EPFO पेंशन मामले में अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 14 जुलाई को करेगा सुनवाई
एनसीआरऔर एनसीओए ने पेंशन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना का आरोप लगाया है। याचिका में ईपीएफओ द्वारा बढ़ी पेंशन के लिए दस्तावेज मांगे जाने और संयुक्त विकल्प अपनाए जाने के साक्ष्य देने की मांग का विरोध किया गया है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बढ़ी हुई पेंशन पाने की बाट जोह रहे कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के तहत आने वाले सेवानिवृत और वर्तमान कर्मचारियों के संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल कर सरकार और ईपीएफओ पर कोर्ट के आदेश की अवमानना का आरोप लगाया है।
एनसीआर और एनसीओए ने दाखिल की अवमानना याचिका
यह अवमानना याचिका नेशनल कन्फेडरेशन आफ रिटायरीस (एनसीआर) और नेशनल कन्फेडरेशन आफ आफीसर्स एसोसिएशन (एनसीओए) ने दाखिल की है जिसमें बढ़ी पेंशन पाने के लिए कर्मचारियों से संयुक्त विकल्प अपनाने के साक्ष्य और अन्य दस्तावेज मांगे जाने को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस याचिका पर विचार का मन बनाते हुए केस को 14 जुलाई को सुनवाई के लिए लगाने का निर्देश दिया।
कोर्ट 14 जुलाई को विचार करेगा
हालांकि कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि यह मामला अवमानना का नहीं बनता, इसमें कोर्ट के फैसले की व्याख्या और स्पष्टीकरण का मुद्दा है जिस पर कोर्ट 14 जुलाई को विचार करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान जैसा इशारा दिया है उससे लगता है कि जुलाई में होने वाली सुनवाई में ईपीएफओ पेंशन मामले में बढ़ी पेंशन के विकल्प को लेकर व्याप्त भ्रम और अस्पष्टता दूर हो सकती है।
विभिन्न दस्तावेज मांगे जाने का किया विरोध
ये आदेश मंगलवार को न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और सुधांशु धूलिया की पीठ ने याचिका पर सुनवाई के दौरान दिये। इससे पहले याचिकाकर्ता संगठन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकर नारायण और वकील पुरुषोत्तम शर्मा त्रिपाठी ने ईपीएफओ द्वारा कर्मचारियों और सेवानिवृत लोगों से बढ़ी पेंशन का विकल्प अपनाने के लिए विभिन्न दस्तावेज मांगे जाने का विरोध किया।
सैकड़ों लोग हैं जिनसे दस्तावेज मांगे गए हैं
गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में ऐसा नहीं कहा गया है। इस तरह ईपीएफओ वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कर्मचारियों को दी गई राहत से दूर कर रहा है। सैकड़ों लोग हैं जिनसे दस्तावेज मांगे गए हैं। लोग सेवानिवृत हो चुके हैं 80-80 वर्ष आयु के हैं अब उनसे कहा जा रहा है कि वे इस बात के सबूत दें कि उन्होंने संयुक्त विकल्प अपनाया था और ईपीएफओ ने उसे अस्वीकार कर दिया था उसका भी सबूत दिया जाए।
इन लोगों से आनलाइन इन सबूतों और दस्तावेजों को अपलोड करने को कहा जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि वह मामले पर विचार करेगा। इस केस पर जुलाई के दूसरे सप्ताह में सुनवाई की जाएगी। पीठ के न्यायाधीश सुधांशु धूलिया ने कहा कि यह मामला अवमानना याचिका का नहीं बनता है इसमें स्पष्टीकरण की अर्जी दाखिल की जा सकती है।
क्या कहा गया है याचिका में
गोपाल शंकर नारायण ने पीठ से अनुरोध किया कि वह याचिका पर नोटिस जारी कर दे ताकि तबतक ईपीएफओ का जवाब आ जाए। जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने कहा कि इस मामले में किसी उत्तर की जरूरत नहीं है, यहां सिर्फ जजमेंट की व्याख्या का मामला है।
याचिका में कहा गया है कि ईपीएफओ ने खुद ही एक दिसंबर 2004 से लेकर 2014 तक हायर पेंशन का विकल्प अपनाने के लिए संयुक्त आवेदन का विकल्प बंद कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट ने भी यह बात आदेश में दर्ज की है कि ईपीएफओ ने विकल्प अपनाने का आवेदन करने की विंडो बंद कर दी थी, तो फिर उस विकल्प को ईपीएफओ द्वारा रिजेक्ट करने और उसका प्रमाण पेश करने का सवाल कहां उठता है।
यह भी कहा है कि याचिकाकर्ता संगठन के सदस्य कंप्यूटर सेवी नहीं हैं वे बुजुर्ग और बीमार लोग हैं जो देश के दूर दराज इलाकों में रहते हैं ऐसे में उनके लिए दस्तावेजों के सबूतों के साथ संयुक्त विकल्प अपनाना मुश्किल है। याचिका में श्रम मंत्रालय और ईपीएफओ के अधिकारियों को प्रतिवादी बनाया गया है।
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