Move to Jagran APP

पेट पालने के लिए राधाकृष्णन को बेचने पड़े थे मेडल, ऐसा रहा जीवन का संघर्ष

जब राधाकृष्‍णन के केले के पत्‍ते खरीदने के पैसे नहीं थे, तब उन्‍होंने जमीन को साफ किया और जमीन पर ही भोजन कर लिया।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 04 Sep 2018 11:37 PM (IST)Updated: Wed, 05 Sep 2018 07:57 AM (IST)
पेट पालने के लिए राधाकृष्णन को बेचने पड़े थे मेडल, ऐसा रहा जीवन का संघर्ष
पेट पालने के लिए राधाकृष्णन को बेचने पड़े थे मेडल, ऐसा रहा जीवन का संघर्ष

नई दिल्‍ली, जागरण स्‍पेशल । 'शिक्षा का मतलब सिर्फ जानकारी देना ही नहीं है। जानकारी और तकनीकी गुर का अपना महत्व है लेकिन बौद्धिक झुकाव और लोकतांत्रिक भावना का भी महत्व है क्योंकि इन भावनाओं के साथ छात्र उत्तरदायी नागरिक बनते हैं। जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होगा, तब तक शिक्षा को मिशन का रूप नहीं मिल पाएगा।' यह कहना है भारत के पूर्व राष्ट्रपति और दार्शनिक तथा शिक्षाविद् डॉ. राधाकृष्णन का, उनके जन्मदिवस यानी 5 सितंबर को देश में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

loksabha election banner

40 वर्ष तक किया अध्‍यापन

राजनीति में आने से पहले उन्होंने अपने जीवन के 40 साल अध्यापन को दिए थे। राधाकृष्णन का मानना था कि बिना शिक्षा के इंसान कभी भी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता है इसलिए इंसान के जीवन में एक शिक्षक होना बहुत जरूरी है।

भारतीय दर्शन और संस्कृति का किया गहन अध्ययन

अपने जीवन में आदर्श शिक्षक रहे भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुतनी ग्राम में हुआ था। इनके पिता सर्वपल्ली वीरास्वामी राजस्व विभाग में काम करते थे। इनकी माता का नाम सीतम्मा था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा लूनर्थ मिशनरी स्कूल, तिरुपति और वेल्लूर में हुई। इसके बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ाई की। 1903 में युवती सिवाकामू के साथ उनका विवाह हुआ। राधाकृष्‍णन का जन्‍म गरीब परिवार में हुआ था। वह इतने गरीब थे, केले के पत्‍तों पर उनका परिवार भोजन करता था। एक बार की घटना है कि जब राधाकृष्‍णन के केले के पत्‍ते खरीदने के पैसे नहीं थे, तब उन्‍होंने जमीन को साफ किया और जमीन पर ही भोजन कर लिया।   

राधाकृष्णन ने 12 साल की उम्र में ही स्वामी विवेकानंद के दर्शन का अध्ययन कर लिया था। उन्होंने दर्शन शास्त्र से एमए किया और 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में सहायक अध्यापक के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई। उन्होंने 40 वर्षो तक शिक्षक के रूप में काम किया। वह 1931 से 1936 तक आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। इसके बाद 1936 से 1952 तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर रहे और 1939 से 1948 तक वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर आसीन रहे। उन्होंने भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन किया।

शुरुआती दिनों में सर्वपल्‍ली राधाकृष्णन महीने में 17 रुपये कमाते थे। इसी सैलरी से अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। उनके परिवार में पांच बेटियां और एक बेटा थे। परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्‍होंने पैसे उधार पर लिए, लेकिन समय पर ब्‍याज के साथ उन पैसों को वह लौटा नहीं सके, जिसके कारण उन्‍हें अपने मेडल भी बेचने पड़े।

नेहरू के आग्रह पर राजनीति में आए

1947 में जब देश आजाद हुआ तब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. राधाकृष्णन से राजदूत के तौर पर सोवियत संघ के साथ राजनीतिक कार्यों पर काम करने का आग्रह किया। उनकी बात को मानते हुए उन्होंने 1947 से 1949 तक वह संविधान सभा के सदस्य को तौर पर काम किए। उसके बाद 1952 तक डॉ. राधाकृष्णन रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत पद पर रहे। 13 मई 1952 को उन्हें देश का पहला उपराष्ट्रपति बनाया गया। 1953 से 1962 तक वह दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति थे।

