फ्लैट खरीदने के लिए दर-दर भटकते लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने दिए सुझाव, कहा- 'सभी राज्यों के नियम हों समान'
सुप्रीम कोर्ट ने घर खरीदारों की मुश्किलों को कम करने और रेरा कानून की खामियों को दूर करने के लिए कई सुझाव दिए हैं। कोर्ट ने सभी राज्यों में रेरा नियमों में एकरूपता लाने का आग्रह किया है। अटकी हुई परियोजनाओं को पूरा करने के लिए एक समर्पित प्रकोष्ठ स्थापित करने का भी सुझाव दिया गया है।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने फ्लैट बुक कराने के बाद फ्लैट पाने के लिए दर-दर भटकते घर खरीदारों की मुश्किलें खत्म करने के लिए और रियल एस्टेट सेक्टर की भविष्य में यह स्थिति न आए, इसे ध्यान में रखते हुए सुझाव दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने रेरा (रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी) कानून की अस्पष्टता और खामियों को खत्म करने के लिए सभी राज्यों में रेरा नियमों में एकरूपता लाने का सुझाव दिया है।
अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार सभी राज्यों में रेरा के नियमों में एकरूपता लाने, अस्पष्टता को दूर करने और इस कानून की कमियों को खत्म करने के लिए परामर्श की प्रक्रिया अपनाए। कोर्ट ने फंसी परियोजनाओं के रिवाइवल और उन्हें पूरा करने के लिए एक समर्पित प्रकोष्ठ स्थापित करने का भी सुझाव दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए कई सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने रियल एस्टेट की आवासीय योजनाओं के बारे में भविष्य के लिए ये सुझाव अपने 12 सितंबर के फैसले में दिए हैं। यह फैसला जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने एनसीएलएटी के फैसले के विरुद्ध दाखिल अपीलों का निपटारा करते हुए सुनाया। फैसले में कोर्ट ने भविष्य में सुधार के लिए कई सुझाव दिए हैं।
इसमें कोर्ट ने कहा कि इनसाल्वेंसी एंड बैंकरेप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (आईबीबीआई) ''बेसिल अर्ली वार्निंग सिस्टम'' की तरह वार्निंग फ्रेमवर्क लाने पर विचार करे। जो दिवालियापन-पूर्व मध्यस्थता और प्रिवेंटिव रिस्ट्रक्चरिंग जैसी चीजों से प्रेरित हों, जिससे निदेशकों को स्थिति नियंत्रण से बाहर होने से पहले रिस्ट्रक्चरिंग करने की जरूरत होगी। सभी राज्यों के रेरा नियम समान करने के लिए केंद्र सरकार राज्यों से विचार विमर्श करे ताकि कानूनी अस्पष्टता और खामियों को दूर किया जा सके।
कोर्ट ने कहा है कि हाउसिंग बोर्ड, राज्य स्तरीय शहरी विकास प्राधिकरणों (जैसे- डीडीए, जीएमएडीए, एमएचएडीए, सीएचबी) और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (सीपीएसयू) को आईबीसी तंत्र के तहत रुकी हुई परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने और पूरा करने के लिए समर्पित प्रकोष्ठ स्थापित करने चाहिए। इससे इस क्षेत्र में विश्वास पैदा होगा, अफोर्डेबल हाउसिंग सुनिश्चित होगी और वास्तविक घर खरीदारों के हितों की रक्षा होगी।
अदालत ने इस बात पर जताई चिंता
शीर्ष अदालत ने कहा है कि ये बहुत चिंता का विषय है कि विभिन्न सरकारी थिंक टैंकों और प्रबंधन संस्थानों जैसे आईआईएम और आईआईटी में सैकड़ों करोड़ रुपये के निवेश के बावजूद, भारत को अभी भी एक मजबूत घरेलू परामर्श उद्योग की आवश्यकता है। इस सेक्टर के पुनर्गठन और घरेलू क्षमता निर्माण के लिए भारतीय थिंक टैंक और एकेडेमिक संस्थानों के सहयोग को मजबूत किया जाना चाहिए। इसमें भारत की कारोबारी सहूलियत बढ़ाने और इकोनमिक ग्रोथ तेज करने की क्षमता है।
कोर्ट ने जो सबसे महत्वपूर्ण सुझाव दिया है, वह फंसे हुए प्रोजेक्ट को पूरा करने और लोगों को घर मिलना सुनिश्चित करने के बारे में है।
कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार नेशनल एसेट रिकांस्ट्रेक्शन कंपनी लिमिटेड (एनएआरसीएल) या अन्य की तर्ज पर रियल एस्टेट-निर्माण-केंद्रित सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा या सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के माध्यम से कोई कॉरपोरेट निकाय की स्थापना पर भी विचार कर सकती है, ताकि आइबीसी फ्रेमवर्क के तहत रुकी हुई परियोजनाओं की पहचान, अधिग्रहण और उन्हें पूरा किया जा सके। ऐसी परियोजनाओं से बची हुई इन्वेंट्री यानी बिना बिके घरों का उपयोग प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) जैसी अफोर्डेबल आवास योजनाओं या सरकारी आवासों के लिए किया जा सकता है, जिससे आवास की कमी और फंसे प्रोजेक्ट दोनों का समाधान हो सके।
कोर्ट ने कहा, हालांकि ये सरकार का नीतिगत मामला है जो पूरी तरह उसके क्षेत्राधिकार में आता है, वह मूकदर्शक नहीं रह सकती। घर खरीदारों के हितों और इकोनमी की रक्षा करना सरकार का संवैधानिक दायित्व है।
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