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    एसिड अटैक केस में 16 साल की देरी न्याय व्यवस्था का मजाक, सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

    Updated: Thu, 04 Dec 2025 11:30 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने एसिड अटैक के एक मुकदमे में 16 साल की देरी पर नाराजगी जताई और इसे न्याय व्यवस्था का मजाक बताया। अदालत ने देशभर के उच्च न्यायालयों से ए ...और पढ़ें

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    16 साल की देरी पर सुप्रीम कोर्ट नाराज

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एसिड हमले के मुकदमे में 16 साल की देरी पर ¨चता और नाराजगी जताते हुए गुरुवार को कड़ी टिप्पणियां कीं। शीर्ष अदालत ने मुकदमे के ट्रायल में अनुचित देरी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह न्याय व्यवस्था का मजाक है।

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    शीर्ष अदालत ने दिल्ली की रोहिणी अदालत में 2009 से लंबित मुकदमे को शर्म का विषय बताते हुए कहा कि अगर राष्ट्रीय राजधानी इसे नहीं संभाल सकती तो कौन संभालेगा। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और जोयमाल्या बागची की पीठ ने एसिड अटैक के मुकदमों को गंभीरता से लेते हुए देशभर के उच्च न्यायालयों से उनके यहां लंबित ऐसे मुकदमों का चार सप्ताह में ब्योरा मांगा है।

    16 साल की देरी पर सुप्रीम कोर्ट नाराज

    एसिड हमला पीडि़त की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र सरकार और दिव्यांग जन सक्षमता विभाग को भी नोटिस जारी किया। गुरुवार को एसिड हमला पीडि़ता स्वयं कोर्ट में पेश हुई। उसने जब बताया कि उसके ऊपर 2009 में एसिड हमला हुआ था। उसका मुकदमा अब भी दिल्ली की रोहिणी अदालत में लंबित है।

    इस पर सीजेआइ ने इतने लंबे समय से मुकदमा लंबित होने पर चिंता और नाराजगी जताई। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह न्याय व्यवस्था का कितना मजाक है। यह शर्म की बात है। 2009 का मुकदमा अभी चल रहा है। वह इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेंगे।

    इस मामले की रोजाना सुनवाई होनी चाहिए। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह इस संबंध में एक अर्जी दाखिल करे। कोर्ट उस पर आदेश देगा।याचिकाकर्ता ने कहा कि 2009 में उस पर एसिड हमला हुआ था, लेकिन 2013 तक उसके मामले में कुछ नहीं हुआ। इसके बाद जिला एवं सत्र न्यायाधीश डाक्टर परमिंदर कौर ने उसका केस फिर खुलवाया और केस आगे बढ़ा।इससे एक उम्मीद जगी।

    न्याय व्यवस्था का मजाक: सुप्रीम कोर्ट

    पीडि़ता ने कहा कि अब वह अन्य एसिड हमला पीडि़तों के लिए काम करती है। उसके ऊपर एसिड फेंका गया था, जिसके निशान उसके शरीर पर दिखते हैं। लेकिन, कुछ मामलों में पीडि़ताओं को एसिड पिला दिया जाता है। उनकी तकलीफें भी वैसी ही हैं, लेकिन ऊपर से निशान नहीं दिखते। वे चल नहीं सकतीं। उनको कृत्रिम भोजन नली लगाई जाती है।

    कोर्ट ने कहा कि एसिड हमले के मामलों की सुनवाई विशेष अदालतों में होनी चाहिए। पीठ ने अदालत में मौजूद सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से ऐसी पीडि़ताओं को दिव्यांग माने जाने और जन कल्याण की योजनाओं का लाभ दिए जाने के मुद्दे पर जवाब मांगा।

    मेहता ने कहा कि उन्हें दिव्यांग माना जाएगा। सरकार इस मामले पर गंभीरता से विचार करेगी। यह भी कहा कि ऐसा अपराध करने वालों को भी ऐसा ही कष्ट होना चाहिए। उनके साथ किसी तरह की सहानुभूति नहीं की जा सकती। सालिसिटर जनरल ने कहा कि मौजूदा मामला हरियाणा का है, जो दिल्ली स्थानांतरित हुआ था। ऐसे में हरियाणा को भी पक्षकार बनाया जाना चाहिए।