प्राइवेट बिल्डरों से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, अदालत ने कहा- रेरा की कार्यप्रणाली निराशाजनक
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रेरा के कामकाज की आलोचना करते हुए इसे निराशाजनक करार दिया। प्राइवेट बिल्डरों से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रहे जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ को वरिष्ठ अधिवक्ता के परमेश्वर ने बताया कि रेरा कानून वास्तव में अपने क्रियान्वयन में विफल रहा है। उन्होंने रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए नियामक तंत्र को मजबूत करने में कोर्ट के हस्तक्षेप की मांग की।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण (रेरा) के कामकाज की आलोचना करते हुए इसे 'निराशाजनक' करार दिया। प्राइवेट बिल्डरों से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रहे जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ को वरिष्ठ अधिवक्ता के परमेश्वर ने बताया कि रेरा कानून वास्तव में अपने क्रियान्वयन में विफल रहा है।
विभिन्न हितधारकों को प्रभावित करती है परियोजना विफल
उन्होंने रियल एस्टेट क्षेत्र को प्रभावित करने वाले डोमिनो प्रभाव की ओर इशारा किया और कहा कि यदि किसी बिल्डर की एक परियोजना विफल होती है, तो उसकी अन्य परियोजनाएं भी विफल हो जाती हैं और अदालतें विफल परियोजना से संबंधित मामलों पर फैसला नहीं कर सकती हैं। माहिरा होम्स वेलफेयर एसोसिएशन से संबंधित मामले में पेश हुए परमेश्वर ने कहा कि यदि परियोजना विफल होती है, तो यह विभिन्न हितधारकों को प्रभावित करती है।
रियल एस्टेट क्षेत्र में कोर्ट के हस्तक्षेप की मांग
उन्होंने रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए नियामक तंत्र को मजबूत करने में कोर्ट के हस्तक्षेप की मांग की। जस्टिस सूर्यकांत ने परमेश्वर की दलीलों से सहमति जताते हुए कहा कि रेरा के तहत विनियामक प्राधिकरण का कामकाज निराशाजनक है, लेकिन उन्होंने कहा कि राज्य नए नियंत्रक उपाय का विरोध कर सकता है। भू-संपदा (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 को संसद द्वारा रियल एस्टेट क्षेत्र को विनियमित करने और आवास परियोजनाओं में निवेश करने वाले घर खरीदारों के पैसे की रक्षा के लिए अधिनियमित किया गया था।
प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों, तीमारदारों का शोषण रोकने पर फैसला लें राज्य : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट अस्पतालों के दवा दुकानों में दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की अधिक कीमतों के संबंध में निर्णय सरकार पर छोड़ दिया। कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना सरकार का फर्ज है। राज्य मरीजों और उनके तीमारदारों का शोषण रोकने को लेकर उचित नीतिगत निर्णय लें।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर इस पर कोर्ट ने निर्देश दिया तो प्राइवेट अस्पतालों के कामकाज में बाधा हो सकती है और इसका व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए ये टिप्पणियां की।
दवा दुकानों से दवाइयां खरीदने के लिए मजबूर
याचिका में आरोप लगाया गया कि प्राइवेट अस्पताल मरीजों और उनके तीमारदारों को अस्पताल परिसर में स्थित दवा दुकानों या उनसे संबद्ध दवा दुकानों से दवाइयां खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। इन अस्पतालों में संचालित दवा दुकानों में दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के लिए अत्यधिक कीमतें वसूली जाती हैं।
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