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    सुप्रीम कोर्ट ने केरल HC के फैसले पर लगाई रोक, दुर्लभ बीमारी के लिए केंद्र को पैसे देने का था आदेश; जानें पूरा मामला?

    सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है जिसमें केंद्र सरकार को स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) के मरीजों को 50 लाख रुपये की सीमा से परे 18 लाख रुपये की अतिरिक्त दवाइयां देने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने केंद्र सरकार से नोटिस जारी किया है और इस विवादित फैसले पर रोक लगा दी है।

    By Jagran News Edited By: Chandan Kumar Updated: Wed, 26 Feb 2025 07:24 PM (IST)
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    सरकारी नीति के तहत केंद्र सरकार जरूरतमंद मरीज को इलाज के लिए 50 लाख रुपये दे सकती है।

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है, जिसमें केंद्र सरकार को स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से पीड़ित मरीज को 50 लाख रुपये की सीमा से परे 18 लाख रुपये की अतिरिक्त दवाइयां मुहैया कराने का निर्देश दिया गया था।

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    स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी है। इसमें मांसपेशियां लगातार कमजोर होती जाती हैं और इनका क्षय होते जाता है। यह बीमारी उन तंत्रिका कोशिकाओं को प्रभावित करती है जो मांसपेशियों की स्वैच्छिक गतिविधियों को नियंत्रित करती हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जारी की नोटिस

    गौरतलब है कि सरकारी नीति के तहत केंद्र सरकार जरूरतमंद मरीज को इलाज के लिए 50 लाख रुपये दे सकती है। बहरहाल, चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने 24 फरवरी को केंद्र की याचिका पर प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया। इसमें कहा गया, ''17 अप्रैल, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में नोटिस जारी कर जवाब मांगा जाए. मामले में सुनवाई की अगली तारीख तक विवादित फैसले के आदेश पर रोक रहेगी।"

    हाई कोर्ट ने छह फरवरी को निर्देश दिया था कि 24-वर्षीय मरीज सेबा पीए को निरंतर इलाज सुनिश्चित करने हेतु स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी की दवा 'रिसडिप्लम' मुहैया की जानी चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि यह लगातार जारी रहना चाहिए जब तक कि इस दवा की अधिक कीमत का मामला एकल-जज की पीठ में सुनी नहीं जाती है। हालांकि, इस प्रक्रिया में कम से कम एक महीने का समय लगने की उम्मीद है।

    हाई कोर्ट के समक्ष सेबा की याचिका में रिसडिप्लम की अत्यधिक लागत पर प्रकाश डाला गया। इस दवा की कीमत 6.2 लाख रुपये प्रति बोतल है। केंद्र की ओर से दलील दी गई कि 20 किलोग्राम तक वजन वाले मरीजों को प्रति माह एक बोतल की आवश्यकता होती है, जबकि अधिक वजन वाले मरीजों को तीन बोतलों तक की आवश्यकता हो सकती है। इससे दीर्घकालिक उपचार आर्थिक रूप से अव्यवहारिक हो जाता है।

    वकील ने दवाई की कीमत को लेकर कही ये बात

    सेबा की ओर से वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर ने कहा कि सरकार या तो दवा निर्माता के साथ बातचीत करके या पेटेंट अधिनियम, 1970 के प्रविधानों को लागू करके उपचार की लागत को कम करने के लिए कदम उठा सकती थी। उन्होंने दलील दी कि चीन और पाकिस्तान जैसे देशों ने इस बीमारी के उपचार की कीमत कम करने के लिए दवा निर्माता के साथ सफलतापूर्वक बातचीत की थी। उन्होंने सवाल किया कि भारत ने इसी तरह के कदम क्यों नहीं उठाए। हालांकि, पीठ ने कहा कि हो सकता है भारत सरकार ने ''अंतरराष्ट्रीय प्रभाव'' के कारण ऐसे उपायों से परहेज किया हो।

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