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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किसानों को प्रदर्शन का अधिकार, लेकिन दूसरों के मौलिक अधिकार बाधित न हों

केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली सीमा पर डटे किसानों को हटाने से संबंधित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज फिर सुनवाई हुई। कोर्ट ने सुनवाई टालते हुए कहा सभी पक्षों को सुने बगैर कोई आदेश नहीं देंगे।

By TaniskEdited By: Published: Thu, 17 Dec 2020 08:01 AM (IST)Updated: Thu, 17 Dec 2020 10:36 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने किसान और सरकार में विवाद सुलझाने के लिए कमेटी बनाने के संकेत दिए।

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। नए कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन और रास्ते बंद किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार को मान्यता देते हुए कहा कि किसानों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन इससे दूसरों के आने-जाने और खानपान की जरूरी वस्तुएं हासिल करने का मौलिक अधिकार बाधित नहीं होना चाहिए। वहीं सरकार से भी सुझाव के लहजे में पूछा कि क्या समाधान निकलने तक कानूनों को निलंबित किया जा सकता है। समस्या के समाधान के लिए एक निष्पक्ष कमेटी के गठन पर विचार कर रहे कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि कोर्ट सिर्फ किसान आंदोलन और आवाजाही खोलने के विषय पर विचार करेगी। कानूनों की वैधता पर नहीं।

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अवकाशकालीन पीठ में नहीं हुई सुनवाई तो अटका रहेगा मामला

गुरुवार का दिन अहम था। शीर्ष कोर्ट में किसान संगठन पेश नहीं हुए और इस नाते कोर्ट ने सुनवाई शीतकालीन अवकाश तक के लिए टाल दी। अवकाश शनिवार से शुरू हो रहा है और अदालत जनवरी के पहले सप्ताह में ही फिर खुलेगी। ऐसे में अगर किसान संगठनों ने कमेटी के लिए अपने प्रतिनिधि नहीं दिए और मामला अवकाशकालीन पीठ के समक्ष नहीं आया तो अगले एक पखवाड़े तक मामला यूं ही अटका रहेगा।

मामले का लंबित होना आपसी सहमति से समाधान में बाधक नहीं

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने किसान आंदोलन के कारण बंद रास्तों को खुलवाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बुधवार को नोटिस जारी करते हुए आठ किसान संगठनों को भी पक्षकार बनाया था। लेकिन गुरुवार को उनमें से कोई भी सुनवाई के दौरान पेश नहीं हुआ। कोर्ट ने साफ किया कि वह सभी पक्षों को सुने बिना कोई आदेश नहीं देगा। कोर्ट ने किसान संगठनों को नोटिस भेजने का आदेश दिया और कहा कि नोटिस तामील होने के बाद मामले को जाड़े की छुट्टियों के बाद सुनवाई पर लगाया जाए। यह भी कहा कि सभी को नोटिस मिलने के बाद अगर जरूरी हो तो मामले को अवकाशकालीन पीठ के समक्ष भी उठाया जा सकता है। साथ ही कोर्ट ने साफ किया कि इस मामले का लंबित होना पक्षकारों के आपसी सहमति से समाधान निकालने में बाधा नहीं होगा।

प्रदर्शन के अधिकार में दखल नहीं देगी अदालत

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी साफ किया कि फिलहाल वह प्रदर्शन के अधिकार और लोगों के स्वतंत्रता के साथ बिना बाधा के आवागमन के अधिकार पर विचार कर रहा है। कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नियमित प्रक्रिया में सुनवाई होगी। सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि किसान आंदोलन के कारण रास्ते बंद हैं, जरूरी वस्तुएं, खाने-पीने की चीजें नहीं आ पा रही हैं जिससे चीजों के दाम बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी मौलिक अधिकार पूर्ण नहीं होता। प्रदर्शन और आने-जाने व जीवन के अधिकार के बीच संतुलन होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि वह प्रदर्शन के मौलिक अधिकार को मान्यता देते हैं और उसमें कटौती नहीं की जा सकती। कोर्ट इसमें दखल नहीं देगा। हालांकि यह अधिकार पब्लिक आर्डर के अधीन है। लेकिन जब तक यह शांतिपूर्ण है और संपत्ति व किसी की जान को नुकसान नहीं है, इसे बाधित नहीं किया जा सकता।

अटार्नी जनरल ने कहा, सिर्फ हां या ना में जवाब चाहते हैं किसान

केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल ने किसानों के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे बातचीत को तैयार नहीं हैं, कानून रद करने की मांग कर रहे हैं और सिर्फ हां या ना में जवाब चाहते हैं। उन्हें कानून के उपबंधों पर बात करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी फैली है, ऐसे में प्रदर्शनकारियों के वापस गांव लौटने पर इसके तेजी से फैलने का खतरा होगा।

पीठ ने पूछा, गड़बड़ नहीं होने की गारंटी कौन लेगा

दिल्ली सरकार ने कहा कि कोर्ट को किसानों के हितों का ध्यान रखना चाहिए। पंजाब सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम ने कहा कि समाधान के लिए कोर्ट द्वारा कमेटी गठित किए जाने का वह स्वागत करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि किसानों ने रास्ते नहीं रोके हैं बल्कि पुलिस ने उन्हें दिल्ली में घुसने से रोका है। इस पर पीठ ने कहा कि इस बात की गारंटी कौन लेगा कि इतनी बड़ी भीड़ के दिल्ली में आने से कोई गड़बड़ नहीं होगी। कोर्ट ने कहा कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना पुलिस का काम है। कोर्ट यह तय नहीं कर सकता।

भाकियू (भानू) ने मांगी रामलीला मैदान में प्रदर्शन की इजाजत

भारतीय किसान यूनियन (भानू) की ओर से पेश वकील एपी सिंह ने कहा कि किसानों को रामलीला मैदान में प्रदर्शन की इजाजत दी जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि हम आपके प्रदर्शन के अधिकार को मानते हैं, लेकिन बिना बातचीत के प्रदर्शन वर्षों ऐसे ही नहीं चल सकता। प्रदर्शन का एक उद्देश्य होता है। आपको बातचीत करनी चाहिए।


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