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    सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट से तीन महीने से ज्यादा समय से सुरक्षित फैसलों का ब्योरा मांगा, चार सप्ताह में देनी होगी रिपोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट में दो से तीन साल से फैसले सुरक्षित रखे जाने पर नाराजगी जताते हुए देश के सभी हाई कोर्टों से 31 जनवरी 2025 से पहले से लंबित सुरक्षित फैसलों का ब्योरा मांगा है। शीर्ष अदालत ने चार सप्ताह में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है और कहा है कि अब फैसले लंबित नहीं रखे जा सकते। अगली सुनवाई 21 जुलाई को होगी।

    By Jagran News Edited By: Chandan Kumar Updated: Tue, 06 May 2025 07:02 AM (IST)
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    सुप्रीम कोर्ट ने न्याय में देरी पर सख्ती दिखाते हुए सभी हाई कोर्टों से सुरक्षित फैसलों का विवरण मांगा है।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट द्वारा सुनवाई पूरी होने के बाद लंबे समय तक फैसले सुरक्षित रखने और आदेश न सुनाए जाने पर नाराजगी व्यक्त की है। शीर्ष अदालत ने झारखंड सहित देश के सभी हाई कोर्ट से उन मामलों का ब्योरा मांगा है जिनमें 31 जनवरी 2025 से पहले के जजमेंट सुरक्षित हैं और जिनका फैसला नहीं दिया गया है।

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    सभी हाई कोर्ट को चार सप्ताह के भीतर इस संबंध में जानकारी प्रस्तुत करनी होगी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट 21 जुलाई को फिर सुनवाई करेगा।

    झारखंड के चार दोषियों की याचिका पर सुनवाई

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने झारखंड के चार सजायाफ्ता दोषियों की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश जारी किया। दोषियों ने झारखंड हाई कोर्ट में दो से तीन साल तक अपील पर फैसला सुरक्षित रहने और आदेश न सुनाए जाने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की है। चारों याचिकाकर्ताओं की अपीलों पर झारखंड हाई कोर्ट ने 27 अप्रैल 2022, पांच मई 2022, सात जून 2022 और पांच जनवरी 2022 को सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लिया था।

    हाई कोर्ट को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश

    इस मामले में शीर्ष अदालत ने 23 अप्रैल 2025 को झारखंड हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिया था कि वह स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर उन सभी मामलों का ब्योरा भेजे जिनमें दो महीने से ज्यादा समय से फैसला सुरक्षित है और आदेश नहीं सुनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल करते हुए झारखंड हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने सील बंद लिफाफे में स्टेटस रिपोर्ट भेजी थी।

    56 मामलों में फैसला सुरक्षित, अब तक आदेश नहीं

    स्टेटस रिपोर्ट में सामने आया कि हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने कुछ आपराधिक अपीलों सहित कुल 56 मामलों में सुनवाई करके फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। खंडपीठ ने ये फैसले चार जनवरी 2022 से लेकर 16 दिसंबर 2024 तक विभिन्न तारीखों पर सुरक्षित रखे थे और अभी तक फैसला नहीं दिया है। इसके अलावा एकलपीठ के समक्ष 11 ऐसे मामले लंबित हैं जिनमें सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रखा गया है। ये मामले 25 जुलाई 2024 से लेकर 27 सितंबर 2024 के बीच के हैं।

    75 मामलों का त्वरित निपटारा और नई जानकारी की मांग

    सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में दर्ज किया है कि खंडपीठ के समक्ष फैसले के लिए लंबित 56 मामलों की सूची में चारों याचिकाकर्ताओं की अपीलों के केस शामिल नहीं हैं। शीर्ष कोर्ट ने आदेश में एक अंग्रेजी दैनिक में छपी खबर का भी संज्ञान लिया है जिसमें कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार और ब्योरा मांगे जाने के बाद झारखंड हाई कोर्ट ने एक सप्ताह में 75 क्रिमिनल अपीलों का निपटारा किया।

    75 मामलों की सूची, तारीख और फैसले की कॉपी मांगी गई

    रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट और अंग्रेजी दैनिक में छपी खबर को देखते हुए शीर्ष अदालत ने झारखंड के रजिस्ट्रार जनरल को फिर आदेश दिया है कि वह उन 75 मामलों की सूची पेश करे जिनमें फैसले सुनाए गए हैं। सूची में यह बताया जाए कि कब फैसला सुरक्षित रखा गया और किस तारीख को सुनाया गया। साथ ही सुनाए गए फैसले की साफ्ट कॉपी भी भेजनी होगी। साथ ही याचिकाकर्ताओं के केस का भी ब्योरा सुप्रीम कोर्ट ने मांगा है।

    देशभर के हाई कोर्टों से भी स्टेटस रिपोर्ट तलब

    सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट के अलावा देशभर के हाई कोर्टों के रजिस्ट्रार जनरलों को उन मामलों की स्टेटस रिपोर्ट भेजने का आदेश दिया है जिनमें 31 जनवरी 2025 से पहले से फैसले सुरक्षित हैं। रिपोर्ट में आपराधिक और दीवानी मामलों का अलग-अलग ब्योरा देना होगा और यह भी बताना होगा कि फैसला खंडपीठ ने सुरक्षित रखा हुआ है या एकलपीठ ने। इतना ही नहीं फैसला सुरक्षित रखने वाली पीठ के न्यायाधीश भी बताने होंगे।

    याचिकाकर्ताओं की जमानत पर 13 मई को सुनवाई

    इस बीच सुप्रीम कोर्ट याचिकाकर्ताओं की जमानत की मांग पर 13 मई को सुनवाई करेगा। कोर्ट ने झारखंड लीगल सर्विस अथॉरिटी से कहा है कि वह इस आदेश को देखते हुए लोगों को कानूनी सहायता देने के लिए कदम उठाए ताकि सुनिश्चित हो कि याचिकाकर्ताओं की तरह और लोग उपचारहीन न रह जाएं। लीगल सर्विस अथॉरिटी सभी दस ऐसे मामलों में उचित कार्रवाई करे और उन लोगों की अपील लंबित रहने तक सजा निलंबन और जमानत के उद्देश्य से ब्योरा सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी को भेजे।

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