इंदिरा-अब्दुल्ला समझौते की शर्ते नहीं की गई पूरी
श्रीनगर। जम्मू एवं कश्मीर में सत्तारूढ़ नेशनल कांफ्रेंस [नेकां] के नेता और पार्टी के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के बेटे मुस्तफा कमाल ने आरोप लगाया है कि भारत ने वर्ष 1
श्रीनगर। जम्मू एवं कश्मीर में सत्तारूढ़ नेशनल कांफ्रेंस [नेकां] के नेता और पार्टी के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के बेटे मुस्तफा कमाल ने आरोप लगाया है कि भारत ने वर्ष 1975 के इंदिरा-अब्दुल्ला समझौते की शर्तो को लागू नहीं किया।
कमाल ने कहा कि समझौते की बातों को कभी लागू नहीं किया गया। यह बात पूर्व मुख्यमंत्री सैयद मीर कासिम ने भी अपनी आत्मकथा में कही है।
कमाल ने कहा कि मैं दिल्ली में अपने भाई तारिक अब्दुल्ला के साथ उनसे मिला। मैंने उनसे 1975 के समझौते के बारे में पूछा था। उन्होंने कहा कि यह अधूरा रहा। शेख अब्दुल्ला व इंदिरा गांधी ने वर्ष 1953 से 1974 के बीच जम्मू एवं कश्मीर के संविधान में संशोधन करते हुए पारित किए गए अधिनियमों पर चर्चा के लिए दो व्यक्तियों को नियुक्त किया था। उन्हे यह अनुशंसा भी देनी थी कि ये कानून किस तरह वर्ष 1953 के मौलिक रूप में फिर से बहाल किए जा सकते है। मिर्जा मुहम्मद अफजल बेग और जी. पार्थसारथी ने इस फॉर्मूले पर काम किया, जिसे केंद्र व राज्य सरकारों के समक्ष पेश किया जाना था।
उन्होंने कहा कि यह दो लोगों का नहीं, बल्कि दो सरकारों के बीच का मामला था। यदि वे मिले थे और उनके बीच किसी बात को लेकर सहमति बनी थी तो इसे मंत्रिमंडल की मंजूरी के लिए भेजा जाना चाहिए था। यदि इसे मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल जाती तो इसे दोनों सरकारों की विधायिका के पास भेजा जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ।
स्थानीय पत्रिका 'कश्मीर आई' से बातचीत में कमाल ने कहा कि भारत में कश्मीर का विलय भी सशर्त हुआ था। उन्होंने कहा कि भारत में कश्मीर का विलय बिना शर्त नहीं था। यह स्वर्गीय महाराजा हरि सिंह के अधिग्रहण दस्तावेज के आधार पर हुआ था, जिसके आधार पर संविधान आवेदन आदेश 1950, दिल्ली समझौता 1952 और भारतीय संविधान की धारा 370 राज्य में लागू हुई।
जम्मू एवं कश्मीर की 87 सदस्यीय विधानसभा में विधायक कमाल ने कहा कि वर्ष 1947 में राज्य में कबायली आक्रमण के बाद डोगरा शासक ने भारत से सैन्य मदद मांगी थी। भारत ने अस्थाई विलय के समझौते पर हस्ताक्षर के बाद ही सैन्य मदद दी थी।
उन्होंने कांग्रेस पर कश्मीर मुद्दे पर गलत नीति अपनाने का भी आरोप लगाया। कमाल ने कहा कि राज्य को लेकर कांग्रेस का रवैया वर्ष 1953 से ही खराब था। वर्ष 1953 में देश के प्रथम व लोकप्रिय प्रधानमंत्री की बातों को खारिज करना नेकां के लिए पहला झटका था। उस दिन से राज्य में बिना किसी उचित वजह के चार बार राज्यपाल का शासन लगाया गया।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने न केवल वर्ष 1953 में शेर-ए-कश्मीर [कमाल के पिता] की पीठ में छुरा घोंपा, बल्कि 1977 में भी इसने ऐसा ही किया। यदि 1975 के समझौते पर शेख साहब ने हस्ताक्षर किए थे तो कांग्रेस ने एक अन्य तथाकथित समझौते के तहत 11 महीने के भीतर उन्हे पद से हटाकर पुराने समझौते को दबा क्यों दिया?
कमाल ने कांग्रेस के साथ नेकां के मौजूदा गठबंधन को 'दुर्भाग्यपूर्ण, खतरनाक और गठबंधन की मजबूरी' करार दिया।
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