'कानून लाकर आदेश को नहीं पलट सकती संसद', ट्रिब्यूनल सुधार अधिनियम 2021 पर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कही ये बात?
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्युनल सुधार अधिनियम 2021 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया है, जिससे केंद्र सरकार को झटका लगा है। कोर्ट ने कहा कि पहले खारिज किए गए प्रावधानों को मामूली बदलावों के साथ फिर से लागू किया गया, जो शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है। कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग की स्थापना का आदेश दिया और कहा कि संसद न्यायिक आदेश को पलट नहीं सकती।

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला। (फाइल फोटो)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार एक महत्वपूर्ण आदेश में ट्रिब्युनल सुधार अधिनियम 2021 के सदस्यों की नियुक्ति और कार्यकाल और सेवाशर्तों से संबंधित प्रविधानों को रद कर दिया है। केंद्र सरकार के लिए यह बड़ा झटका है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि पहले खारिज किये जा चुके प्रविधानों को नये कानून में मामूली बदलाव के साथ फिर से लागू कर दिया गया है। ये प्रविधान बने रहने लायक नहीं हैं क्योंकि ये शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता के संवैधानिक सिद्धांतों और सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी फैसले का उल्लंघन करते हैं जिसमें ट्रिब्युनल के सदस्यों की नियुक्ति, कार्यकाल व कार्यप्रणाली के मानकों को स्पष्ट किया गया है।
अदालत ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा कि संसद कानून लाकर न्यायिक आदेश को सामान्य तौर पर पलट नहीं सकती। न्यायालय ने प्रविधान रद करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में इंगित किये गए दोषों को दूर करने के बजाए विवादित अधिनियम केवल थोड़े बदले हुए रूप में उन्हीं प्रविधानों को पुन: लागू करता है।
संसद और न्यायपालिका के अधिकारों में अंतर भी बताया
कोर्ट ने फैसले में संविधान में दिए गए शक्तियों के पृथक्करण सिद्धांत और किसी भी कानून की न्यायिक समीक्षा के कोर्ट के अधिकार पर विस्तृत चर्चा करते हुए संसद और न्यायपालिका के अधिकारों में अंतर भी बताया है।
कोर्ट ने फैसले में चार महीने के भीतर राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग की स्थापना करने का आदेश दिया है। ये दूरगामी परिणामों वाला प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और के. विनोद चंद्रन की पीठ ने ट्रिब्युनल के सदस्यों की नियुक्ति और कार्यकाल आदि से संबंधित ट्रिब्युनल सुधार अधिनियम 2021 के प्रविधानों को चुनौती देने वाली मद्रास बार एसोसिएशन की याचिका पर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि संसद ने कोर्ट द्वारा रद किये जा चुके प्रविधानों को फिर से लागू करके बाध्यकारी न्यायिक फैसले को विधायी रूप से रद करने की कोशिश की है। ऐसा करना संवैधानिक संरचना के खिलाफ है। यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस अदालत द्वारा न्यायाधिकरणों की स्वतंत्रता और कार्यप्रणाली के सवालों पर निर्धारित सुस्थापित सिद्धांतों को लागू करने के बजाए, विधायिका ने ऐसे प्रविधानों को पुन: लागू करने का विकल्प चुना जो विभिन्न अधिनियमों और नियमों के तहत उन्हीं संवैधानिक बहसों को पुन: शुरू करते हैं।
'यह एक साझा संस्थागत कर्तव्य'
कोर्ट ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और जिला न्यायालय पहले से बड़ी संख्या में लंबित मुकदमों से जूझ रही न्यायिक प्रणाली में ऐसे मुद्दों की लगातार पुनरावृति से बहुमूल्य न्यायिक समय नष्ट होता है, जो अन्यथा सार्वजनिक और संवैधानिक महत्व के महत्वपूर्ण मामलों को निपटाने में लगाया जा सकता है। अदालतों में लंबित मामलों को कम करने की जिम्मेदारी केवल न्यायपालिका पर नहीं है। यह एक साझा संस्थागत कर्तव्य है।
कोर्ट ने कहा कि जहां न्यायपालिका को केस प्रबंधन और निर्णय लेने में दक्षता बढ़ाने का प्यास करना चाहिए, वहीं सरकार की अन्य शाखाओं को भी संवैधानिक सिद्धांतों और न्यायिक मिसालों को ध्यान में रखते हुए अपनी विधायी और कार्यकारी शक्तियों को प्रयोग करना चाहिए। सुशासन के लिए स्थापित कानून का सम्मान उतना ही आवश्यक है जितना कि न्यायिक अनुशासन के लिए।
फैसले में क्या कहा गया?
फैसले में कहा गया है कि जब तक कोर्ट द्वारा ट्रिब्युनल से संबंधित दिए गए फैसलों में जताई गई संवैधानिक चिंताओं का पूरी तरह समाधान नहीं किया जाता और जब तक संसद उन सिद्धांतों को ईमानदारी से लागू करने वाला कोई उपयुक्त कानून नहीं बनाती तब तक ट्रिब्युनल्स के सदस्यों और अध्यक्षों की नियुक्ति , योग्यता और कार्यकाल, सेवा शर्तों के संबंध में मद्रास बार एसोसिएशन के पांचवे और चौथे फैसले में निर्धारित सिद्धांत और निर्देश लागू रहेंगे।
कहा है कि ये फैसले न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखने ट्रिब्युनल्स को प्रभावी और निष्पक्ष न्यायिक निकायों के रूप में कार्य करने को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक बाध्यकारी संवैधानिक मानकों का प्रतिनिधित्व करते हैं और ये कंट्रोलिंग फ्रेमवर्क के रूप में कार्य करेंगे।
फैसले में कोर्ट ने कहा है कि आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) के ऐसे सभी सदस्यों की सेवाशर्तें जिन्हें 11 सितंबर 2021 और एक अक्टूबर 2021 के आदेशों द्वारा नियुक्ति किया गया था, पुराने अधिनयम और पुराने नियमों से शासित होंगी। इसके अलावा अध्यक्षों और सदस्यों की सभी नियुक्तियां जिनका चयन या सिफारिश चयन समिति ने 2021 का अधिनियम लागू होने के पहले की थी, लेकिन उनकी औपचारिक नियुक्ति की अधिसूचना कानून लागू होने के बाद हुई, संरक्षित रहेंगी।

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