अब तारीख पर तारीख नहीं, तहव्वुर राणा को जल्द मिलेगी सजा; नए कानून का होगा असर
मुंबई हमले के मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा को भारत लाया गया। राणा को NIA की 18 दिन की हिरासत में भी भेज दिया है। नए कानून के अनुसार राणा के मुकदमे की 60 और 90 दिन के भीतर जांच पूरी करके अदालत में आरोपपत्र दाखिल करना होगा। नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में मुकदमों के त्वरित निपटारे के लिए टाइमलाइन तय है।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। मुंबई हमले का मुख्य साजिशकर्ता तहव्वुर राणा अमेरिका से प्रत्यार्पित करके भारत लाया गया है। अब उस पर मुकदमा चलेगा और उसे सजा सुनाई जाएगी। लेकिन सवाल है कि इसमें कितना समय लगेगा। ऐसे में अगर पिछले साल लागू हुई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में तय टाइम लाइन को देखा जाए तो पता चलता है कि तहव्वुर राणा के केस में तारीख पर तारीख का पेंच नहीं फंसेगा।
दरअसल, नए कानून में मुकदमों के त्वरित निपटारे को सुनिश्चित करने के लिए केस दर्ज होने से लेकर ट्रायल पूरा होने और फैसला सुनाने तक की टाइम लाइन तय है और राणा के ट्रायल पर इसका सकारात्मक असर होगा।
नए कानून का होगा असर
वैसे तो करीब पांच करोड़ मुकदमों के बोझ तले दबी न्यायपालिका को अक्सर देरी में न्याय के लिए निशाना बनाया जाता है। लेकिन इसी समस्या से निबटने के उपाय भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में किए गए हैं।
इसमें केस दर्ज करने से लेकर फैसला सुनाने और दया याचिका देने तक की टाइम लाइन तय करके यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है कि अधिकतम तीन साल में हर केस का ट्रायल पूरा होकर फैसला आ जाए।
NIA की 18 दिन की हिरासत में भेजा गया राणा
एनआईए ने मुंबई हमले के मामले में तहव्वुर राणा के खिलाफ 2009 में ही एफआईआर दर्ज कर ली थी, लेकिन उसे भारत अब लाया जा सका है और अब उसका मुकदमा शुरू होगा। कोर्ट ने एनआईए को पूछताछ के लिए राणा की 18 दिन की कस्टडी दी है। केस में इसी जगह से नए कानून का रोल शुरू होगा जो कहता है कि किसी भी मुकदमे की 60 और 90 दिन के भीतर जांच पूरी करके अदालत में आरोपपत्र दाखिल करना होगा।
सीमित समय में राणा के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करना होगा
अगर जांच 90 दिन से ज्यादा जारी रखनी पड़े तो अधिकतम 180 दिन तक का समय मिल सकता है, लेकिन इसके लिए कोर्ट से इजाजत लेनी होगी। ऐसे में इतना साफ है कि 180 की समय सीमा अंतिम समय सीमा है और इसी के भीतर राणा के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करना होगा। अदालत के लिए भी टाइम लाइन है जो कहती है कि अदालत 14 दिन में केस पर संज्ञान लेगी और ज्यादा से ज्यादा 120 दिनों में केस ट्रायल पर आ जाना चाहिए।
राणा के मामले में ट्रायल जल्दी पूरा होने की उम्मीद
- दस्तावेजों की प्रक्रिया पूरी करने की भी 30 दिन की समय सीमा तय है। जाहिर सी बात है कि तहव्वुर राणा को इतनी मुश्किल से प्रत्यार्पित करके लाया गया है तो उसका ट्रायल जल्दी चलेगा हो सकता है कि रोजाना हो। अगर ऐसा होता है तो बहुत जल्दी ट्रायल पूरा होने की उम्मीद होगी। नए कानून में ट्रायल पूरा होने के बाद अदालत के फैसला देने की भी टाइम लाइन तय है जो कहती है कि अदालत को ट्रायल पूरा होने के बाद 30 दिन में फैसला देना होगा।
- अगर 30 दिन में फैसला नहीं दिया जाता है तो कोर्ट लिखित में उसका कारण दर्ज करेगा और अवधि को 45 दिन तक बढ़ाया जा सकता है। यानी सीमा रेखा खिंची है कि अदालत फैसला सुनाने में 45 दिन से ज्यादा की देरी नहीं कर सकती। कई बार मुकदमे में निचली अदालत से ट्रायल पूरा होकर जल्दी फैसला आ जाता है, लेकिन मामला अपील में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लटका रहता है।
- तहव्वुर राणा के मामले में उम्मीद है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी रफ्तार से निपटारा करेंगे। ऐसा मुंबई हमलों के मुख्य दोषी अजमल कसाब के केस को देख कर लगता है जिसमें हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने अपील निबटाने में ज्यादा समय नहीं लिया था। कसाब का मामला देखा जाए तो गिरफ्तारी से लेकर उसे फांसी दिये जाने तक चार वर्ष का समय लगा था।
- अब उम्मीद की जाती है कि नए कानून में प्रक्रिया और त्वरित हो जाने से राणा के मुकदमे में इतना वक्त भी नहीं लेगेगा। नये कानून में दया याचिका का भी समय तय है। सुप्रीम कोर्ट से अपील खारिज होने के 30 दिन के भीतर दया याचिका दाखिल करनी होगी। तो अगर इन सारी चीजों को देखा जाए और कानून में तय समय सीमा का पालन किया जाता है तो तहव्वुर राणा का मुकदमा जल्दी निपटेगा और उसमें तारीख पर तारीख नहीं पड़ेगी।
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