Bulldozer Action in UP: यूपी सरकार की बुलडोजर कार्रवाई पर रोक नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने तीन दिन में मांगा जवाब
Bulldozer Action in UP सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि अनधिकृत संरचनाओं को हटाने में कानून की प्रक्रिया का सख्ती से पालन हो। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से इस मामले में तीन दिन के भीतर जवाब मांगा है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार और उसके अधिकारियों को उन याचिकाओं पर तीन दिनों के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया, जिनमें आरोप लगाया गया है कि पिछले सप्ताह राज्य में हुई हिंसा के आरोपितों के घरों को अवैध रूप से गिराया गया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह ध्वस्तीकरण (बुलडोजर की कार्रवाई) पर रोक नहीं लगा सकती, लेकिन सब कुछ निष्पक्ष होना चाहिए और अधिकारियों को कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।
जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस विक्रम नाथ की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि नागरिकों में यह भावना होनी चाहिए कि देश में कानून का शासन है। पीठ ने अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने को कहा कि 21 जून को मामले की अगली सुनवाई तक कुछ भी अप्रिय नहीं होना चाहिए। साथ ही कहा, 'इस बीच हम उनकी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करेंगे। हमारा उनके प्रति दायित्व है। इस बीच हमें उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। यह स्पष्ट होना चाहिए कि वे (आरोपित) भी समाज का हिस्सा हैं। आखिरकार, जब किसी को कोई शिकायत होती है तो उन्हें उसके निवारण का मौका मिलना चाहिए। अगर यह अदालत उनके बचाव के लिए आगे नहीं आएगी तो यह उचित नहीं होगा। हर चीज निष्पक्ष दिखनी चाहिए।' जस्टिस बोपन्ना ने कहा, 'जजों के रूप में हम भी समाज का हिस्सा हैं। जो कुछ हो रहा है, उसे हम भी देखते हैं। कभी-कभी हम भी अपनी राय बनाते हैं।'
जमीयत ने कहा, नोटिस देने के बाद हो कार्रवाई
शीर्ष अदालत मुस्लिम संगठन जमीयत-उलमा-ए-हिंद की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इनमें कहा गया है कि कथित दंगा आरोपितों को घर खाली करने का मौका दिए बगैर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जा रही है। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग की गई है कि राज्य में हालिया हिंसा के कथित आरोपितों की संपत्तियों पर अब ध्वस्तीकरण की कार्रवाई न की जाए। यह भी कहा गया है कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना संपत्तियों के ध्वस्तीकरण की कोई भी कार्रवाई न की जाए और ऐसी कोई भी कवायद उचित नोटिस देने के बाद ही की जाए।
यूपी सरकार व नगर निकायों ने कहा, दिए गए थे नोटिस
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता और कानपुर व प्रयागराज नगर निकायों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया गया है। साल्वे ने कहा कि याचिका में ध्वस्तीकरण की तीन घटनाओं का उल्लेख किया गया है, लेकिन इन सभी तीन मामलों में दंगे होने से काफी पहले नोटिस दिए गए थे और एक मामले में तो यह अगस्त, 2020 में दिया गया था। उन्होंने कहा, 'ये संपत्तियां कीमती हैं, इसलिए ये लोग ऐसे नहीं है जो अदालत नहीं जा सकते थे।' साल्वे ने कहा कि अधिकारियों को तीनों घटनाओं का सटीक विवरण देते हुए तीन दिनों में हलफनामा दाखिल करने की अनुमति दी जाए।
आरोपितों के घरों को गिराने की ये कार्रवाई भयावह : जमीयत
जमीयत की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं सीयू सिंह, हुजेफा अहमदी और नित्य रामकृष्णन ने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे अधिकारियों की तरफ से बयान जारी किए जा रहे हैं। सिंह ने कहा 21 अप्रैल को दिल्ली में जहांगीरपुरी इलाके में ध्वस्तीकरण से जुड़े मामले में इस अदालत ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी किया था और अगले आदेश तक ध्वस्तीकरण की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। उन्होंने कहा, 'चूंकि यथास्थिति का आदेश सिर्फ जहांगीरपुरी के संबंध में था, इसलिए उत्तर प्रदेश में अधिकारियों ने कार्रवाई की और दंगों, विरोध प्रदर्शनों व आपराधिक गतिविधियों के आरोपितों की संपत्तियां ध्वस्त कर दीं। कथित आरोपितों के घरों को गिराने की ये कार्रवाई भयावह हैं और इस देश में पहले कभी नहीं देखी गईं, यहां तक कि आपातकाल के दौरान भी नहीं।' पीठ ने सिंह से सवाल किया कि क्या ध्वस्तीकरण से पहले कोई पूर्व कार्यवाही लंबित थी। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश अर्बन टाउन प्लानिंग एक्ट की धारा-27 के मुताबिक संपत्तियों के ध्वस्तीकरण से पहले कम से 15 दिनों का नोटिस दिया जाना चाहिए ताकि कथित अतिक्रमणकारी अपीलीय प्राधिकारियों से संपर्क कर सकें। लेकिन इन सभी मामलों में कोई भी नोटिस नहीं दिया गया है। इस पर पीठ ने कहा, 'हमें पता है कि नोटिसों के बिना ध्वस्तीकरण नहीं हो सकता।'
जहांगीरपुरी मामले में भी जमीयत ने दाखिल की थी याचिका
जमीयत-उलमा-ए-हिंद ने दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में इमारतों को ध्वस्त करने के मुद्दे पर भी याचिका दाखिल की थी। नए आवेदन में कहा गया है कि मामले की अंतिम सुनवाई के बाद कुछ नए घटनाक्रम हुए हैं जिन पर इस अदालत को ध्यान देने की जरूरत है। एक याचिका के मुताबिक, 'कुछ दिनों पहले दो नेताओं ने कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं जिसके बाद देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव हुआ। विरोध स्वरूप कानपुर जिले में लोगों के एक समूह ने बंद का भी आह्वान किया था। विरोध वाले दिन हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच संघर्ष हुआ और दोनों के बीच पत्थरबाजी हुई। कानपुर में हिंसा के बाद कई अधिकारियों ने मीडिया में बयान दिए कि संदिग्धों और आरोपितों की संपत्तियों को जब्त और ध्वस्त किया जाएगा। यहां तक कि राज्य के मुख्यमंत्री ने भी मीडिया में कहा कि बुलडोजर का इस्तेमाल करके आरोपितों के घरों को गिरा दिया जाएगा।' याचिका में आरोप लगाया गया है कि कानून से इतर ऐसे कदमों को उठाया जाना निश्चित रूप से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है, खासतौर पर तब जबकि शीर्ष अदालत वर्तमान मामले को सुन रही है।