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    तालिबान का दुनिया को आश्वासन, उसकी जमीन का दूसरे देशों के खिलाफ नहीं होगा इस्तेमाल

    By Manish PandeyEdited By:
    Updated: Thu, 21 Oct 2021 08:58 AM (IST)

    15 अगस्त 2021 को काबुल पर तालिबान का कब्जा होने के बाद भारत के साथ उसके प्रतिनिधियों की यह दूसरी मुलाकात है। इसके पहले दोहा में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के राजनीतिक दल के मुखिया शेर मुहम्मद अब्बास स्टेनकजई से मुलाकात की थी।

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    मास्को में अफगानिस्तान पर हुई बैठक के दौरान मिले विदेश मंत्रालय के अधिकारी

    नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद अपने रणनीतिक हितों को लेकर फूंक-फूंककर कदम बढ़ रहे भारत ने नए सिरे से तालिबान के साथ संवाद शुरू किया है। बुधवार को मास्को में अफगानिस्तान शांति वार्ता में हिस्सा लेने गए विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की तालिबान के प्रतिनिधियों से मुलाकात हुई। तालिबान के आधिकारिक प्रवक्ता की तरफ से बताया गया है कि इस्लामिक अमीरात आफ अफगानिस्तान के उप-प्रधानमंत्री मौलवी अब्दुल सलाम हनाफी ने अफगानिस्तान मामलों पर भारत के विशेष प्रतिनिधि जेपी सिंह से मुलाकात की। दोनों पक्षों ने यह जरूरी माना है कि उन्हें एक दूसरे की चिंताओं का ख्याल रखना चाहिए और कूटनीतिक व आर्थिक रिश्तों को मजबूत बनाना चाहिए।

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    तालिबान की तरफ से यह भी बताया गया है कि भारत ने उन्हें मानवीय आधार पर मदद की पेशकश की है। यह भी बताते चलें कि मास्को में रूस की अगुआई में 11 देशों की तरफ से जारी एक संयुक्त बयान से ठीक पहले तालिबान के साथ भारत की मुलाकात की उक्त खबर आई है। भारत भी इन 11 देशों में शामिल है। इनका बयान बताता है कि तालिबान सरकार की तरफ से सभी सदस्य देशों को यह आश्वासन दिया गया है कि उसकी जमीन का इस्तेमाल किसी भी दूसरे अन्य देश के खिलाफ आतंकी गतिविधियों के लिए नहीं होने दिया जाएगा। भारत हमेशा से इस बात की आशंका जताता रहा है कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान परस्त आतंकी उसके हितों के खिलाफ एकजुट हो सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में साफ तौर पर यह कहा था कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि अफगानिस्तान की जमीन से आतंकी संगठन दूसरे देशों को निशाना नहीं बनाएं।

    यह बैठक तब हुई है जब भारत भी अफगानिस्तान से जु़़डे मुद्दों पर एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार आयोजित करने की कोशिश में है। यह बैठक इस बात का भी संकेत है कि तालिबान को लेकर भारत पूरी तरह से व्यवहारिक दृष्टिकोण अपना रहा है। यही वजह है कि भारत ने बुधवार को अफगानिस्तान पर मास्को फारमेट के तहत हुई बैठक में हिस्सा लिया। बैठक में रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान ने भी हिस्सा लिया।

    बैठक को संबोधित करते हुए रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अफगानिस्तान से आतंकियों के प़़डोसी देशों में जाने के खतरे को लेकर आगाह भी किया। बाद में उक्त सभी देशों की तरफ से जारी संयुक्त बयान में अफगानिस्तान सरकार के साथ व्यवहारिक संपर्क की जरूरत को बताया गया और कहा कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी इसे मान्यता दे या नहीं दे, लेकिन यह सच्चाई है कि तालिबान ने वहां सरकार बनाई है। सदस्य देशों ने अफगान सरकार से कहा है कि वो भी व्यवहारिक बने और उदारवादी रवैया अपनाए। अपने प़़डोसी देशों के साथ दोस्ताना ताल्लुक बनाए। आंतरिक व बाहरी नीतियों को लेकर भी उदार हो। अफगानिस्तान में स्थायी शांति, सुरक्षा और संपन्नता बहाल करने के लिए काम करे। साथ ही सभी धार्मिक समूहों, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों का आदर करे। सदस्य देशों ने इस बात पर खुशी जताई है कि अफगानिस्तान सरकार ने उन्हें ठोस भरोसा दिलाया है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी भी दूसरे देश के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को भ़़डकाने के लिए नहीं होगा।

    15 अगस्त, 2021 को काबुल पर तालिबान का कब्जा होने के बाद भारत के साथ उसके प्रतिनिधियों की यह दूसरी मुलाकात है। इसके पहले दोहा में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के राजनीतिक दल के मुखिया शेर मुहम्मद अब्बास स्टेनकजई से मुलाकात की थी। तब मुलाकात का आग्रह तालिबान की तरफ से आया था और यह मुलाकात दोहा स्थित भारतीय दूतावास में हुई थी। इनके बीच अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की सुरक्षा, संरक्षा और उनकी शीघ्र वापसी को लेकर बातचीत हुई। स्टेनकजई को बाद में तालिबान की तरफ से गठित सरकार में मंत्री भी बनाया गया है, लेकिन माना जाता है कि भारत के साथ संपर्क की वजह से ही उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं दी जा रही है।