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बच्‍चों के लिए बेहद जरूरी है इसका टीकाकरण, नहीं लगवाने पर होगा नुकसान

खसरा के वायरस से खांसी, नाक का बहना, आंखों में जलन और तेज बुखार होता है। इसके साथ ही कानों में संक्रमण, निमोनिया, घूरती आंखे, दिमाग को नुकसान और अंत में मौत तक हो जाती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 30 Nov 2018 12:40 PM (IST)Updated: Fri, 30 Nov 2018 01:01 PM (IST)
बच्‍चों के लिए बेहद जरूरी है इसका टीकाकरण, नहीं लगवाने पर होगा नुकसान
बच्‍चों के लिए बेहद जरूरी है इसका टीकाकरण, नहीं लगवाने पर होगा नुकसान

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। मीजल्स-रूबेला जैसे जानलेवा बीमारी से निपटने के लिए सरकार सभी बच्चों को मुफ्त में वैक्सीन दे रही है। जिससे वायरस के दुष्परिणाम से बचा जा सके। बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर केंद्र सरकार ने खसरा और रूबेला जैसी गंभीर के लिए महाअभियान की शुरुआत की है। पोलियो मुक्त भारत की तरह भारत सरकार अब खसरा मुक्त भारत के लक्ष्य पर काम कर रही है। 2020 तक भारत को खसरा मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है।

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क्या हैं खसरा व रूबेला
खसरा को आम तौर पर छोटी माता के नाम से भी जाना जाता है। यह अत्यधिक संक्रामक होता है। संक्रमित व्यक्ति के खांसने और छींकने से यह बीमारी फैलती है। इसमें निमोनिया, डायरिया व दिमागी बुखार होने की संभावना बढ़ जाती है। चेहरे पर गुलाबी-लाल चकत्ते, तेज बुखार, खांसी, नाक बहना व आंखें लाल होना मर्ज के लक्षण हैं। रूबेला गर्भावस्था के दौरान होने वाला संक्रमण है। यह नवजात शिशुओं के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। संक्रमित माता से जन्मे शिशु को ग्लूकोमा, मोतियाबिंद, बहरापन, मंद बुद्धि व दिल की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। रूबेला से गर्भपात, समय पूर्व प्रसव व गर्भ में बच्चे की मौत भी हो सकती है।

एक बार जब वायरस शरीर में चला जाता है, संक्रमण पूर्णतया नाक, सांस की नली और फेफड़ों, त्वचा और शरीर के अन्य अंगों में फैलता है। खसरे के साथ एक व्यक्ति लक्षण शुरू होने के एक से दो दिन पहले (या ददोरे से तीन से पांच दिन पहले) से लेकर ददोरा प्रकट हने के चार दिन बाद तक दूसरों तक खसरा फैला सकता है। खसरा आम तौर पर औसत दर्जे की बीमारी का कारण बनता है। छोटे बच्चों में, जटिलताओं में मध्य कान का संक्रमण (ओटिटिस मीडिया), निमोनिया, क्रूप और दस्त शामिल हैं। वयस्कों में, बीमारी की और भी गंभीर होने की संभावना हो जाती है। पुराने रोगियों के लिए खसरे से संबंधित न्यूमोनिया के लिए अस्पताल के इलाज की आवश्यकता असामान्य नहीं है।

मीजल्स (खसरा) : खसरा के वायरस से ददोरा, खांसी, नाक का बहना, आंखों में जलन और तेज बुखार होता है। इसके साथ ही कानों में संक्रमण, निमोनिया, बच्चों को झटका आना, घूरती आंखे, दिमाग को नुकसान और अंत में मौत तक हो जाती है।
मंप्स : मंप्स से सिर में दर्द, तेज बुखार, मांस पेशियों में दर्द, भूख नहीं लगना, ग्रंथियों में दर्द, दिमागी बुखार।
रूबेला : महिलाओं में आर्थराइटिस और हल्का बुखार, गर्भावस्था में गर्भपात का खतरा, बच्चों में जन्मजात दोष जैसे सिर का बड़ा होना सहित अन्य शामिल है।

हवा में फैलता है रूबेला वायरस
मीजल्स, मंप्स और रूबेला वायरस हवा में फैलता है। यदि कोई मरीज पहले से संक्रमित है तो इसका वायरस स्वस्थ व्यक्ति को निशाने पर लेता है।

टीकाकरण से रोकथाम संभव
मीजल्स-रूबेला वायरस गंभीर और जानलेवा बीमारी होती है। लेकिन इसकी रोकथाम टीकाकरण के जरिए की जा सकती है। यह वैक्सीन बच्चों को तीन बीमारियों खसरा, गलगंड (मंप्स) और रूबेला रोग से बचाता है।

क्‍या होते हैं खसरे के शुरुआती लक्षण
खसरे का असरकारी टीका देश में काफी वर्षों से उपलब्ध है। इसके बावजूद खसरा छोटे बच्चों की मृत्यु का एक प्रमुख कारण बना हुआ है। यह सबसे अधिक संक्रामक बीमारियों में से एक है। इसके वायरस के संपर्क में आने से कई गैर-प्रतिरक्षक बच्चे इस श्वसन संबंधी बीमारी का शिकार हो जाते हैं। खसरा पैरामाइक्सोवाइरस परिवार के एक वायरस के कारण एक तेजी से फैलने वाली घातक बीमारी है।

