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    Talaq-e-Hasan: तलाक-ए-हसन को चुनौती देने वाली याचिका पर चार दिन बाद सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट में तलाक-ए-हसन को चुनौती देने वाली याचिका पर चार दिन बाद सुनवाई होगी। याचिका में सभी के लिए तलाक की एक समान प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए केंद्र को निर्देश जारी करने की मांग की गई है।

    By Achyut KumarEdited By: Updated: Mon, 18 Jul 2022 03:58 PM (IST)
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    सुप्रीम कोर्ट में तलाक-ए-हसन को चुनौती देने वाली याचिका पर चार दिन बाद होगी सुनवाई

    नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि तलाक-ए-हसन की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका को चार दिनों के बाद सूचीबद्ध किया जाएगा। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद ने अदालत को अवगत कराया कि महिला को तलाक का तीसरा नोटिस मिला है और उसका एक नाबालिग बच्चा है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को चार दिनों के बाद सूचीबद्ध करने के लिए कहा।

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    तलाक-ए-हसन को असंवैधानिक घोषित करने की मांग

    दरअसल, एक मुस्लिम महिला द्वारा 'तलाक-ए-हसन और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य सभी रूपों' को असंवैधानिक घोषित करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। याचिका में सभी के लिए तलाक की समान प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए केंद्र को निर्देश जारी करने की मांग की गई है।

    कई इस्लामी राष्ट्रों ने तलाक-ए-हसन पर लगाया प्रतिबंध

    याचिकाकर्ता ने कहा कि तलाक-ए-हसन और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य रूपों की प्रथा न तो मानव अधिकारों और लैंगिक समानता के आधुनिक सिद्धांतों के साथ सामंजस्यपूर्ण है, न ही इस्लामी विश्वास का एक अभिन्न अंग है। कई इस्लामी राष्ट्रों ने इस तरह की प्रथाओं को प्रतिबंधित किया है, जबकि यह सामान्य रूप से भारतीय समाज और विशेष रूप से याचिकाकर्ता की तरह मुस्लिम महिलाओं को परेशान करना जारी रखता है।

    • याचिकाकर्ता ने कहा कि तलाक-ए-हसन प्रथा कई महिलाओं और उनके बच्चों, खासकर वे लोग जो समाज के कमजोर आर्थिक वर्ग से संबंधित हैं, के जीवन पर भी कहर बरपाती है।
    • याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई है कि 'तलाक-ए-हसन और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य सभी रूप' शून्य और असंवैधानिक हैं।
    • यह याचिका एक मुस्लिम महिला ने दायर की है, जिसने पत्रकार होने के साथ-साथ एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक तलाक-ए-हसन की शिकार होने का दावा किया है।

    याचिकाकर्ता को दहेज के लिए किया गया प्रताड़ित

    याचिकाकर्ता की शादी 25 दिसंबर 2020 को मुस्लिम रीति-रिवाज से एक व्यक्ति से हुई थी और उसका एक बेटा है। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसके माता-पिता को दहेज देने के लिए मजबूर किया गया और बाद में दहेज नहीं मिलने पर उसे प्रताड़ित किया गया।

    गर्भावस्था के दौरान भी महिला को किया गया प्रताड़ित 

    याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि उसके पति और उसके परिवार के सदस्यों ने न केवल शादी के बाद, बल्कि गर्भावस्था के दौरान भी उसे शारीरिक-मानसिक रूप से प्रताड़ित किया, जिससे वह गंभीर रूप से बीमार हो गई। जब याचिकाकर्ता के पिता ने दहेज देने से इनकार कर दिया, तो उसके पति ने उसे एक वकील के माध्यम से एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक तलाक-ए-हसन दिया, जो पूरी तरह से अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 और संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों के खिलाफ है। 

    • याचिकाकर्ता ने तलाक-ए-हसन और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य सभी रूपों को मनमाना, तर्कहीन और अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के उल्लंघन के लिए शून्य और असंवैधानिक घोषित करने का आग्रह किया है।
    • याचिकाकर्ता ने मुस्लिम पर्सनल ला (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 को अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 का उल्लंघन करने के लिए शून्य और असंवैधानिक घोषित करने का निर्देश देने की भी मांग की, जो 'तलाक-ए-हसन और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य रूपों' की प्रथा को मान्य करता है।

    मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम 1939 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग

    याचिकाकर्ता ने मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 को उपरोक्त अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 का उल्लंघन करने के लिए शून्य और असंवैधानिक घोषित करने की भी मांग की।यह अधिनियम मुस्लिम महिलाओं को 'तलाक-ए-हसन और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य रूपों' से न्याय दिलाने में विफल रहा है।