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    सुप्रीम कोर्ट की दो-टूक; विदेशी चंदा प्राप्त करना पूर्ण अधिकार नहीं, यह देश की राजनीतिक विचारधारा को कर सकता है प्रभावित

    By Krishna Bihari SinghEdited By:
    Updated: Sat, 09 Apr 2022 01:56 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि विदेशी चंदा प्राप्त करना पूर्ण अथवा निहित अधिकार नहीं है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एफसीआरए (फारेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन) संशोधन कानून 2020 को संवैधानिक ठहराया है। जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्‍या बड़ी बातें कही है।

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    सुप्रीम कोर्ट ने स्‍पष्‍ट किया है कि विदेशी चंदा प्राप्त करना निहित अधिकार नहीं है। (File Photo)

    नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक फैसले में कहा कि विदेशी चंदा प्राप्त करना पूर्ण अथवा निहित अधिकार नहीं है। कोर्ट ने विदेशी अंशदान नियमन संशोधन कानून, 2020 (एफसीआरए) को संवैधानिक ठहराते हुए कहा कि विदेशी चंदे से संबंधित प्रविधान व्यापक जनहित, लोक व्यवस्था और विशेष तौर पर देश की संप्रभुता और अखंडता की सुरक्षा के लिए प्रभावी नियामक उपाय हैं। कोर्ट ने फैसले में विदेशी चंदे के जरिये विदेशी दानकर्ता द्वारा देश की सामाजिक-आर्थिक संरचना और राजनीति को प्रभावित करने की संभावनाओं की ओर भी इशारा किया।

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    विदेशी चंदा देश की नीतियों को कर सकता है प्रभावित

    कोर्ट ने कहा कि विदेशी चंदा देश की नीतियों और राजनीतिक विचारधारा को प्रभावित कर सकता है। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश कुमार और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने एफसीआरए संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निपटारा करते हुए कहा कि 2010 के कानून की संशोधित की गई धारा 7, 12(1ए), 12ए और 17 संवैधानिक हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने धारा 12ए की पुनर्व्याख्या करते हुए आधार की अनिवार्यता खत्म कर दी है और पहचान के लिए भारतीय पासपोर्ट को मान्यता देने का आदेश दिया है।

    नए कानून को दी गई थी चुनौती

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गैर-सरकारी संस्थाएं और संस्थाओं के आवेदनकर्ता पदाधिकारी अपनी पहचान के लिए पासपोर्ट पेश कर सकते हैं और इसे धारा 12ए का अनुपालन माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में नोएल हार्पर बनाम भारत सरकार सहित कई याचिकाएं दाखिल हुई थीं जिनमें एफसीआरए संशोधन कानून को भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी गई थी।

    विदेशी चंदे से राष्ट्रीय राजनीति प्रभावित होने की संभावना

    सर्वोच्‍च अदालत ने कहा कि दुनियाभर में यह धारणा है कि विदेशी चंदे से राष्ट्रीय राजनीति प्रभावित होने की संभावना होती है। विदेशी चंदे का देश की सामाजिक आर्थिक संरचना और राजनीति पर काफी प्रभाव हो सकता है। विदेशी चंदे से विदेशी दानकर्ता की उपस्थिति सृजित होती है जो देश की नीतियों को प्रभावित कर सकती है। इसमें राजनीतिक विचारधारा को प्रभावित करने या थोपने की प्रवृत्ति हो सकती है।

    विदेशी चंदे का प्रवाह न्यूनतम स्तर पर हो

    सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने कहा कि विदेशी चंदे के प्रभाव के विस्तार को राष्ट्र की संवैधानिकता और नैतिकता के सिद्धांत के साथ मिलाकर देखा जाए तो देश में विदेशी चंदे का प्रवाह न्यूनतम स्तर पर होना चाहिए। यदि इसे पूरी तरह छोड़ दिया जाए तो इसका प्रभाव कई तरीकों से प्रकट हो सकता है जिसमें देश के भीतर सामाजिक व्यवस्था को अस्थिर करना शामिल है।

    अपने देश के दान दाताओं पर करें फोकस

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धर्मार्थ संगठनों को विदेशी चंदे के कारण दूसरे देश के प्रभाव से बचने के लिए विदेशी चंदे के बजाय अपने देश के दान दाताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हमारे देश में दान दाताओं की कोई कमी नहीं है।

    संप्रभुता को बिगाड़ने के हुए प्रयास

    फैसले में कोर्ट ने संशोधित कानून को सही ठहराते हुए कहा कि 1976 के कानून को 2020 में निरस्त किया गया क्योंकि प्राप्त अनुभवों के कारण ऐसा करना जरूरी हो गया था। बेईमान संस्थाओं ने विदेशी चंदे के नाम पर हमारे देश की अर्थव्यवस्था और संप्रभुता को बिगाड़ने के प्रयास किए। यही कारण है कि इसे ध्यान रखा जाना चाहिए।

    पूर्व अनुमति जरूरी

    शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून के पीछे की विधायी मंशा और सरकार व संसद के निरंतर प्रयास सामान्य तौर पर विदेशी चंदे को हतोत्साहित करने के रहे हैं, लेकिन इसे कानून की धारा 11 में दिए गए विशिष्ट निश्चित उद्देश्य से अनुमति दी गई है और उसके लिए विदेशी चंदा लेने वाले का दायित्व है कि वह इस कानून के तहत पूर्व अनुमति और पंजीकरण प्रमाणपत्र ले। उस व्यक्ति को बिना किसी अपवाद के पूर्व अनुमति और पंजीकरण प्रमाणपत्र की हर शर्त का पालन करना होगा।