मंदिर ईश्वर का घर तो है ही, सामाजिक केंद्र भी होता हैः पवन त्रिपाठी
मुंबई में पवन त्रिपाठी ने कहा कि मंदिर केवल ईश्वर का घर नहीं, बल्कि एक सामाजिक केंद्र भी होता है। मंदिर समाज को जोड़ने और सामाजिक कार्यों को बढ़ावा दे ...और पढ़ें

आचार्य पवन त्रिपाठी।
स्मार्ट व्यू- पूरी खबर, कम शब्दों में
ओमप्रकाश तिवारी। एक तरफ सनातनी मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के लिए आंदोलन चलाए जाते हैं, तो वहीं कई भीड़-भाड़ वाले मंदिरों में कुशल प्रबंधन के अभाव में मंदिर में स्थापित देव की व्यवस्था भी ठीक से नहीं हो पाती। हाल ही में बांके बिहारी मंदिर में इस तरह की स्थिति बनी, जब सेवायत और प्रबंधन के बीच विवाद के चलते भगवान को बाल भोग नहीं लगा और 500 साल पुरानी परंपरा टूट गई। धर्म जागरण के इस युग में जहां महाकुंभ से लेकर अनेकानेक मंदिरों में श्रद्धालुओं की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है, वहीं इस तरह के कुप्रबंधन की वजह से कई बार अप्रिय स्थिति उत्पन्न होती है। ऐसे में माडल बनकर सामने आते हैं कुछ ऐसे धार्मिक संस्थान, जो अपने कुशल प्रबंधन के कारण न सिर्फ वहां स्थापित देव की उचित सेवा कर रहे हैं, बल्कि अपने यहां आनेवाले श्रद्धालुओं को भी उचित सुविधाएं दे रहे हैं। इन्हीं में से एक है मुंबई स्थित श्री सिद्धि विनायक मंदिर, जिनकी प्रतिष्ठा देश भर में है। न्यास के कोष में जमा 800 करोड़ रुपये और आभूषण नीलाम कर हर साल होने वाली 100 करोड़ से ज्यादा की आय से न सिर्फ मंदिर की उचित व्यवस्था होती है, बल्कि जनकल्याण के भी बहुत से कामों के लिए इस धन का उपयोग किया जा रहा है। हाल ही में महाराष्ट्र में हुई अतिवृष्टि के बाद मंदिर ट्रस्ट तब चर्चा में आया, जब उसने किसानों के लिए 10 करोड़ रुपए मुख्यमंत्री सहायता कोष में जमा किए। श्री सिद्धि विनायक मंदिर की इसी सुव्यवस्था पर मंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष आचार्य पवन त्रिपाठी कहते हैं मंदिर ईश्वर का घर तो है ही, सामाजिक केंद्र भी होता है। इसके जरिये समाज में यह संदेश जाना चाहिए कि ऐसे श्रद्धा स्थानों पर अर्पण की गई धनराशि का सदुपयोग कल्याणकारी कामों के लिए हो रहा है। मूलतः गोरखपुर के रहने वाले त्रिपाठी संस्कृत में पारंगत हैं और उन्होंने ज्योतिष शास्त्र में पीएचडी की है। धार्मिक व सामाजिक कार्य के साथ वह लंबे समय से राजनीति में भी सक्रिय हैं और मुंबई भाजपा के महासचिव हैं। दैनिक जागरण के महाराष्ट्र ब्यूरो प्रमुख ओमप्रकाश तिवारी ने उनसे विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं बातचीत के अंशः
हाल ही में मथुरा के श्री बांके बिहारी मंदिर में भगवान कृष्ण को समय पर कलेवा न मिल पाने की खबर सामने आई है। क्या ऐसी कोई स्थिति कभी श्री सिद्धि विनायक मंदिर में भी पैदा हुई है?
नहीं। ऐसी स्थिति यहां कभी पैदा नहीं हुई, क्योंकि श्री सिद्धि विनायक मंदिर ट्रस्ट की ओर से मंदिर में होने वाले हर काम के लिए एक अलग विभाग बनाया गया है, जो अपनी जिम्मेदारियां समय पर निभाता है। इन्हीं में से एक विभाग श्री सिद्धि विनायक के दैनिक भोग का इंतजाम करने के लिए भी है। जो निर्धारित समय पर भगवान के लिए मंदिर में ही मोदक, लड्डू, फल एवं भोजन इत्यादि की व्यवस्था पूरी शुद्धता से करता है। उसी से भगवान को भोग लगाया जाता है।
क्या है मंदिर की पूरी प्रबंधन प्रणाली?
