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    गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर SC ने की कार्रवाई, दिल्ली समेत इन राज्यों के मुख्य सचिव तलब

    जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने आयुर्वेदिक सिद्ध एवं यूनानी दवाओं के गैरकानूनी विज्ञापनों से जुड़े मामले में आज कुछ राज्यों के मुख्य सचिवों को तलब कर दिया। कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए शीर्ष अदालत ने सोमवार को दिल्ली आंध्र प्रदेश और जम्मू-कश्मीर समेत कई राज्यों की आलोचना की और उनके मुख्य सचिवों को तलब किया।

    By Jagran News Edited By: Swaraj Srivastava Updated: Mon, 10 Feb 2025 06:49 PM (IST)
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    जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ कर रही सुनवाई (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    पीटीआई, नई दिल्ली। आयुर्वेदिक, सिद्ध एवं यूनानी दवाओं के गैरकानूनी विज्ञापनों के विरुद्ध कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली, आंध्र प्रदेश और जम्मू-कश्मीर समेत कई राज्यों की आलोचना की और उनके मुख्य सचिवों को तलब किया।

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    जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि उसके आदेशों का शायद ही अनुपालन हुआ है। पीठ ने मुख्य सचिवों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अदालत में पेश होकर यह बताने को कहा कि इन राज्यों ने आदेशों का अनुपालन क्यों नहीं किया।

    आदेश नहीं मान रहे राज्य

    न्याय मित्र के रूप में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत ने कहा कि ज्यादातर राज्यों ने उल्लंघकर्ताओं की माफी स्वीकार करके और शपथ पत्र लेकर उन्हें बरी कर दिया है।

    पीठ ने कहा, 'न्याय मित्र ने सही ही कहा है कि आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी दवाओं के गैरकानूनी विज्ञापनों के मुद्दे से काफी हद तक निपट लिया जाएगा, अगर सभी राज्य ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 के रूल 170 को सही भावना से लागू करना प्रारंभ कर दें। इस अदालत द्वारा जारी कई आदेशों के बावजूद राज्य उनका अनुपालन नहीं कर रहे।'

    सात मार्च को होगी सुनवाई

    मामले की अगली सुनवाई सात मार्च को होगी। ये मामला आयुष मंत्रालय द्वारा पिछले साल अगस्त में आयुष मंत्रालय की अधिसूचना पर शीर्ष अदालत द्वारा रोक लगाने से जुड़ा है। इसमें नियम 170 को विवादास्पद रूप से छोड़ दिया गया था।

    अदालत ने अधिसूचना को 7 मई 2024 के आदेश का उल्लंघन बताया था। उस आदेश में अदालत ने कहा था कि कोई भी विज्ञापन जारी करने से पहले केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के तहत सेल्फ डिक्लेरेशन देना होगा।

    निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर होगी सुनवाई

    • सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह रेबीज रोगियों के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु के अधिकार की मांग करने वाली याचिका पर दो सप्ताह बाद सुनवाई करेगा। यह मामला जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष आया।
    • एनजीओ ऑल क्रिएचर्स ग्रेट एंड स्मॉल ने दिल्ली हाईकोर्ट के जुलाई 2019 के उस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसमें केंद्र और अन्य प्राधिकारियों को रेबीज को असाधारण बीमारी मानने और रोगियों को सम्मान के साथ मृत्यु का विकल्प देने का निर्देश देने से इन्कार कर दिया गया था।

    2020 में कोर्ट ने दिया था नोटिस

    निष्क्रिय इच्छामृत्यु चिकित्सा उपचार को रोकने या वापस लेने का कार्य है, जिसके तहत किसी व्यक्ति को मरने की अनुमति देने के उद्देश्य से जीवनरक्षक उपकरणों को बंद कर देने या हटा लेने जैसे उपाय शामिल होते हैं।

    जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और अन्य को नोटिस जारी किया और 2019 में दायर याचिका पर उनसे जवाब मांगा था। सोमवार को याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि केंद्र ने 2018 में इस मामले में हाई कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। पीठ ने कहा कि दो सप्ताह बाद सुनवाई की जाएगी।

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