सुप्रीम कोर्ट ने विवाह-विच्छेद की अपनी शक्तियों पर फैसला सुरक्षित रखा, न्याय मित्र ने कहा, अदालत जबरन विवाह नहीं तोड़ सकती
क्या सर्वोच्च न्यायालय दो पक्षों के बीच विवाह-विच्छेद के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी व्यापक शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
नई दिल्ली, एएनआइ। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि क्या वह दो पक्षों के बीच विवाह-विच्छेद के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी व्यापक शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, भले ही एक पक्ष सहमति न दे। जस्टिस संजय किशल कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा, बहस पूरी हुई, फैसला सुरक्षित रखा जाता है। पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी भी शामिल थे।
शक्तियों का कर सकता प्रयोग
सुप्रीम कोर्ट को यह फैसला करना है कि क्या वह विवाह को भंग करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, इस तरह की शक्ति का प्रयोग करने के लिए व्यापक मापदंड क्या हो सकते हैं और क्या पार्टियों की आपसी सहमति के अभाव में इन शक्तियों के इस्तेमाल की अनुमति है।
यह मसला तय करेगी अदालत
अदालत को यह भी तय करना है कि क्या वह अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए आपसी सहमति वाले पक्षकारों को परिवार अदालत में भेजे बिना विवाह को भंग कर सकती है।
जबरन अलग नहीं कर सकती अदालत
अनुच्छेद 142 शीर्ष अदालत के आदेशों और उसके समक्ष किसी भी मामले में 'पूर्ण न्याय' प्रदान करने के आदेशों को लागू करने से संबंधित है। इस मामले में न्याय मित्र वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट जनहित में सुलह की सर्वोत्तम कोशिश तो कर सकता है, लेकिन वैचारिक मतभेद होने के बावजूद अगर कोई दंपत्ति साथ रहने के लिए तैयार है तो उन्हें जबरन अलग नहीं कर सकता है।
विवाह विच्छेद करना उचित नहीं
इसी मामले में अदालत की मदद कर रहे वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा विवाह विच्छेद करना उचित नहीं है, क्योंकि संसद ने यह अधिकार जिला अदालतों को दिया है और इसकी एक उचित प्रक्रिया निर्धारित की है।
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