मातृशक्ति में स्व का भाव जागा, स्वयं को किया सिद्ध
ग्वालियर में स्वयं सिद्धा संस्था महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम कर रही है। कोरोना काल में शुरू हुई इस संस्था से 350 महिलाएं जुड़ी हैं जो उत्पाद बनाकर उन्हें देश-विदेश में बेच रही हैं। संस्था महिलाओं को उत्पादन में मदद करती है और बाजार भी उपलब्ध कराती है बिना किसी कमीशन के। महिलाएं महाराष्ट्रीयन गुजराती पंजाबी व्यंजन और हस्तशिल्प उत्पाद बनाती हैं जिनकी विदेशों में भी मांग है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ग्वालियर में मातृशक्ति में स्व का भाव जगाने के लिए संकल्प से सिद्धी का मूल ध्येय सिद्ध किया है महिलाओं के समूह स्वयं सिद्धा ने। यह संस्था महिलाओं में सांस्कृतिक संवर्द्धन और आंतरिक गुणों की पहचान कराकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्य कर रहा हैं। कोरोना काल में आपदा में अवसर तलाशने के लिए यह संस्था अस्तिव में आई। वर्तमान में संस्था से जुड़कर 350 महिलाएं समाज के नवसृजन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहीं हैं।
महत्वपूर्ण बात यह है कि यह संस्था महिलाओं को स्वयं के उत्पाद निर्मित करने में मदद करने के साथ ही उन्हें बाजार भी उपलब्ध कराती है। इसके बदले में संस्था महिला सदस्यों से कोई कमीशन नही लेती है। इसलिए उत्पादन से लेकर मुनाफे तक सदस्यों का पूर्ण अधिकार होता है। आज समूह की सदस्य आस्ट्रेलिया, जापान, दुबई, इटली,जर्मनी व अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों के बीच अपने उत्पाद पहुंचा रही हैं। इन महिलाओं द्वारा निर्मित महाराष्ट्रीयन, गुजराती, पंजाबी व्यंजनों के साथ-साथ हस्तशिल्प उत्पाद इन देशों में काफी पसंद किए जा रहे हैं।
स्वयं सिद्धा संस्था की सूत्रधार महिमा तारे ने बताया कि कोरोना संक्रमण काल में समाज घोर निराशा और हताशा का वातावरण निर्मित था। उस समय नया काम करने की कल्पना करना भी असंभव प्रतीत हो रहा था, क्योंकि बाजार बंद था, नौकरियों पर घनघोर काले बादल छाए हुए थे। कई परिवारों में दो वक्त की रोटी की व्यवस्था करना चुनौती पूर्ण था। जीवन का सरकार पर आश्रित होकर चलना मुश्किल था।
ऐसे माहौल में महिलाओं को घर की दहलीज लांघकर स्वयं को सिद्ध करने का संकल्प भी डरावना सा लग रहा था। साहस और हिम्मत के साथ पहला पग किसी तरह से आगे बढ़ाया। श्रीमती तारे कहती हैं कि संस्था का उद्देश्य केवल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना ही नही हैं, उनका व्यक्तित्व विकास और उनके सपनों को साकार करना मूलध्येय है।
आंवले के उत्पादों से की शुरुआत
संस्था की महिला सदस्यों को ग्वालियर के राजामाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय में आंवले की प्रोसेसिंग कर इसके उत्पाद बनाने का अवसर मिला। सदस्यों को यहां आंवले की धुलाई, छंटाई, कटाई, और फिर विभिन्न तरीकों से गूदा, रस या पाउडर तैयार करने का प्रशिक्षण मिला। इससे उन्होंने आंवला कैंडी, अचार, च्यवनप्राश, जूस, या कास्मेटिक उत्पाद बनाना सीखा इसके साथ सभी सदस्यों को उत्पादों के मानकीकरण और पाश्चुरीकरण का प्रशिक्षण दिया गया।
प्रशासन से मिला आर्डर रद हो गया
महिमा तारे बताती हैं कि दीपावली से पहले का समय था। पहला आर्डर जिला प्रशासन से स्वल्पहार का मिला। हम लोग उत्साहित थे। प्रत्येक महिला ने 10-10 किलो की मात्रा में व्यंजन तैयार किये। अचानक कोरोना गाइड लाइन के कारण प्रशासन ने आर्डर यह कहकर रद कर दिया कि केवल पैकेज्ड फूड लेने की अनुमति हैं। सभी महिलाएं निराश होकर सारा सामान मेरे घर पर रख गईं। बैजाताल पर स्टाल लगाकर इन व्यंजनों को बेचने का प्रयास किया, पूरे दिन बैठने के बाद कोई सामान नही बिका। निराशा के बीच आशा की किरण दीपावली के रूप में सामने आई और यह सामान हाथों-हाथों बिक गया। महिलाओं को मना करना पड़ा कि दीदी अब कोई आर्डर मत लेना।
ऋतुओं के अनुसार तैयार करती है उत्पाद
संस्था से जुड़ी महिलाओं के पास पूरे माह कार्य रहता है, क्योंकि महिला सदस्य ऋतुओं के अनुसार उत्पाद तैयार करती हैं, जिससे उनका माल हाथों-हाथों बिक जाता है। महिलाएं अचार, पापड़ नियमित तौर करती हैं। त्योहारों, होली, दीपावली, रक्षाबंधन, नवरात्र पर परंपरागत पकवान बाखरबड़ी, खमण-ढोकला, गुजिया, मठरी, नमकीन, पूरनपोली, गुड की रोटी बनाती हैं। व्यजनों का निर्माण सभी बहनें एक ही रसोई में एक दूसरे का हाथ बांटते हुए करती हैं।
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