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अचरज भरे Mid-day Meal के सरकारी आंकड़े, दस राज्यों में खाने की खराब गुणवत्ता का एक भी आंकड़े नहीं

इस खाने से पिछले चार सालों में 931 से ज्यादा बच्चे हो चुके है बीमार लेकिन वर्तमान साल में दस राज्यों में खाने की खराब गुणवत्ता के एक भी आंकड़े नहीं।

By Nitin AroraEdited By: Published: Thu, 05 Dec 2019 07:58 AM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 08:02 AM (IST)
अचरज भरे Mid-day Meal के सरकारी आंकड़े, दस राज्यों में खाने की खराब गुणवत्ता का एक भी आंकड़े नहीं
अचरज भरे Mid-day Meal के सरकारी आंकड़े, दस राज्यों में खाने की खराब गुणवत्ता का एक भी आंकड़े नहीं

नई दिल्ली जागरण ब्यूरो। स्कूली बच्चों को मिलने वाले दोपहर के खाने (मिड-डे मील) की गुणवत्ता को लेकर भले लगातार सवाल उठ रहे हों, लेकिन सरकारी आंकड़े में फिलहाल उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ सहित कई राज्य ऐसे हैं जहां इस साल एक भी ऐसी घटनाएं दर्ज नहीं है, जिसमें खाने से बच्चे बीमार हुए हों। यह स्थिति तब है, जब हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के खाने में मृत चूहे के मिलने से बच्चों के बीमार होने का मामला सामने आया था।

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इसी बीच बुधवार को लोकसभा में स्कूलों में दिए जाने वाले मिड-डे मील की गुणवत्ता का मुद्दा फिर उठा। हालांकि इस दौरान इस काम में लगी एजेंसियों की पूरी तरह से जांच-पड़ताल कर टेंडर देने की मांग की गई। लोकसभा में बुधवार को यह मुद्दा भाजपा की उप्र के बदायूं से सांसद डॉ संघमित्रा मौर्या ने उठाया, जिसमें उन्होंने मिड-डे मील की गुणवत्ता पर सवाल पर खड़े करते हुए कहा कि सरकार को मिड-डे मील से जुड़ी संस्थानों और एजेंसियों की जांच पड़ताल करानी चाहिए। इससे सरकार की छवि खराब हो रही है।

इससे पहले लोकसभा में सासंद अन्नपूर्णा देवी, राहुल रमेश शेवाले, भर्तृहरि महताब और एच बंसतकुमार ने भी ऐसे ही सवाल पूछे थे। साथ ही पूछा था कि पिछले चार सालों में मिड-डे मील से कितने लोग बीमार हुए। सरकार ने इसके जवाब में बताया है कि पिछले चार सालों में यानि 2016 से 19 नवंबर 2019 तक देश में कुल 931 बच्चे मिड-डे मील खाने से बीमार हुए है। इनमें सबसे ज्यादा 259 बच्चे झारखंड के है। जबकि दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है, जहां इन सालों में कुल 201 बच्चे इस खाने से बीमार हुए है।

इस मामले में तीसरे नंबर उत्तर प्रदेश है, जहां इन चार सालों में 154 बच्चे खाने से बीमार हुए। हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक 2016 के बाद से ऐसी घटनाओं में इसमें कमी आयी है। इस साल अब तक सिर्फ 44 घटनाएं रिपोर्ट हुई है। इनमें 43 घटनाएं अकेले तमिलनाडु की और एक घटना राजस्थान की है। यह रिपोर्ट सरकार की ओर से संसद में दी गई है।


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