मतांतरण से जुड़ी याचिकाओं पर 16 अप्रैल को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट, जमीयत उलमा-ए-हिंद ने बताया असंवैधानिक
सुप्रीम कोर्ट 16 अप्रैल को मतांतरण से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। इनमें कुछ याचिकाएं राज्यों के मतांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देती हैं जबकि अन्य जबरन मतांतरण पर रोक की मांग करती हैं। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इन कानूनों को निजता का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी है। कोर्ट पहले ही इस विषय को गंभीर बताते हुए केंद्र और राज्यों से जवाब मांग चुका है।

पीटीआई, नई दिल्ली। देश में मतांतरण के मुद्दे से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 16 अप्रैल को सुनवाई करेगा। कुछ याचिकाओं में कई राज्यों में मतांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती दी गई है, जबकि एक अन्य याचिका में जबरन मतांतरण के खिलाफ राहत मांगी गई है। बहरहाल, यह मामला चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार तथा जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष आएगा।
जनवरी, 2023 में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मतांतरण एक गंभीर मुद्दा है और इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। इस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की सहायता मांगी थी जिसमें कथित तौर पर धोखे से मतांतरण को नियंत्रित करने के लिए केंद्र और राज्यों को कड़े कदम उठाने के निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिका में ''डराकर, उपहार का प्रलोभन देकर और आर्थिक लाभों के माध्यम से धोखे से लुभाकर" मतांतरण कराने पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में विभिन्न राज्यों के मतांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाले पक्षों से कहा था कि वे इस मुद्दे पर मामलों को हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने के लिए एक आम याचिका दायर करें।
कोर्ट ने कहा कि ''इलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष कम से कम पांच ऐसी याचिकाएं थीं; मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के समक्ष सात; गुजरात और झारखंड हाई कोर्ट के समक्ष दो-दो; हिमाचल प्रदेश के समक्ष तीन और कर्नाटक एवं उत्तराखंड हाई कोर्ट के समक्ष एक-एक याचिका थी''। गुजरात और मध्य प्रदेश द्वारा भी दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें मतांतरण पर उनके कानूनों के कुछ प्रविधानों पर रोक लगाने वाले संबंधित हाई कोर्ट के अंतरिम आदेशों को चुनौती दी गई।
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने दी ये दलील
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के मतांतरण विरोधी कानूनों के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि ये अंतरधार्मिक जोड़ों को परेशान करने और उन्हें आपराधिक मामलों में फंसाने के लिए बनाए गए थे। संगठन ने यह भी कहा कि पांच राज्यों के सभी स्थानीय कानूनों के प्रविधान किसी व्यक्ति को अपने धर्म के बारे में बताने के लिए मजबूर करते हैं और परिणामस्वरूप उसकी निजता का हनन करते हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।