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    सहारा रेगिस्‍तान जितना गर्म हो जाएगा भारत का तापमान, अगर ऐसी ही रही स्थिति

    By TilakrajEdited By:
    Updated: Fri, 01 Apr 2022 02:35 PM (IST)

    दुनिया के अन्‍य देशों की तरह भारत पर भी क्‍लाइमेट चेंज का काफी प्रभाव देखने को मिल रहा है। मार्च में ही तापमान का 40 डिग्री तक पहुंचना सिर्फ एक संकेत है। अगर हम समय सहते नहीं जागे तो हालात का और खराब होना तय है।

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    आने वाले 50 सालों में मौसम का बड़ा भयावह बदलाव होने वाला है

    नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। क्लाइमेट चेंज ने मौसम के मिजाज को बिगाड़ कर रख दिया है। मार्च माह में ही तापमान 40 डिग्री का आंकड़ा छूने लगा है। हाल में ही आई एक स्टडी रिपोर्ट में सामने आया है कि अगर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की यही स्थिति जारी रही या वायुमंडल में मौजूद गैसों का तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा तो भारत का तापमान सहारा रेगिस्तान जितना गर्म हो जाएगा।

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    चीन, यूरोप और अमेरिका के वैज्ञानिकों के अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले 50 सालों में भारत में मौसम का की स्थिति और भयावह होगी। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में छपे अध्ययन में कहा गया है कि आने वाले सालों में भारत में 1.2 बिलियन लोग गर्मी के इस ताप का सामना करेंगे जबकि पाकिस्तान में 100 मिलियन, नाइजीरिया में 485 मिलियन गर्मी के इस प्रकोप का सामना करेंगे। रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा समय में दुनिया भर में मानव आबादी औसत सालाना तापमान छह डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 28 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान में रहती है जो कि लोगों की सेहत और खाद्य उत्पादन के लिहाज से बेहतर है। पर यदि यह तापमान बढ़ता रहा तो इसका आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक असर होगा। इसकी वजह से मानव आबादी के लिए आजीविका, रहन-सहने से लेकर खाद्यान्न संकट की समस्या उत्पन्न होगी।

    कोरोना के प्रकोप जैसी हो सकती है स्थिति

    रिसर्च पेपर के लेखक मार्टिन सेफर ने कहा कि कोरोना ने पूरी दुनिया को ऐसी मुश्किल में डाला है जिसकी कल्पना करनी भी मुश्किल है। कमोबेश ऐसी ही स्थिति क्लाइमेट चेंज कर सकता है। कोरोना जैसी आपदा की तरह इसमें फिलहाल कोई बड़ा परिवर्तन होता नहीं दिखाई देता। आने वाले समय दुनिया के कई हिस्से रहने लायक नहीं रह जाएंगे और ये दोबारा ठंडे नहीं होंगे। इसका विनाशकारी प्रभाव होगा। समाज को इस आपदा से निपटने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में इस समस्या का मूल समाधान कॉर्बन उत्सर्जन में कटौती करना है। साफतौर पर हमको एक ग्लोबल एप्रोच बनानी होगी ताकि हमारे बच्चे इस सामाजिक, वैश्विक आपदा से निपट सकें।

    शोधकर्ता ने कहा कि यह आंकड़े हमारे लिए भी चौंकाने वाले थे लेकिन हमने इनका दोबारा आकलन किया। सेफर ने कहा कि हम जानते हैं कि कई प्राणी अलग-अलग तापमान में खुद को समायोजित करते हैं। मसलन पेंग्विन बहुत ठंडे तापमान में रहती है तो कोरल गर्म पानी में। पर मानव के संदर्भ में यह बात नहीं कही जा सकती है। हम मौसम के अनुरूप गर्म कपड़े और एयरकंडीशन का इस्तेमाल करते हैं। आने वाले 50 सालों में मौसम का बड़ा भयावह बदलाव होने वाला है। उन्होंने कहा कि ऐसे में नीति निर्माताओं को इस बारे में जल्दी विचार करना होगा वरना बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती है। हमें पर्यावरण बचाने के उपायों पर गौर करना होगा क्योंकि तापमान का 1 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ना लाखों लोगों की जान के लिए मुश्किल हो जाएगा।

    ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से भारत में इतने घंटे काम का नुकसान और इतना आर्थिक घाटा

    नेचर जनरल में छपी रिपोर्ट के अनुसार भारत में ग्लोबल वॉर्मिंग की मौजूदा स्थिति के अनुसार सालाना 100 बिलियन घंटों का नुकसान होता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि रिपोर्ट में वर्किंग घंटों का आकलन दिन में 12 घंटों के आधार पर किया गया है। अध्ययन में इसे सुबह सात बजे से लेकर शाम सात बजे तक माना गया है। निकोलस स्कूल ऑफ द इंवायरनमेंट, ड्यूक यूनिवर्सिटी के ल्यूक ए पार्संस ने ई-मेल के माध्यम से बताया कि भारत का लेबर सेक्टर काफी बड़ा है। ऐसे में इसका घाटा भी अधिक होगा।

    पार्संन ने कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग में अगर आने वाले समय में दो डिग्री का ईजाफा होता है तो काम की क्षति दोगुनी यानी 200 बिलियन घंटे सालाना हो जाएगी। इससे करीब एक माह के वर्किंग घंटों का नुकसान हो जाएगा जो एक बड़ा घाटा होगा। इसका सीधा असर किसी देश की इकोनॉमी पर भी पड़ेगा। पार्संस ने चेताते हुए कहा कि मौजूदा हालातों में जिस दर से ग्लोबल वॉर्मिंग में बढ़ोतरी हो रही है उसको ध्यान में रखते हुए हमने 4 डिग्री तापमान में बढ़ोतरीका आकलन किया है। इस स्थिति में भारत को 400 बिलियन वर्किंग घंटों का नुकसान होगा। पार्संस ने कहा कि इसके कारण भारत को 240 बिलियन डॉलर की परचेजिंग पावर पेरिटी (क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के जरिए यह पता लगाया जाता है कि दो देशों के बीच मुद्रा की क्रयशक्ति में कितना अंतर या समता है। यह करेंसी एक्सचेंज रेट तय करने में भी भूमिका निभाती है।) का नुकसान उठाना पड़ता है।