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    वक्फ नियम पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, 5 साल की अनिवार्यता पर रोक

    Updated: Mon, 15 Sep 2025 11:30 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ करने के लिए कम से कम पांच वर्ष इस्लाम धर्मावलंबी होने की अनिवार्यता के प्रविधान पर रोक लगाई है लेकिन इसे मनमाना नहीं माना है। कोर्ट ने 1923 के मुसलमान वक्फ एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि वक्फ की आड़ में देनदारियों से बचने की प्रवृत्ति है। यह प्रविधान केवल उन लोगों पर लागू होता है जो वास्तव में इस्लाम धर्म को मानते हैं।

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    वक्फ नियम पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला (फाइल फोटो)

    माला दीक्षित, जागरण, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ करने के लिए कम से कम पांच वर्ष इस्लाम धर्मावलंबी होने की अनिवार्यता के प्रविधान पर भले ही अंतरिम रोक लगाई हो, लेकिन आदेश में माना है कि इस प्रविधान को मनमाना और भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता।

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    कोर्ट ने इस संबंध में 1923 के मुसलमान वक्फ एक्ट के उद्देश्य और कारणों का जिक्र करते हुए वक्फ की आढ़ में कानून के शिकंजे और देनदारियों से बचने की चतुराई और प्रवृत्ति की बात दर्ज की है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे में यह प्रविधान केवल उन लोगों के लिए लागू किया गया है जो वास्तव में इस्लाम धर्म को मानते हैं और जिन्होंने केवल कानून के शिकंजे से बचने के लिए स्वयं को इस्लाम धर्म में मतांतरित नहीं किया है।

    कोर्ट ने क्या कहा?

    कोर्ट ने दूसरी शादी करने पर कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए कुछ लोगों द्वारा इस्लाम अपनाने का उदाहरण भी आदेश में दिया है। हालांकि कोर्ट ने कहा कि अभी तक यह पता लगाने की कोई प्रक्रिया या तंत्र उपलब्ध नहीं है कि कोई व्यक्ति कम से कम पांच वर्ष से इस्लाम का पालन कर रहा है या नहीं, तो ऐसे में इस प्रविधान को तुरंत लागू नहीं किया जा सकता।

    कोर्ट ने कहा कि जब तक केंद्र सरकार संशोधित वक्फ अधिनियम की धारा-109 के तहत इस बारे में नियम नहीं बनाती, तब तक संशोधित वक्फ अधिनियम की धारा-3 (आर) का यह प्रविधान लागू नहीं हो सकता, जिसके तहत किसी व्यक्ति को वक्फ बनाने के उद्देश्य से चल या अचल संपत्ति समर्पित करने के लिए कम से कम पांच वर्ष तक इस्लाम का पालन करने की आवश्यकता है।

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