देती रहती हैं, लेकिन इनका बहुत व्यापक असर देखने को नहीं मिलता। आज भारत में जनसंख्या वृद्धि का संकट जिस तरह से विकराल हो चुका है, उससे स्पष्ट होता है कि अब तक इस संबंध में किए गए सभी उपाय और प्रयास विशेष कारगर नहीं सिद्ध हुए हैं। ऐसे में देश को अब काहिरा माडल से आगे बढ़ते हुए जनसंख्या नियंत्रण एवं नियोजन के लिए कुछ कड़े कदम उठाने चाहिए। इसके अलावा राज्य सरकारों को गरीब परिवारों में संतानोत्पत्ति के समय दी जाने वाली आर्थिक सहायता जैसी व्यवस्थाओं को सीमित कर देना चाहिए। ऐसी व्यवस्थाएं कहीं न कहीं गरीबों को अनुचित रूप से संतानोत्पत्ति के लिए प्रोत्साहित करने का काम करती हैं।

एक आंकड़े के मुताबिक इस समय देश में लगभग तीन करोड़ अनाथ बच्चे हैं। सरकार चाहे तो इन्हें गोद लेने से संबंधित एक प्रोत्साहनकारी नीति की घोषणा कर सकती है। जैसे कि अपना बच्चा करने के बजाय एक बच्चे को गोद लेने पर व्यक्ति को अमुक लाभ प्राप्त होंगे। इस नीति से जनसंख्या नियंत्रण तो होगा ही, अनगिनत अनाथ बच्चों को सही अभिभावक और बेहतर परवरिश मिलने की राह भी खुलेगी। संतानोत्पत्ति को हतोत्साहित और अनाथ बच्चों को गोद लेने को प्रोत्साहित करके भारत एक साथ दो समस्याओं का समाधान करने की दिशा में बढ़ सकता है। चाहे जैसे भी हो, मगर विकास के उच्च स्तर को प्राप्त कर विश्वशक्ति बनने के लिए जनसांख्यिकीय स्थिरीकरण के लक्ष्य को शीघ्र प्राप्त करना भारत के लिए बेहद आवश्यक है। अब इस संकट से मुंह नहीं फेरा जा सकता।

[शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय]


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