'हम देश के सभी नागरिकों के संरक्षक', सुप्रीम कोर्ट की जांच एजेंसियों की ओर से वकीलों को तलब करने पर सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को खुद को देश के सभी नागरिकों का संरक्षक बताते हुए जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को तलब किए जाने के मामले में स्वत संज्ञान लेते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। चीफ जस्टिस बीआर गवई जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा- हम देश के सभी नागरिकों के संरक्षक हैं।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को खुद को देश के सभी नागरिकों का 'संरक्षक' बताते हुए जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को तलब किए जाने के मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
'हम देश के सभी नागरिकों के संरक्षक हैं
चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा- 'हम देश के सभी नागरिकों के संरक्षक हैं।'
पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि कोई वकील साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ या उन्हें गढ़ने में शामिल होता है तो उनकी प्रतिरक्षा समाप्त हो जाएगी। मेहता ने कहा कि जांच एजेंसियों को कभी भी किसी वकील को पेशेवर राय देने के मुद्दे पर नहीं बुलाना चाहिए।
मामले में पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि मुद्दा न्याय तक पहुंच का है। उन्होंने कहा कि हाल ही में एक वकील के खिलाफ इस आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई कि उनके मुवक्किल ने कहा था कि उसने उन्हें नोटरीकृत हलफनामा देने के लिए अधिकृत नहीं किया था।
वह वकीलों के दो वर्ग नहीं बना सकती- पीठ
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि वह वकीलों के दो वर्ग नहीं बना सकती। मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह सभी के लिए कानून बनाए, लेकिन देश के परि²श्य को ध्यान में रखे।
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि विभिन्न बार निकायों द्वारा दायर प्रस्तुतियों का अध्ययन किया जाएगा और एक लिखित नोट दाखिल किया जाएगा। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने ईडी की कार्यप्रणाली पर चिंता व्यक्त की थी।
एजेंसी सभी सीमाएं पार कर रही है- कोर्ट
कोर्ट ने कहा था कि एजेंसी सभी सीमाएं पार कर रही है। यह मामला ईडी द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता अर¨वद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को तलब किए जाने के बाद सामने आया।
तलाक के बाद स्वजनों पर मामला जारी रखने का औचित्य नहीं है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि दंपती के बीच तलाक के बाद परिवार के सदस्यों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने का कोई ठोस औचित्य नहीं है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने दहेज अधिनियम और आइपीसी की धारा 498ए (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) सहित अन्य प्रविधानों के तहत एक व्यक्ति (ससुर) के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद करते हुए यह निर्देश दिया।
वैवाहिक संबंध तलाक के बाद समाप्त हो जाता है मामला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामलों में पूर्ण न्याय के लिए अनुच्छेद 142 (पूर्ण न्याय करने) के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, ''एक बार जब वैवाहिक संबंध तलाक के बाद समाप्त हो जाता है और पक्षकार अपने जीवन में आगे बढ़ जाते हैं, तो परिवार के सदस्यों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखना, विशेष रूप से विशिष्ट आरोपों के अभाव में, किसी वैध उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है।''
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।