श्री सिद्धि विनायक मंदिर का प्रबंधन 1980 में बने श्री सिद्धि विनायक गणपति मंदिर ट्रस्ट (प्रभादेवी) एक्ट, 1980 के तहत किया जाता है। इसमें अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष एवं नौ सदस्यों की नियुक्ति पांच साल के लिए सरकार द्वारा की जाती है। सामान्यतः जिस दल की सरकार होती है, उसी दल के सदस्यों को इस ट्रस्ट में स्थान मिलता है, लेकिन मंदिर के सामान्य प्रशासन के लिए सरकार की ओर से अंडर सेक्रेटरी स्तर के एक कार्यकारी अधिकारी (ईओ) और एक डिप्टी ईओ की भी नियुक्ति की जाती है, जो मंदिर की दैनिक व्यवस्था के लिए जिम्मेदार होता है। इस समय ट्रस्ट के अध्यक्ष शिवसेना (शिंदे) के विधायक सदानंद सरवणकर, कोषाध्यक्ष मैं स्वयं एवं कार्यकारी अधिकारी वीणा पाटिल हैं। ट्रस्ट द्वारा लिए गए फैसलों को लागू करने की जिम्मेदारी उस अधिकारी की ही होती है।
वर्तमान में श्री सिद्धि विनायक मंदिर के कोष में कितनी राशि है? इसमें से कितनी राशि का उपयोग मंदिर व्यवस्था के लिए किया जाता है और कितनी राशि लोक कल्याण के लिए खर्च की जाती है?
वर्तमान में सभी प्रकार के एफडी (फिक्स डिपाजिट) तथा कुल उपलब्ध स्वर्ण आभूषण के संयुक्त मूल्य को ध्यान में रखते हुए न्यास के कोष में कुल 800 करोड़ रुपए होंगे। जैसे वर्ष 2024-25 में मंदिर को कुल आय 134.5 करोड़ रुपए की हुई थी, जिसमें से करीब 65 करोड़ रुपए मंदिर प्रबंधन पर एवं 20-22 करोड़ रुपए सामाजिक उपक्रमों पर व्यय किए गए।
मंदिर का अपना व्यय कितना है? यह किस-किस मद में होता है?
मंदिर का अपना व्यय कर्मचारियों के वेतन, भगवान की व्यवस्था एवं प्रसाद वितरण में होता है। जैसे मंदिर में स्थायी एवं कांट्रैक्ट पर मिलकर कर्मचारियों की संख्या 320 के लगभग है। इन सभी के वेतन पर हर साल लगभग 30-32 करोड़ रुपए खर्च हो जाते हैं। इसके अलावा भगवान के भोग, वस्त्र एवं साज-सज्जा पर होनेवाले व्यय के अतिरिक्त मंदिर में प्रतिदिन देशी घी के 10,000 स्वादिष्ट लड्डू बांटे जाते हैं। ये लड्डू भी मंदिर में ही बनते हैं। इसके अलावा जो लोग प्रसाद के रूप में लड्डू खरीदकर ले जाते हैं, उन्हें भी ये लागत मूल्य पर ही उपलब्ध कराए जाते हैं। इस प्रकार मंदिर में 35 से 40 हजार लड्डुओं की खपत रोज की होती है। मंगलवार एवं विशेष पर्वों के अवसर पर यह संख्या बढ़ भी जाती है।
सुना है कि प्लास्टिक मुक्त सिद्धि विनायक अभियान चलाया जा रहा है। यह क्या है?
- पहले भोग में चढ़ाए जाने वाले लड्डू प्लास्टिक की थैलियों में पैक किए जाते थे, लेकिन पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ते हुए न्यास द्वारा प्लास्टिक मुक्त सिद्धि विनायक अभियान चलाया गया। तब से लड्डुओं की पैकिंग भी कागज की थैलियों में होने लगी है। यह बहुत छोटा-सा प्रयास है, लेकिन इसका असर बहुत बड़ा है।
किस तरह के सामाजिक उपक्रमों पर मंदिर की राशि खर्च की जाती है?
