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    MBBS को हिंदी में पढ़ाना एक अच्छा विचार, लेकिन गुणवत्तापूर्ण पाठ्यपुस्तकें कहां हैं? चिकित्सा विशेषज्ञ ने पूछें कई सवाल

    By Versha SinghEdited By:
    Updated: Sun, 28 Aug 2022 09:58 AM (IST)

    मध्य प्रदेश सरकार ने 2022-2023 शैक्षणिक सत्र से हिंदी में एमबीबीएस पाठ्यक्रम (MBBS course) शुरू करने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है लेकिन चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों ने इस विषय पर भाषा में गुणवत्तापूर्ण पुस्तकों की अनुपलब्धता के कारण इस कदम पर आपत्ति व्यक्त की है।

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    MBBS को हिंदी में पढ़ाए जाने पर चिकित्सा विशेषज्ञों ने उठाए सवाल

    भोपाल, एजेंसी। मध्य प्रदेश सरकार ने 2022-2023 शैक्षणिक सत्र से हिंदी में एमबीबीएस पाठ्यक्रम (MBBS course) शुरू करने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, लेकिन चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों ने इस विषय पर भाषा में गुणवत्तापूर्ण पुस्तकों की अनुपलब्धता के कारण इस कदम पर आपत्ति व्यक्त की है।

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    मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में घोषणा की थी कि नए शैक्षणिक सत्र से, भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) में प्रथम वर्ष के छात्रों को बैचलर ऑफ मेडिसिन एंड बैचलर ऑफ सर्जरी (एमबीबीएस) पाठ्यक्रम हिंदी में पढ़ाया जाएगा।

    वर्तमान समय में चिकित्सा शिक्षा (medical education) केवल अंग्रेजी में दी जाती है। इसके अलावा, चौहान ने यह भी घोषणा की कि जुलाई 2022 से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत छह कॉलेजों में बीटेक डिग्री और पॉलिटेक्निक डिप्लोमा पाठ्यक्रम हिंदी भाषा में पढ़ाए जाएंगे।

    इस कदम के पीछे राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य है जिसने एमबीबीएस को हिंदी में पढ़ाने की पहल की है।

    हम देश में पहली बार हिंदी में एमबीबीएस कोर्स शुरू कर रहे हैं। कोई अन्य राज्य मातृभाषा में चिकित्सा शिक्षा नहीं दे रहा है... ऐसा करने वाला पहला राज्य मध्य प्रदेश है।

    सारंग ने कहा कि छात्रों के लिए विशेष रूप से शरीर विज्ञान, शरीर रचना विज्ञान और जैव रसायन में पाठ्यपुस्तकें हिंदी में तैयार की जा रही हैं और उन्हें जल्द ही उपलब्ध कराया जाएगा।

    हालांकि, चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ "एमबीबीएस इन हिंदी" कदम को लेकर संशय में हैं।

    इंदौर स्थित देवी अहिल्याबाई विश्व विद्यालय (डीएवीवी) के पूर्व कुलपति और एक वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ, डा भरत छपरवाल ने कहा, मैं हिंदी में चिकित्सा शिक्षा प्रदान करने के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन क्या छात्रों के लिए चिकित्सा के क्षेत्र में हिंदी भाषा में अच्छी पुस्तकें उपलब्ध हैं।?

    उन्होंने कहा कि 'लैंसेट', 'ब्रिटिश मेडिकल जर्नल' और 'न्यू इंग्लैंड मेडिकल जर्नल' जैसी गुणवत्ता वाली मेडिकल पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध लेखों को पाठ्यपुस्तकों में जगह पाने में कम से कम तीन से चार साल लग जाते हैं।

    छपरवाल ने कहा कि वह हिंदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन एक चिकित्सा पेशेवर के रूप में उन्हें लगता है कि निर्णय की घोषणा करने से पहले पर्याप्त तैयारी नहीं की गई।

    उन्होंने कहा, सरकारों को यह तय करने के बजाय कि किस भाषा में दवा और सर्जरी सिखाई जानी चाहिए, इस मुद्दे को पेशेवरों (professionals) पर छोड़ देना चाहिए।

    जापान, रूस, चीन और फ्रांस जैसे कई देशों में मातृभाषा में चिकित्सा शिक्षा दी जा रही है। तो इस पर छपरवाल ने कहा कि इन देशों में उनकी मूल भाषा में पर्याप्त संख्या में गुणवत्तापूर्ण पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध हैं, जबकि भारत में ऐसा नहीं है।

    उन्होंने कहा कि सरकार ने राज्य में एक हिंदी विश्वविद्यालय बनाया है और इसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा में एमबीबीएस की पाठ्यपुस्तकें तैयार करने का काम सौंपा है, लेकिन इससे विद्यार्थियों, विशेषकर आदिवासियों को कोई फायदा नहीं होगा।

    पूर्व कुलपति ने कहा, अगर सरकार वास्तव में आदिवासियों के जीवन को बदलना चाहती है तो उसे शुरू से ही उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना शुरू कर देना चाहिए।

    भोपाल के एक वरिष्ठ डॉक्टर पुष्पेंद्र शर्मा, जिन्होंने यूक्रेन में ओडेसा स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस और एमएस सर्जरी के समकक्ष कोर्स किया है, उन्होंने कहा कि इस कदम को सफल बनाने के लिए बहुत सारे प्रयासों की आवश्यकता होगी।

    उन्होंने टिप्पणी की, एमबीबीएस को हिंदी में पढ़ाना शुरू करना इतना आसान काम नहीं है। इस कदम के लिए बहुत सारी तैयारियों की आवश्यकता है क्योंकि चिकित्सा शब्दावली का पहले हिंदी में अनुवाद करने की आवश्यकता है। यह एक कठिन काम है।

    यह पूछे जाने पर कि कुछ अन्य देश अपनी मूल भाषा में चिकित्सा शिक्षा कैसे प्रदान कर रहे हैं, तो इस पर शर्मा ने कहा कि वे सदियों से ऐसा कर रहे हैं और इसलिए छात्रों के लिए एक समृद्ध पाठ्यक्रम सामग्री बनाई गई है।

    अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक पूर्व निदेशक ने नाम न छापने की शर्त पर बोलते हुए सरकार के इस निर्णय को "दुर्भाग्यपूर्ण" करार दिया, लेकिन विस्तृत नहीं किया।

    हालांकि, वरिष्ठ भाजपा नेता और पेशे से डॉक्टर, डॉ हितेश बाजपेयी ने इस कदम का समर्थन किया।

    उन्होंने कहा, हम छात्रों की मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। किसी भी भाषा के कारण पीछे नहीं रहना चाहिए।