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    थम नहीं रही जंगल की आग, नई रणनीति बनाने में जुटा केंद्र; वन एवं पर्यावरण मंत्रालय बढ़ती घटनाओं की रोकथाम के लिए कर रहा मंथन

    By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By:
    Updated: Sat, 30 Apr 2022 10:53 PM (IST)

    आग लगने की बढ़ती इन घटनाओं के बीच वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसे लेकर नई रणनीति बनानी शुरू कर दी है। मंत्रालय ने अमेरिका के कैलिफोर्निया पर सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है जहां के जंगलों में अक्सर भीषण आग लगती रहती है।

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    गर्मियों के दौरान जंगलों में लगती है अक्सर भीषण आग

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जंगल में आग लगने की घटनाएं वैसे तो सामान्य हैं, लेकिन यह हर साल जिस तरह से भयावह रूप ले रही है, उससे केंद्र और राज्य सरकारों की चिंता बढ़ गई है। यह स्थिति तब है, जब केंद्र ने जंगल में आग लगने की घटनाओं पर सेटेलाइट के जरिए नजर रखने की एक हाईटेक प्रणाली विकसित कर रखी है। इस प्रणाली से आग लगने के कुछ ही मिनट में ही उस क्षेत्र से जुड़े अधिकारियों और अमले के मोबाइल पर सूचना भेज दी जाती है।

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    इसके बाद भी न आग समय से काबू हो पाती है और न ही इससे होने वाले नुकसान में कोई कमी आ रही है। हालांकि, इसकी एक बड़ी वजह जंगल की आग को बुझाने का वह पारंपरिक तरीका भी है, जिसके तहत आग को अभी भी डंडे या पेड़ों की हरी टहनियों से ही पीटकर बुझाया जाता है।

    फिलहाल, आग लगने की बढ़ती इन घटनाओं के बीच वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसे लेकर नई रणनीति बनानी शुरू कर दी है। मंत्रालय ने अमेरिका के कैलिफोर्निया पर सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है, जहां के जंगलों में अक्सर भीषण आग लगती रहती है। वहां आग पर कैसे काबू पाया जाता है, इस बाबत जानकारी जुटाई जा रही है।

    गौरतलब है कि जंगल में आग लगने की घटनाएं इसलिए भी चौंकाने वाली है, क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में 2019-2020 में आग की कुल 1.24 लाख घटनाएं दर्ज हुई हैं, जबकि 2020-21 में देशभर से जंगल में आग लगने की कुल 3.45 लाख घटनाएं सामने आई। खास बात यह है कि जंगल में आग की घटनाएं हर साल नवंबर से जून महीने तक ही रिपोर्ट की जाती हैं।

    आग बुझाने के लिए खरीदा जा सकता है हेलीकाप्टर

    जंगल में आग के बेकाबू होने की घटनाओं को देखते हुए दो से तीन हेलीकाप्टर खरीदने की भी चर्चा शुरू हो गई है। इसका इस्तेमाल किसी भी राज्य में बढ़ती आग की रोकथाम के लिए किया जा सकेगा।

    सूत्रों के मुताबिक, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में हेलीकाप्टर खरीदने को लेकर चर्चा तब शुरू हुई, जब हिमाचल सहित कई राज्यों ने अपने यहां आग के ज्यादा भड़कने पर किराए पर हेलीकाप्टर की खोज की। इस दौरान हेलीकाप्टर कंपनी की ओर से एक फेरे के लिए सात से आठ लाख रुपये मांगे गए थे। इसके बाद राज्यों ने अपने हाथ पीछे खींच लिए थे। खास बात यह है कि कमलनाथ के कार्यकाल के दौरान मंत्रालय के पास सर्वे और आग से निपटने जैसे कामों के लिए दो हेलीकाप्टर रखे गए थे। कमलनाथ 1991-95 तक वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में स्वतंत्र प्रभार के मंत्री रहे हैं।