मंदिर ट्रस्ट 1980 के अधिनियम के तहत एक प्रकार से अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करता है। इसी कड़ी में 1980 से ही मंदिर की ओर से चिकित्सा हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इसके अलावा 2008-09 से ही गरीब एवं जरूरतमंद विद्यार्थियों को शैक्षणिक सहायता के रूप में पुस्तक बैंक योजना संचालित की जा रही है। वर्ष 2011-12 में डायलिसिस संबंधी विषय पर तत्कालीन समिति द्वारा प्रस्ताव पारित कर कुछ डायलिसिस सेंटर शुरू किए गए। फिलहाल महाराष्ट्र के 34 जिलों में चल रहे 102 डायलिसिस सेंटर्स के लिए मशीनें और स्वच्छ पेयजल के लिए आरओ प्लांट एवं कुछ अन्य उपकरणों की खरीद के लिए करीब 10 करोड़ रुपए मंदिर ट्रस्ट की ओर से दिए जा चुके हैं। मुंबई में मंदिर के दो डायलिसिस सेंटर अपने भी हैं। इनमें से एक 12 बिस्तरों और दूसरा आठ बिस्तरों का है। इन सेंटरों पर लोग दो शिफ्ट में डायलिसिस की सुविधा ले सकते हैं। निकट भविष्य में महाराष्ट्र के सभी अष्ट विनायक मंदिरों में भी इसी प्रकार की डायलिसिस सुविधा देने की योजना बन रही है।
क्या मंदिर की ओर से इलाज के लिए भी पैसे दिए जाते हैं?
हां। यह व्यवस्था भी शुरू से ही चली आ रही है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही एक काउंटर रखा गया है, जहां कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति आकर फार्म ले सकता है और फार्म भरकर अपना आवेदन दे सकता है। ट्रस्ट उन आवेदनों पर विचार करके तीन से चार दिनों के अंदर आर्थिक मदद का चेक सीधे अस्पताल के नाम बनाकर दे देता है। यह मदद अधिकतम 25,000 रुपए तक हो सकती है, जो सभी जाति-धर्म के लोगों को बिना किसी भेदभाव के प्रदान की जाती है। बच्चों की असाध्य बीमारियों के मामले में यह सीमा निर्धारित नहीं की गई है। ऐसे मामलों में ट्रस्ट अपने विवेक से अधिक राशि भी जारी कर सकता है।
शैक्षणिक क्षेत्र में किस प्रकार मदद करता है ट्रस्ट?
मंदिर के बिल्कुल बगल में प्रबंधन द्वारा एक पांच मंजिला बहुउद्देशीय भवन बनाया गया है। इस भवन की तीसरी मंजिल पर एक बड़े हाल में आपको कई विद्यार्थी तन्मयता से अध्ययन करते मिल जाएंगे। इनमें कोई आइआइटी की तैयारी कर रहा है, तो कोई आइआइएम या किसी अन्य उच्च परीक्षा में बैठने की। दरअसल मुंबई जैसे महानगर में लोगों के पास जगह की कमी है। सामान्य परिवारों के घर छोटे, लेकिन सपने बड़े होते हैं। इन्हीं सपनों को सिद्ध करने का काम भगवान श्री सिद्धि विनायक उनके बच्चों को अपने परिसर में शांति से अध्ययन का स्थान उपलब्ध करवाकर कर रहे हैं। उच्च परीक्षा की तैयारियों में जुटे ऐसे कई विद्यार्थी सुबह आठ-नौ बजे अपने घरों से सिद्धि विनायक मंदिर के बगल स्थित इस हाल में आ जाते हैं और दिनभर शांति से अध्ययन करते हैं। इस हाल में करीब 100 विद्यार्थियों के लिए कुर्सी-मेज पर बैठकर शांति से अध्ययन करने की व्यवस्था है। अध्ययन के दौरान दोपहर में भगवान सिद्धि विनायक का भोग लगने के बाद इन सभी विद्यार्थियों को प्रसाद के रूप में भोजन की व्यवस्था भी मंदिर की ओर से ही होती है। उच्च शिक्षा में मदद करने के अलावा मंदिर ट्रस्ट की ओर से कक्षा 11 से स्नातक तक के विद्यार्थियों के लिए उनके कोर्स की पुस्तकें उपलब्ध कराई जाती हैं। मुंबई की 70 संस्थाओं के जरिए अब तक 25000 से अधिक विद्यार्थियों को इस योजना से लाभान्वित किया जा चुका है।
हाल ही में अतिवृष्टि पीड़ित किसानों के लिए कुछ राशि मंदिर ट्रस्ट द्वारा भी प्रदान की गई है। ऐसी कितनी प्राकृतिक आपदाओं के समय मंदिर योगदान कर चुका है?
