ट्रायल के दौरान जेल में और सजा के बाद रिहाई, ये कैसे
बात ये है कि विश्वविद्यालय में छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में निचली अदालत ने तीन अभियुक्तों को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सामूहिक दुष्कर्म के दोषियों के अपील के दौरान जमानत पर रिहा हो जाने पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि ये कैसा मामला है जिसमें ट्रायल के दौरान अभियुक्त जेल में रहे और सजा मिलने के बाद रिहा हो गए। कोर्ट ने ये टिप्पणी सोनीपत के एक निजी विश्वविद्यालय में छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में की। हालांकि कोर्ट ने अभियुक्त विकास गर्ग के खिलाफ जारी गैर जमानती वारंट पर फिलहाल रोक लगा दी है।
बात ये है कि विश्वविद्यालय में छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में निचली अदालत ने तीन अभियुक्तों को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी। कोर्ट ने दो अभियुक्तों हार्दिक सीकरी और करण छाबड़ा को 20 - 20 साल की कैद और तीसरे अभियुक्त विकास गर्ग को सात साल के कारावास की सजा सुनाई थी। तीनों अभियुक्तों ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की और हाईकोर्ट ने अपील विचारार्थ स्वीकार करते हुए अभियुक्तों को जमानत दे दी थी। जिससे वे जेल से रिहा हो गए थे। जबकि तीनों अभियुक्त ट्रायल के दौरान दो साल तक जेल मे रहे थे और उन्हें जमानत नहीं मिली थी।
हाईकोर्ट से अभियुक्तों को जमानत मिलने के आदेश को पीडि़ता ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने गत 6 नवंबर को अभियुक्तों को जमानत देने के पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। साथ ही तीनों अभियुक्तों को याचिका पर नोटिस भी जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगने के बाद अभियुक्तों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हो गए थे। अभियुक्त विकास गर्ग ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर गैर जमानती वारंट पर रोक लगाने की मांग की थी।
गुरुवार को जब यह मामला न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ के समक्ष सुनवाई पर आया तो पीठ ने सजा होने के बाद अभियुक्तों को जमानत पर रिहाई मिल जाने पर हैरानी जताई। पीठ ने कहा कि कानून मे हमें रोजाना नई चीजें सीखने को मिलती हैं। ये दुलर्भ केस है जहां ट्रायल के दौरान आरोपी जेल में रहे और सजा के बाद जमानत मिल गई। इस पर अभियुक्त विकास की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि उनके मुवक्किल का मामला दूसरे अभियुक्तों से अलग है। उनके मुवक्किल को सिर्फ सात साल की सजा हुई है जबकि बाकी दोनों को 20 -20 साल की सजा हुई है।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से उनके मुवक्किल की गिरफ्तारी का खतरा पैदा हो गया है। उन्होने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई थी तब तक अभियुक्त रिहा हो चुका था। इस पर पीठ ने कहा कि वे निचली अदालत से एनबीडब्लू रद कराएं। हालांकि बाद मे कोर्ट ने विकास गर्ग के एनबीडब्लू पर अंतरिम रोक लगाते हुए मामले पर सुनवाई के लिए 18 जनवरी की तिथि तय कर दी।