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    Supreme Court: स्कूली मैदान में रामलीला समारोह को चुनौती, सुप्रीम कोर्ट आज करेगा सुनवाई

    By Agency Edited By: Jeet Kumar
    Updated: Thu, 25 Sep 2025 05:54 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के टुंडला में एक सरकारी स्कूल के मैदान में रामलीला समारोह आयोजित करने पर रोक लगाने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई है। जस्टिस और एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ ने बुधवार को इस मामले को सुनवाई के लिए 25 सितंबर को सूचीबद्ध करने पर सहमति दी।

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    सुप्रीम कोर्ट आज स्कूल में रामलीला के स्थगन के खिलाफ करेगा सुनवाई (फाइल फोटो)

     आईएएनएस, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के टुंडला में एक सरकारी स्कूल के मैदान में रामलीला समारोह आयोजित करने पर रोक लगाने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई है।

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    सुनवाई 25 सितंबर को सूचीबद्ध करने पर सहमति दी

    जस्टिस और एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ ने बुधवार को इस मामले को सुनवाई के लिए 25 सितंबर को सूचीबद्ध करने पर सहमति दी, जब इसे तत्काल सुनवाई के लिए प्रस्तुत किया गया।

    रामलीला समिति द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में कहा गया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसे सुनवाई का अवसर दिए बिना एकतरफा आदेश पारित किया।

    सोमवार को पारित अंतरिम आदेश में इलाहाबाद हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेन्द्र की पीठ ने इस आयोजन को सरकारी स्कूल के अंदर अनुमति देने के तरीके में गंभीर अनियमितताओं पर ध्यान दिया।

    स्कूल परिसर में नहीं होगी रामलीला

    स्कूल परिसर में रामलीला आयोजित करने के लिए अनुमति देने पर रोक लगाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट मुख्य न्यायाधीश भंसाली की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अज्ञात व्यक्तियों/प्रस्तावित रामलीला समिति द्वारा ऐसी गतिविधियों की अनुमति देना ''एक्स फैसी अवैध'' है।

    उत्तरदाताओं (प्राधिकरण) को 'रामलीला' आयोजित करने के लिए स्कूल परिसर के उपयोग की अनुमति देने से रोका जाता है। इसमें एक अज्ञात व्यक्ति/प्रस्तावित रामलीला समिति द्वारा स्कूल के खेल मैदान के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया था। पीआइएल ने शैक्षणिक गतिविधियों में व्यवधान के बारे में भी चिंता व्यक्त की।

    जजों के लिए परीक्षा की अनुमति पर संविधान पीठ में आज निर्णायक मोड़

    सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया कि देश में 25,870 स्वीकृत पदों में से लगभग पांच हजार पद जिला न्यायपालिका में अभी भी रिक्त हैं। तब प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने न्यायिक अधिकारियों के अनुभव को ध्यान में रखने का आग्रह किया, ताकि उन्हें बार कोटा के तहत जिला जजों के पद के लिए परीक्षा देने की अनुमति दी जा सके।

    पीठ संभवत: गुरुवार को 30 याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखेगी। संविधान पीठ में बुधवार को जस्टिस एमएम सुंदरेश, अरविंद कुमार, एससी शर्मा और के.विनोद चंद्रन भी शामिल थे। इसने लगातार दूसरे दिन इस संवैधानिक प्रश्न पर सुनवाई जारी रखी कि क्या न्यायिक अधिकारी, जिन्होंने बेंच में शामिल होने से पहले वकील के रूप में सात वर्षों का अभ्यास पूरा किया है, उन्हें बार के सदस्यों के लिए आरक्षित रिक्तियों के खिलाफ जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

    प्रक्रिया न्याय की सहायक, इसे दंडात्मक रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रक्रिया न्याय की सहायक होती है और इसे दमनकारी या दंडात्मक उपायों के रूप में अन्याय को बढ़ावा देने के लिए नहीं बनाया जाना चाहिए। इसी के साथ उसने झारखंड लोक सेवा आयोग को निर्देश दिया है कि वह एक उम्मीदवार का चिकित्सा परीक्षण कराए, जोकि प्रतियोगी परीक्षा में उपस्थित नहीं हो सकी थी।

    शीर्ष कोर्ट झारखंड हाई कोर्ट के सितंबर 2024 के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि उम्मीदवार को कोई राहत नहीं दी जा सकती क्योंकि चयन प्रक्रिया पहले ही समाप्त हो चुकी है।

    अनुसूचित जनजाति श्रेणी से जुड़ी इस उम्मीदवार ने जनवरी 2022 में आयोजित झारखंड संयुक्त सिविल सेवा प्रतियोगी परीक्षा, 2021 की प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा में सफलता प्राप्त की थी लेकिन तारीख के बारे में भ्रम के कारण चिकित्सा परीक्षण में उपस्थित नहीं हो सकी थी।

    जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि उन्हें यह समझ में नहीं आया कि उम्मीदवार जानबूझकर चिकित्सा परीक्षा में उपस्थित क्यों नहीं हुई और इस प्रकार इस मामले में उसे इतनी असमानता से दंडित किया गया है।

    उन्होंने कहा कि भले ही यह स्वीकार किया जाए कि वह निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चिकित्सा परीक्षण के लिए उपलब्ध नहीं थी, फिर भी उससे सहानुभूति से निपटा जाना चाहिए।