सुप्रीम कोर्ट ने CISF जवान की नौकरी से बर्खास्तगी को सही ठहराया, हाईकोर्ट का आदेश रद
सुप्रीम कोर्ट ने सीआईएसएफ जवान की नौकरी से बर्खास्तगी को सही ठहराते हुए हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने माना कि जवान के खिलाफ विभागीय जा ...और पढ़ें

सुप्रीम कोर्ट। (फाइल)
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माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी के रहते दूसरी शादी करने वाले सीआइएसएफ जवान को नौकरी से बर्खास्त करने को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का आदेश निरस्त करते हुए नौकरी से निकालने के अनुशासनात्मक अथॉरिटी के आदेश को बहाल कर दिया है।
हाई कोर्ट ने नौकरी से निकालने को कदाचार की तुलना में ज्यादा कड़ा दंड माना था और सजा कम करने के लिए मामला वापस अनुशासनात्मक अथॉरिटी को भेजा था। इस फैसले को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति संजय करोल और विपुल एम. पंचोली की पीठ ने केंद्र सरकार की अपील स्वीकार करते हुए अपने आदेश में कहा कि हाई कोर्ट की एकल और खंडपीठ ने फैसला देने में भूल की है। शीर्ष अदालत ने सीआइएसएफ के नियम 2001 की धारा 18 बी का जिक्र किया जो भर्ती व्यक्ति को अयोग्य ठहराने से संबंधित है। धारा 18 बी कहती है कि अगर कोई जीवित जीवनसाथी के रहते किसी अन्य व्यक्ति से शादी करता है तो वह नियुक्ति के लिए अयोग्य होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा का जिक्र करते हुए कहा कि धारा 18 बी किसी कार्य के लिए दंडात्मक परिणामों को निर्धारित करती है और कानून में यह सर्वविदित है कि किसी कानून या कानूनी प्रविधान के अंतर्गत बनाए गए नियम, जो दंडात्मक परिणामों को निर्धारित करते हैं, की सख्ती से व्याख्या की जानी चाहिए। ऐसी धारा को सक्रिय करने वाली शर्तें इसमें प्रयुक्त शब्दों से ही उत्पन्न होनी चाहिए।
पीठ ने कहा है कि ये तय कानून है कि जब ऐसा कोई नियम अस्पष्ट हो तो उस व्याख्या को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो दंडित होने वाले व्यक्ति के पक्ष में हो लेकिन मौजूदा मामले में ऐसा नहीं है। इस मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि कोई अस्पष्टता है। कानून के शब्द स्पष्ट हैं। न ही इस मामले में अनुशासनात्मक कार्रवाई में उचित प्रक्रिया का पालन न किए जाने का कोई आरोप है।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में “ड्यूरा लेक्स सेड लेक्स'' का सिद्धांत लागू होता है जिसका अर्थ है “कानून कठोर है, लेकिन यह कानून है''। कोर्ट ने कहा कि कानून के उल्लंघन से होने वाली असुविधा या अप्रिय परिणाम कानून के प्रविधान को कम नहीं कर सकते।
कोर्ट ने कहा कि इसलिए हाई कोर्ट का फैसला रद किया जाता है और अनुशासनात्मक प्राधिकारी के निष्कर्षों को बहाल किया जाता है।
क्या था मामला?
प्रणब कुमार नाथ ने 22 जुलाई 2006 को सीआईएसएफ में कॉन्स्टेबल के रूप में नौकरी ज्वाइन की। इस मामले में नाथ की पत्नी चंदना नाथ ने अधिकारियों को लिखित शिकायत भेजकर बताया कि प्रणब नाथ ने 14 मार्च 2016 को पार्थना दास से दूसरी शादी कर ली है। मामले की जांच हुई और पत्नी के रहते दूसरी शादी करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करते 1 जुलाई 2017 को नाथ को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था।
रिवीजन अथॉरिटी ने भी बर्खास्तगी को सही ठहराया लेकिन हाई कोर्ट ने बर्खास्तगी के दंड को ज्यादा कड़ा दंड मानते हुए दंड कम करने का आदेश देते हुए मामला अनुशासनात्मक प्राधिकारी को वापस भेज दिया जिसके खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।

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