महाराष्ट्र में कुछ माह पहले हुई अतिवृष्टि से पीड़ित किसानों को महाराष्ट्र की सभी संस्थाएं मदद कर रही थीं। तभी मंदिर ट्रस्ट ने भी अपनी ओर से 10 करोड़ रुपए किसानों की मदद के लिए मुख्यमंत्री सहायता कोष में देने का निर्णय किया। इससे पहले भी संस्थान कई प्राकृतिक आपदाओं में अपनी ओर से मदद भिजवा चुका है। ग्राम सामाजिक परिवर्तन अभियान के लिए भी मंदिर ट्रस्ट मुख्यमंत्री कोष में 10 करोड़ रुपए दे चुका है। महाराष्ट्र के ग्रामीण भागों में पेयजल एवं सिंचाई के पानी की समस्या का समाधान करने के लिए जब 2014 में फडणवीस सरकार ने जलयुक्त शिवार योजना शुरू की, तो मंदिर ट्रस्ट की ओर से हर जिले के कलेक्टर को दो-दो करोड़ रुपए दिए गए थे।
जनहितार्थ इतना खर्च एक मंदिर कैसे कर पाता है?
देखिए, हम सनातनियों के मंदिर ईश्वर का घर तो हैं ही, सामाजिक केंद्र भी हैं, इसलिए यह संदेश जाना चाहिए कि ऐसे श्रद्धा स्थानों पर अर्पण की गई धनराशि का सदुपयोग कल्याणकारी कामों के लिए हो रहा है। लोग इसी विश्वास के साथ भगवान सिद्धि विनायक को जो कुछ भी अर्पण करते हैं, मंदिर ट्रस्ट उसका उपयोग कल्याणकारी योजनाओं में करता रहता है। हम सनातनी अक्सर अपनी आय का सदुपयोग किसी अच्छे काम में करना चाहते हैं, लेकिन अपने पास समय न होने के कारण लोग मंदिरों के जरिए सामाजिक कार्यों में योगदान करते हैं। इससे ही न सिर्फ सिद्धि विनायक, बल्कि सभी मंदिरों की आय लगातार बढ़ रही है। जैसे 2024-25 में श्री सिद्धि विनायक मंदिर को 134.5 करोड़ रुपयों की आय हुई। यह पूर्व वर्ष की तुलना में करीब 16 प्रतिशत अधिक है।
अगले वर्ष कितनी आय होने का अनुमान है?
अगले वर्ष मंदिर की आय 154 करोड़ रुपए होने का अनुमान लगाया जा रहा है। यह आय भक्तों द्वारा मंदिर में डाली जाने वाली राशि के अलावा प्रसाद के रूप में लड्डुओं की बिक्री एवं भगवान गणेश को चढ़ने वाले आभूषणों से होती है। विभिन्न त्योहारों के अवसर पर साल में दो-तीन बार इन आभूषणों की नीलामी से भी एक-डेढ़ करोड़ रुपए मिल जाते हैं। जैसे इस बार 31 मार्च, 2025 को मराठी नववर्ष गुड़ी पड़वा के दिन हुई आभूषणों की नीलामी से मंदिर प्रशासन को 1.33 करोड़ रुपए की आय हुई है। प्रशासनिक सुधारों के कारण मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। इसी अनुपात में भक्तों से मिलने वाला चढ़ावा भी बढ़ रहा है। इसका उपयोग मंदिर ट्रस्ट आम लोगों के कल्याण के लिए करता रहता है।

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