केंद्र का दावा ओआरओपी लागू किया
वन रैंक वन पेंशन पर पूर्व सैनिक राम किशन ग्रेवाल के आत्महत्या मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार सच्चाई सामने आने से पहले कुछ भी बोलने से बच रही है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। वन रैंक वन पेंशन पर पूर्व सैनिक राम किशन ग्रेवाल के आत्महत्या मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार सच्चाई सामने आने से पहले कुछ भी बोलने से बच रही है। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने बुधवार को इस घटना पर गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए ट्वीट कर बताया कि अधिकारियों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है।
अपने ट्वीट के साथ उन्होंने ओआरओपी से पूर्व सैनिकों को मिले लाभ के आंकड़ों को भी साझा किया। 15 सितंबर तक के इन आंकड़ों के मुताबिक जुलाई 2014 के पहले सेवानिवृत होने वाले 20 लाख 63 हजार 763 सैनिकों को 5507 करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं। इनमें से 11 लाख 33 हजार 100 पूर्व सैनिकों को 1460 करोड़ की दूसरी किस्त भी दी जा चुकी है।
दूसरी तरफ, गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली पुलिस की जांच पर भरोसा जताया है। ओआरओपी को लेकर पूर्व सैनिक की आत्महत्या और इसके विरोध में विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी के बारे में पूछे जाने पर राजनाथ ने कहा कि जांच से स्थिति साफ हो जाएगी। दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट आने तक राजनाथ सिंह इस मुद्दे पर सीधी टिप्पणी से बचते दिखे।
लेकिन उन्होंने इतना जरूर साफ किया कि ओआरओपी की मांग लंबे समय से लंबित थी और मोदी सरकार ने इसे पूरा करने का काम किया है।
दरअसल, राजनीतिक घमासान के बीच सरकार ऐसा कुछ भी करने से बचना चाहती है, जिससे विपक्ष को और अवसर मिले। लेकिन लगे हाथ यह भी स्पष्ट किया जा रहा है कि ओआरओपी पर सरकार ने वादा निभाया है। लोकसभा चुनाव के पहले ओआरओपी को लागू करना भाजपा का एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था और सरकार बनने के बाद इसे पूरा भी किया गया।
आत्महत्या पर उठे सवाल
वन रैंक वन पेंशन को लेकर पूर्व सैनिक राम किशन ग्रेवाल की आत्महत्या पर सवाल उठ रहे हैं। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि ग्रेवाल ने प्रादेशिक सेना में छह साल, 11 महीने तक नौकरी की। फिर वे रक्षा सुरक्षा कोर (डीएससी) में चले गए।
इसके बावजूद उनको ओआरओपी का लाभ दिया गया। बैंक की गड़बड़ी के चलते उनको संशोधित पेंशन नहीं मिल पा रही थी। ऐसे में अपने अन्य साथियों की तरह उनको पूर्व सैनिक कल्याण शाखा से संपर्क करना चाहिए था। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। यदि उन्होंने रक्षा मंत्रालय से सीधे संपर्क किया होता, तो भी उनकी समस्या का समाधान हो जाता।
सूत्रों का कहना है कि ग्रेवाल द्वारा 31 अक्टूबर को पत्र लिखकर एक नवंबर को आत्महत्या कर लेना कई सवालों को जन्म देता है। इस बात का पता लगाया जाना चाहिए कि आखिरी वक्त में उनके साथ कौन था? सल्फास की गोली किसने लाकर दी? क्या किसी अन्य ने तो उनको इसके लिए नहीं उकसाया? सूत्रों ने बताया कि रक्षा मंत्री से मुलाकात के लिए ग्रेवाल ने पहले से कोई वक्त नहीं मांगा था।