खसरे के लक्षण कई बार इतने सामान्‍य होते हैं कि यह बीमारी पकड़ में ही नहीं आती। खासतौर पर बच्‍चों में इस बीमारी के लक्षणों की पहचान कर पाना कई बार बहुत ही मुश्किल हो जाता है। इस बीमारी के लक्षण फौरन पकड़ में भी नहीं आते। वायरस के हमले के करीब दो से तीन हफ्ते के बाद ही इस बीमारी की पहचान सम्‍भव हो पाती है। ये लक्षण दो से तीन दिन तक रहते हैं-

क्‍या है खसरे की पहचान
जर्मन खसरा किसी भी परिवार में फैल सकता है। कफ, काराईजा और कन्जक्टिवाइटिस मुख्‍य रूप से इसकी पहचान होते हैं। मुंह में तालू पर सफेद धब्बे भी नजर आते हैं। यह श्वसन से फैलने वाली बीमारी है और संक्रमित व्यक्ति के मुंह और नाक से बहते द्रव के सीधे या व्यक्ति के संपर्क क्षेत्र में आने से होती है।

  • 102 डिग्री फॉरनहाइट (38.9 डिग्री सेल्सियस) या उससे हल्‍का बुखार
  • सिर दर्द, भरी या बहती नाक और आंखों में जलन या लाल आंखें
  • सिर के पिछले हिस्‍से, गर्दन और कान के पीछे लिम्‍फ नोड्स का बढ़ना
  • चेहरे पर छोटा सा गुलाबी निशान होना, जो बहुत जल्‍दी ही धड़ पर फैल जाता है।
  • इसके बाद इसे बाजुओं और टांगों पर फैलने में भी वक्‍त नहीं लगता। हालांकि यह इसी क्रम में गायब भी हो जाता है।
  • जोड़ों में खुजली होना। खासतौर पर युवा महिलाओं में यह लक्षण काफी देखा जाता है।
  • तीन-चार दिन के बुखार के बार सारे शरीर पर लाल दाने हो जाते हैं।
  • यह दाने बाद में त्वचा पर गहरे भूरे रंग का दाग भी छोड़ जाते हैं।
  • यह औसतन 14 दिनों तक प्रभावी रहता है।

डॉक्‍टर के पास कब जाएं
जब भी आपको या आपके बच्‍चे को खसरे की शिकायत हो या फिर उपरोक्‍त लक्षणों में से कोई भी नजर आए तो आपको फौरन डॉक्‍टर से संपर्क करना चाहिये।

देशभर में 41 करोड़ बच्चे को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य
डब्ल्यूएचओ के 10 दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के सदस्य देशों के साथ मिलकर भारत इस कार्यक्रम के माध्यम से 2020 तक खसरा को खत्म करने और रूबेला /जन्मजात रूबेला सिंड्रोम (सीआरएस) को नियंत्रित करने की योजना पर काम कर रहा है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से देशभर में युद्धस्तर पर टीकाकरण अभियान शुरू किया गया है और इसमें लगभग 41 करोड़ बच्चे को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य रखा गया है।

खतरे से 36 प्रतिशत मौतें भारत में

  • साल 2015 में खसरे के कारण दुनियाभर में एक लाख 34 हजार लोगों की मौतें हुईं।
  • इसमें से 36 प्रतिशत यानी 49 हजार 200 मौतें अकेले भारत में हुईं।
  • इस समस्या को देखते हुए सरकार द्वारा टीकाकरण का विशेष अभियान शुरू किया।

जटिलताएं
खसरे की जटिलताएं अपेक्षाकृत साधारण ही हैं, जिसमें हल्के और कम गंभीर दस्त से लेकर, निमोनिया और मस्तिष्ककोप, (अर्धजीर्ण कठिन संपूर्ण मस्तिष्‍क शोथ), कनीनिका व्रणोत्पत्ति और फिर उसकी वजह से कनीनिका में घाव के निशान रह जाने के खतरे हैं। आमतौर पर जटिलताएं वयस्कों में ज्यादा होती हैं जो वायरस के शिकार हो जाते हैं।

उपचार
वहां खसरे के लिए कोई विशेष उपचार नहीं है। हल्के और सरल खसरा से पीड़ित अधिकांश रोगी आराम और सहायक उपचार से ठीक हो जाएंगे. हालांकि, यदि मरीज अधिक बीमार हो जाता है, तब चिकित्सा सलाह लेना महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि हो सकता है उनमें जटिलताएं विकसित हो रही हों।

कुछ रोगियों में खसरे की अगली कड़ी के रूप में निमोनिया का विकास हो सकता है। अन्य जटिलताओं में कान का संक्रमण, ब्रोंकाइटिस (श्वसनीशोथ) और इन्सेफेलाइटिस (मस्तिष्कशोथ) शामिल हैं। तीव्र खसरा श्वसनीशोथ से होने वाली मृत्यु की दर 15% है। हालांकि खसरा मस्तिष्कशोथ का कोई विशेष इलाज नहीं है, प्रतिजैविक निमोनिया के लिए प्रतिजैविकों की जरूरत होती है, खसरे के बाद विवरशोथ और श्वसनीशोथ हो सकता है। 


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