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    'अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार से ऊपर है जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार', सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

    Updated: Tue, 15 Jul 2025 11:30 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अनियंत्रित ऑनलाइन सामग्री पर चिंता जताई है। कोर्ट ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणियों और कार्टूनों पर सख्ती दिखाते हुए ऑनलाइन सामग्री को रेगुलेट करने के लिए गाइडलाइन बनाने के संकेत दिए हैं। अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का गलत इस्तेमाल समाज में नफरत फैला सकता है इसलिए इस पर नियंत्रण जरूरी है।

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    अभिव्यक्ति की आजादी पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी। (फाइल फोटो)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी को कुछ भी कहने या अभिव्यक्त करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त है। मंगलवार को कोर्ट ने इस तरह के आचरण पर सवाल उठाते हुए ऑनलाइन सामग्री को रेगुलेट करने के लिए दिशा निर्देश तय करने के संकेत दिये।

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    कोर्ट ने ऑनलाइन सामग्री को रेगुलेट करने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि प्रस्तावित तंत्र संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए। जिसमें स्वतंत्रता और अधिकारों व कर्तव्यों के बीच संतुलन स्थापित हो।

    सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

    शीर्ष अदालत ने जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) को अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार (अनुच्छेद 19) के ऊपर बताते हुए कहा कि मान लो कि अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 के बीच प्रतिस्पर्धा होती है तो अनुच्छेद 21 को अनुच्छेद 19 पर हावी होना होगा। ये टिप्पणियां न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जोयमाल्या बाग्ची की पीठ ने हास्यकलाकारों और पाडकास्टरों से संबंधित याचिका पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को कीं।

    सोशल मीडिया पर अनियंत्रित व्यवहार पर भी कोर्ट ने जताई चिंता

    वहीं, एक अन्य पीठ जस्टिस सुधांशु धूलिया और अरविंद कुमार ने सोशल मीडिया पर अनियंत्रित व्यवहार और अभिव्यक्ति पर चिंता जताते हुए इस संबंध में रूल रेगुलेशन की जरूरत का संकेत देते हुए कहा कि इंटरनेट मीडिया पर लोग किसी को भी कुछ भी कह देते हैं, हमें इस पर कुछ करना होगा। इसी पीठ ने गत सोमवार को भी मध्यप्रदेश के कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और आरएसएस पर बनाए गए आपत्तिजनक कार्टून को अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग कहा था और कार्टूनिस्टों और स्टैंडअप कामेडियनों द्वारा कुछ भी कहने पर सवाल उठाते हुए टिप्पणी की थी कि ये लोग कुछ सोचते नहीं हैं क्या।

    अभिव्यक्ति की आजादी लोकतंत्र की रीढ़

    सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ ने हिंदू देवी देवताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में आरोपी वजाहत खान की याचिका पर सुनवाई करते हुए अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि ये हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की रीढ़ है, लेकिन इसका गलत इस्तेमाल समाज में नफरत और विघटन को जन्म दे सकता है। इसलिए नागरिकों को चाहिए कि वे जिम्मेदारी से बोलें, संयम रखें और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करें।

    नागरिकों को इस संवैधानिक अधिकार का महत्व पता होना चाहिए। दो दिनों में सुप्रीम कोर्ट की विभिन्न पीठों द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सोशल मीडिया और ऑनलाइन मीडिया पर अनियंत्रित व्यवहार को लेकर उठाए गए सवाल और इसे रेगुलेट करने की बताई गई जरूरत महत्वपूर्ण है।

    समय रैना भी आज सुप्रीम कोर्ट के सामने हुए पेश

    दिव्यांग लोगों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में इंडिया गॉट लेटेंट शो के होस्ट समय रैना सहित पांच सोशल मीडिया इन्फ्लूएन्सर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जोयमाल्या बाग्ची की पीठ कर रही थी। कोर्ट ने सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया साथ ही चेतावनी दी कि उन्हें इसके लिए और वक्त नहीं दिया जाएगा।

    इसी दौरान पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा कि वह अभिव्यक्ति की आजादी और दूसरे के अधिकार व कर्तव्यों का संतुलन बनाते हुए सोशल मीडिया गाइड लाइन तैयार करें। वेंकटरमणी ने कहा कि उन्हें इसके लिए कुछ समय चाहिए होगा। यह भी कहा कि इस पर व्यापक विचारविमर्श की जरूरत होगी। पीठ ने कहा कि गाइडलाइन का कार्यान्वयन सबसे मुश्किल चीज होगी। कोर्ट ने कहा कि एक की स्वतंत्रता से दूसरे के अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए।

    कोर्ट ने सोशल मीडिया के लिए गाइडलाइन तैयार करने को भी कहा

    गाइड लाइन संवैधानिक सिद्धांतों के मुताबिक होनी चाहिए जिसमें लोगों की स्वतंत्रता और अधिकारों व कर्तव्यों के बीच संतुलन हो। इसके बाद कोर्ट उसे जांचेगा। कोर्ट इस पर खुली बहस करेगा। जस्टिस सूर्यकांत ने इस पर सभी हितधारकों से चर्चा करने की बात कहते हुए कहा कि सभी हितधारक आकर अपना नजरिया रखें।

    पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार) अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) से ऊपर नहीं हो सकता। पीठ ने मामले पर विचार का मन बनाते हुए कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन क्योर एसएमए फाउंडेशन आफ इंडिया ने गंभीर मुद्दा उठाया है।

    कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय के मामसे पर भी हुई सुनवाई

    वहीं, मध्य प्रदेश के कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय की अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए हुए मंगलवार को न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की अध्यक्षता वाली पीठ ने उसे अंतरिम राहत तो दे दी लेकिन सोशल मीडिया पर अनियंत्रित व्यवहार और आपत्तिजनक पोस्टों पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि लोग किसी को भी कुछ भी कह देते हैं। हमें इस संबंध में कुछ करना होगा। कोर्ट ने कार्टूनिस्ट मालवीय को चेतावनी दी कि अगर उसने कोई भी आपत्तिजनक पोस्ट सोशल मीडिया पर किया तो अथॉरिटी कानून के मुताबिक कार्रवाई करने को स्वतंत्र होंगी।

    कोर्ट ने ये बात तब कही जब मध्यप्रदेश राज्य की ओर से पेश एडीशनल सालिसिटर जनरल केएम नटराज ने कोर्ट को बताया कि मालवीय लगातार आपत्तिजनक पोस्ट करते हैं और नटराज ने न्यायपालिका पर किये गए पोस्ट का जिक्र किया।

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