विधेयकों पर मंजूरी रोके जाने का विवाद, एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंची तमिलनाडु सरकार
तमिलनाडु सरकार ने नीट से छूट और 12वीं के अंकों पर मेडिकल प्रवेश के लिए राष्ट्रपति द्वारा विधेयक रोकने पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। राज्य सरकार ने राष्ट्रपति के फैसले को असंवैधानिक बताया है। तमिलनाडु का कहना है कि नीट से वंचित छात्रों को नुकसान हो रहा है, जबकि सीबीएसई वाले छात्रों को फायदा। राज्य सरकार ने संघवाद और स्वायत्तता का हवाला दिया है।

सुप्रीम कोर्ट। (पीटीआई)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विधेयकों पर मंजूरी रोके जाने का विवाद लेकर एक बार फिर तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। तमिलनाडु सरकार ने मूलवाद दाखिल कर मेडिकल पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए नीट से छूट दिये जाने और सिर्फ 12वीं के अंकों की मेरिट के आधार पर प्रवेश लिए जाने का उपबंध करने वाले विधेयक की मंजूरी राष्ट्रपति द्वारा रोक लेने को चुनौती दी है।
राज्य सरकार ने राष्ट्रपति के विधेयक रोक लेने को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है। साथ ही कहा है कि मेडिकल के अंडर ग्रेजुएट पाठ्यक्रम में प्रवेश से संबंधित विधेयक तमिलनाडु एडमीशन टु अंडरग्रेजुएट मेडिकल डिग्री कोर्स बिल 2021 को संविधान के अनुच्छेद 254(2) के तहत राष्ट्रपति द्वारा स्वत: मंजूर मान लिया जाए।
अभी पूरे देश में मेडिकल पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (नीट) पास करनी पड़ती है और उसमें मिले अंकों की मेरिट के आधार पर ही पूरे देश में मेडिकल कालेजों में प्रवेश दिया जाता है।
जबकि तमिलनाडु सरकार की लंबे समय से यही मांग रही है कि उसके यहां के छात्र-छात्राओं को नीट से छूट दे दी जाए और राज्य के छात्र-छात्राओं को 12वीं की परीक्षा में प्राप्त अंको की मेरिट के आधार पर मेडिकल पाठ्यक्रम में प्रवेश दिया जाए।
इसी व्यवस्था को लागू करने के लिए तमिलनाडु विधानसभा ने तमिलनाडु एडमीशन टु अंडरग्रेजुएट मेडिकल डिग्री कोर्स बिल 2021 पारित किया था। दाखिल मूलवाद में तमिलनाडु सरकार ने कहा है कि इस मामले में राष्ट्रपति द्वारा विधेयक पर मंजूरी रोक लेने से संविधान का महत्वपूर्ण व्यवस्थागत मुद्दा उठ गया है।
कहा है कि विधानसभा ने सर्वसम्मति से विधेयक पारित किया था और इस विधेयक को राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेज दिया था। अब राष्ट्रपति ने विधेयक पर मंजूरी रोक ली है।
राज्य सरकार का कहना है कि ऐसा करने का कोई कारण नहीं बताया गया है जबकि राज्य सरकार ने अपने जवाब में विस्तार से कारण बताए थे। ये मामला संविधान की महत्वपूर्ण व्याख्या से जुड़ा है। यहां संविधान में दिए गए संघवाद और राज्य की स्वायत्तता का मुद्दा उठता है।
कहा है कि आजादी के समय से ही तमिलनाडु ने प्रोफेशनल कोर्स में प्रवेश के लिए अपनी एक व्यवस्था बना रखी है। और ये व्यवस्था उच्च स्टैंडर्ड और राज्य की सामाजिक सच्चाइयों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है। लेकिन 2017 से तमिलनाडु और पूरे देश में नीट के जरिए मेडिकल में प्रवेश हो रहा है।
अनुभव बताता है कि इससे वंचित तबका बहुत प्रभावित हुआ है। राज्य सरकार द्वारा गठित सेवानिवृत न्यायाधीश एके राजन की कमेटी ने नीट के प्रभाव का अध्ययन करके दी रिपोर्ट में तमिलनाडु से नीट समाप्त करने की राय दी है, क्योंकि इससे सिर्फ शहरों के सीबीएससी से पढ़ाई करने वाले सुविधासम्पन्न छात्रों को ही फायदा हो रहा है, जो वर्षों प्राइवेट कोचिंग का खर्च उठा सकते हैं। जबकि तमिल मीडियम से पढ़ने वाले होनहार लेकिन सामाजिक आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग बाहर रह जाता है।
हालांकि स्वास्थ्य, शिक्षा और आयुष मंत्रालय ने इस विधेयक को लेकर यह आपत्ति उठाई थी कि यह विधेयक एनएमसी एक्ट की धारा 14 के खिलाफ है। राष्ट्रीय स्तर पर मेरिट को प्राथमिकता देते हुए समान प्रवेश परीक्षा जरूरी है। जबकि तमिलनाडु का कहना है कि मेरिट को सिर्फ अंकों से नहीं आंका जा सकता बल्कि मानवीय सहानुभूति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।

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