इसी बीच 1954 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें 'भारत रत्न' की उपाधि से सम्मानित किया। डॉ. राधाकृष्णन को ब्रिटिश शासनकाल में 'सर' की उपाधि भी दी गई थी। दस वर्षों तक बतौर उपराष्ट्रपति जिम्मेदारी निभाने के बाद 13 मई 1962 को उन्हें देश का दूसरा राष्ट्रपति बनाया गया। इंग्लैंड की सरकार ने उन्हें 'ऑर्डर ऑफ मेरिट' स्म्मान से सम्मानित किया। इसके अलावा 1961 में इन्हें जर्मनी के पुस्तक प्रकाशन द्वारा 'विश्व शांति पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया था।

रसेल ने कहा, राष्‍ट्रपति चुना जाना दर्शनशास्‍त्र का सम्‍मान है

डॉ. राधाकृष्णन ने 1962 में भारत के सर्वोच्च, राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया। जानेमाने दार्शनिक बर्टेड रशेल ने उनके राष्ट्रपति बनने पर कहा था, 'भारतीय गणराज्य ने डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को राष्ट्रपति चुना, यह विश्व के दर्शनशास्त्र का सम्मान है, मैं उनके राष्ट्रपति बनने से बहुत खुश हूं। प्लेटो ने कहा था कि दार्शनिक को राजा और राजा को दार्शनिक होना चाहिए. डॉ. राधाकृष्णन को राष्ट्रपति बनाकर भारतीय गणराज्य ने प्लेटो को सच्ची श्रद्धांजलि दी है।'

दोबारा राष्ट्रपति नहीं बनने की खुद की थी घोषणा

बतौर राष्ट्रपति 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) 1967 को जब वह देश को संबोधित कर रहे थे, तब उन्होंने खुद इस बात की घोषणा की थी कि कार्यकाल समाप्त होने के बाद वह दोबारा देश के राष्ट्रपति नहीं बनेंगे। बतौर राष्ट्रपति यह उनका आखिरी संबोधन था।

लोगों के आग्रह को मान गए राधाकृष्‍णन

वर्ष 1962 में उनके कुछ प्रशंसक और शिष्यों ने उनका जन्मदिन मनाने की इच्छा जाहिर की तो उन्होंने कहा, 'मेरे लिए इससे बड़े सम्मान की बात और कुछ हो ही नहीं सकती कि मेरा जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए।' और तभी से पांच सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। शिक्षक दिवस के अवसर पर शिक्षकों को पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया जाता है।

डॉ. राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शनशास्त्र और धर्म पर कई किताबें लिखी. 'गौतम बुद्ध : जीवन और दर्शन', 'धर्म और समाज', 'भारत और विश्व' उनमें प्रमुख थे। डॉ. राधाकृष्णन का देहावसान 17 अप्रैल, 1975 को हो गया, लेकिन एक आदर्श शिक्षक और दार्शनिक के रूप में वह आज भी सभी के लिए प्रेरणादायक हैं। उनके मरणोपांत 1975 में अमेरिकी सरकार ने उन्हें टेम्पल्टन पुरस्कार से सम्मानित किया।

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने वर्ष 2003 में शिक्षक दिवस पर अपने संबोधन में कहा था कि विद्यार्थी 25,000 घंटे अपने विद्यालय प्रांगण में ही बिताते हैं, इसलिए विद्यालय में ऐसे आदर्श शिक्षक होने चाहिए, जिनमें शिक्षण की क्षमता हो, जिन्हें शिक्षण से प्यार हो और जो नैतिक गुणों का निर्माण कर सकें।'

100 देशों में 5 अक्‍टूबर को मनाया जाता है शिक्षक दिवस

शिक्षक दिवस' मनाने के लिए 5 अक्‍टूबर को चुना यूनेस्‍को ने आधिकारिक रूप 1994 में 'शिक्षक दिवस' मनाने के लिए 5 अक्‍टूबर को चुना। इसलिए अब 100 से ज्‍यादा देशों में यह दिन 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.